Tuesday, October 29, 2024

बाइबल में ईश्वर का स्वरूप




बाइबल में ईश्वर का स्वरूप

पं० धर्मदेव विद्यामार्तण्ड

 हमारे ईसाई भाई यह दावा करते हैं कि बाईबल ईश्वरप्रदत्त धर्म ग्रन्थ है जिसके दो भाग हैं। पुराना धर्मशास्त्र और नया धर्मशास्त्र। इस लेखमाला में हम संक्षेप से यह बाईबल के प्रामाणिक अनुवादों के आधार पर दिखाना चाहते हैं कि ईश्वरीय ज्ञान माने जाने वाली इस बाइबल में ईश्वर का क्या स्वरूप बताया गया है। 

 (1.)  बाइबिल का ईश्वर विश्राम करने वाला है। 

और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया। और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उसने अपनी सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया।- उत्पत्ति 2/2-3 

( 2.) बाइबिल का ईश्वर ज्ञान से मनुष्य को वंचित रखता है। 

तब उन दोनों की आंखे खुल गई, और उन को मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये।तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिर ता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। - उत्पत्ति 3/7-8 

(3.) बाइबिल का ईश्वर ज्ञानी होने पर मनुष्यको बाग़ से निकाल देता है। 

 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिये अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ा कर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।  तब यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की बाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस में से वह बनाया गया था।- उत्पत्ति 3/22-23 

(4.) बाइबिल का ईश्वर मनुष्यों को बनाने के बाद पछताता है। 

यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछतावा और मन में अति खेदित हुआ। तब यहोवा ने सोचा, कि मैं मनुष्य को जिसकी मैं ने सृष्टि की है पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूंगा; क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगने वाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं।- उत्पत्ति 6/6-7

(5) बाइबिल का ईश्वर भाषाओँ की गड़बड़ी करता है। 

 और यहोवा ने कहा, मैं क्या देखता हूं, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्होंने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जितना वे करने का यत्न करेंगे, उस में से कुछ उनके लिये अनहोना न होगा।

 इसलिये आओ, हम उतर के उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सकें।

 इस प्रकार यहोवा ने उन को, वहां से सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया; और उन्होंने उस नगर का बनाना छोड़ दिया।

 इस कारण उस नगर को नाम बाबुल पड़ा; क्योंकि सारी पृथ्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, सो यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्यों को सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया॥- उत्पत्ति 11/5-9 

(6.) बाइबिल का ईश्वर मांस भक्षण को बढ़ावा देता है। 

फिर इब्राहीम गाय बैल के झुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा ले कर अपने सेवक को दिया, और उसने फुर्ती से उसको पकाया। तब उसने मक्खन, और दूध, और वह बछड़ा, जो उसने पकवाया था, ले कर उनके आगे परोस दिया; और आप वृक्ष के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे।- उत्पत्ति 18/7-8 

(7.) बाइबिल का यहोवा बर्बर हत्या करने वाला है। 

क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से हो कर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मारूंगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं तो यहोवा हूं।- निर्गमन 12/12

और जिन घरों में तुम रहोगे उन पर वह लोहू तुम्हारे निमित्त चिन्ह ठहरेगा; अर्थात मैं उस लोहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगों को मारूंगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पड़ेगी और तुम नाश न होगे।- निर्गमन 12/13 

और ऐसा हुआ कि आधी रात को यहोवा ने मिस्र देश में सिंहासन पर विराजने वाले फिरौन से ले कर गड़हे में पड़े हुए बन्धुए तक सब के पहिलौठों को, वरन पशुओं तक के सब पहिलौठों को मार डाला।- निर्गमन 12/29 

(8.) बाइबिल का ईश्वर जलन करने वाला है। 

 तू उन को दण्डवत न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं,और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूं। - निर्गमन 20/5 

 अन्य भी सैकड़ों उद्धरण दिये जा सकते हैं। किन्तु निष्पक्ष विचारशील लोगों के लिये इतने ही पर्याप्त हैं। जिनसे स्पष्ट पता लगता है कि बाइबल का ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान न्यायकारी और दयालु नहीं अपितु वह आकाश में सिंहासन पर बैठा रहता है, वह वहां से उतर कर आता है, बाग में घूमता है, उससे मनुष्य अपने को छिपा सकते हैं, वह नहीं चाहता कि मनुष्यों को सच्चा ज्ञान हो और उनकी एक भाषा हो । वह बड़ा ईर्ष्यालु है जो मनुष्यों की भाषाओं में भी गड़बड़ डाल देता है । वह गाय के कोमल बछड़े का भी मांस खाता है, उसे पश्चाताप वा पछतावा होता है । वह लोहू के चिह्न के बिना मिश्र देशवासियों को औरों से पहचान नहीं सकता, वह दयालु और न्यायकारी नहीं बल्कि इतना क्रूर है कि मिश्र वासियों के छोटे-2 बच्चों को भी बिना किसी अपराध के मार डालता है वह अपने मुख से कहता है कि मैं तेरा परमेश्वर बड़ी जलन रखने वाला हूं । विचारशील पाठकों को क्या यह प्रश्न करने का अधिकार नहीं कि क्या ईश्वरीय वाक्य माने जाने वाले ग्रन्थ में ईश्वर का ऐसा असंगत वा बेहूदा बुद्धि तथा विज्ञान विरुद्ध स्वरूप पाया जाना उचित है ? क्या ईश्वर के अन्दर भी साधारण मनुष्य की तरह थकावट के कारण आराम की जरूरत पश्चाताप, ईर्ष्या वा जलन, पक्षपात, क्रूरता, बछड़े का मांस खाना, लोहू की निशानी के बिना भेद न कर सकना इत्यादि बातें मानी जा सकती हैं ? क्या कोई भी निष्पक्षपात बुद्धिमान् ईश्वर के ऐसे भद्दे स्वरूप को स्वीकार कर सकता है ? हम अपने यहूदी ईसाई तथा अन्य भाइयों से सप्रेम निवेदन करते हैं कि वे निष्पक्षपात होकर इस पर विचार करें और सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहें ।

कहाँ तो


स पर्य॑गाच्छु॒क्रम॑का॒यम॑व्र॒णम॑स्नावि॒रꣳ शु॒द्धमपा॑पविद्धम्। क॒विर्म॑नी॒षी प॑रि॒भूः स्व॑य॒म्भूर्या॑थातथ्य॒तोऽर्था॒न् व्य᳖दधाच्छाश्व॒तीभ्यः॒ समा॑भ्यः ॥( यजु० 40/8)

हे मनुष्यो ! जो अनन्त शक्तियुक्त, अजन्मा, निरन्तर, सदा मुक्त, न्यायकारी, निर्मल, सर्वज्ञ, सबका साक्षी, नियन्ता, अनादिस्वरूप ब्रह्म कल्प के आरम्भ में जीवों को अपने कहे वेदों से शब्द, अर्थ और उनके सम्बन्ध को जनानेवाली विद्या का उपदेश न करे तो कोई विद्वान् न होवे और न धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फलों के भोगने को समर्थ हो, इसलिये इसी ब्रह्म की सदैव उपासना करो ॥

वे॒नस्तत्प॑श्य॒न्निहि॑तं॒ गुहा॒ सद्यत्र॒ विश्वं॒ भव॒त्येक॑नीडम्। तस्मि॑न्नि॒दꣳ सं च॒ वि चै॑ति॒ सर्व॒ꣳ सऽ ओतः॒ प्रोत॑श्च वि॒भूः प्र॒जासु॑ ॥(यजु० 32/8) 

हे मनुष्यो ! विद्वान् ही जिसको बुद्धि बल से जानता, जो सब आकाशादि पदार्थों का आधार, प्रलय समय सब जगत् जिसमें लीन होता और उत्पत्ति समय में जिससे निकलता है और जिस व्याप्त ईश्वर के बिना कुछ भी वस्तु खाली नहीं है, उसको छोड़ किसी अन्य को उपास्य ईश्वर मत जानो ॥

 इत्यादि मन्त्रों द्वारा प्रतिपादित ईश्वर का सच्चा युक्तियुक्त स्वरूप जिसे महर्षि दयानन्द जी ने वेदों के आधार पर इन सरल शब्दों में वरिणत किया कि 

'ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है उसी की उपासना करनी योग्य है ।' 

और कहां यह बाइबल प्रोक्त ईश्वर का स्वरूप ।इनमें कितना आकाश पाताल का अन्तर है यह बुद्धिमान् स्वयं विचारें । 


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