Tuesday, November 13, 2018

श्रीगुरु नानकदेव का अवतरण



श्रीगुरु नानकदेव का अवतरण


मुस्लिम आक्रान्ताओं ने अपनी एक विशिष्ट प्रकृति के साथ शताब्दियों पूर्व भारतवर्ष में पदार्पण किया था। उनकी विशिष्ट प्रकृति का नाम है : इस्लाम और उसकी शरीअत। भारत के दुर्भाग्य ने रज-तमगुणी प्रकृति से ओत-प्रोत मुस्लिम आक्रान्ताओं को शासक बनने का अवसर दिला दिया। उन्होंने अपने शासन- काल में बृहद् हिन्दू समाज को विविध रूप से अत्यन्त पीड़ित किया। उनके विरुद्ध भारतीय शूरवीरों ने अनेक शताब्दियों तक निरन्तर संघर्षरत रहकर अपने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया, किन्तु दुर्भाग्यवश भारत राष्ट्र को उक्त पीड़ा से मुक्ति न मिल पाई।
आततायी विधर्मी सत्ता द्वारा आए दिन दी जा रही कष्टकारी विपदाओं को झेलते-झेलते सामान्य हिन्दू अपना मनोबल क्षीण होता अनुभव कर रहा था। ऐसी संकटमयी वेला में दयालु परमेश्वर की प्रेरणा से भारत के विभिन्न प्रदेशों में अनेक महान् विभूतियों का अवतरण हुआ। उन महानात्माओं ने अपनी तपस्या द्वारा अर्जित विवेक के बल पर हिन्दू समाज को प्राण-वान् बनाया। उनसे प्रेरणा पाकर वह आततायी सत्ता के विरुद्ध कटिबद्ध हो उठा।
बृहत्तर पंजाब में अवतरित होने वाली महान् विभूति १५२६ विक्रमी की कार्त्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन श्री नानकदेव जी के रूप में अवतरित हुई।
इतिहासकार ज्ञानी ज्ञान सिंह (१८७९-१९७८ वि•) अपनी प्रसिद्ध रचना तवारीख़ गुरू ख़ालसा (भाग-१, गुरु गोविन्द सिंह प्रेस, बेर बाबा नानक, सियालकोट, १९४८ विक्रमी) के पृष्ठ ४५ पर मुसलमान आक्रान्ता और शासकों के अत्याचारों का विश्लेषण करते हुए श्रीगुरु नानकदेव के अवतरण का कारण इस प्रकार दर्शाते हैं :
"वस्तुतः तो उस समय (श्रीगुरु जी के अवतरण से पूर्ववर्ती समय) में सारे भारतवर्ष को तुर्कों=मुसलमानों के ज़ुल्मों ने तड़पा रक्खा था। किसी हिन्दू के घर सुन्दर लड़का-लड़की, ६ महीना का अन्न, ज़र-ज़ेवर, अच्छी गाय-भैंस, बैल-घोड़ा नहीं रहने देते थे, मुसलमान धक्के के साथ छीन लेते थे, हिन्दुओं की कोई फ़रियाद नहीं सुनता था। इन्साफ़ का काम क़ाज़ियों के हाथ में था। क़ाज़ी यही चाहते थे कि सब प्रकार से तंग होकर हिन्दू हमारा दीन मान लें।
उस समय सचमुच ऐसा ही हाल गुज़रता था जैसा कि गुरु महाराज का वचन है :
कलि काती राजे कासाई, धरमु पंख करि उडरिआ।
कूड़ु अमावस सचु चंद्रमा, दीसै नाही कह चड़िआ।।
(- श्री आदिग्रन्थ, माझ की वार,
सलोक महला १, पृष्ठ १४५)
[ यह कलियुग=तमोगुणी-युग एक तीखी छुरी है और बादशाह क़साई हैं जिनके अत्याचार से धर्म पंख लगा कर उड़ गया है। अब अमावस की अन्धेरी रात की भांति झूठ सर्वत्र फैल गया है और सत्य का शुक्ल पक्षीय चन्द्रमा कहीं चढ़ता दिखाई नहीं देता ]।
यद्यपि उस समय सारी हिन्दुवाइन मुसलमानों के ज़ोर-ज़ुल्म की सड़ती-जलती भट्ठी में पड़ी भुन रही थी, तब भी भक्तों-सन्तों को तुर्कों ने जब सन्ताप दिया को ख़ालिक़=सृष्टिकर्ता का सिंहासन डोल उठा। परमेश्वर अपनी निरादरी और प्रजा की पीड़ा सह सकता है परन्तु अपने भक्तों और सन्तों का सन्ताप नहीं सह सकता। उसी वक़्त भक्तों-सन्तों की रक्षा के वास्ते और वैदिक धर्म-मर्यादा की पालना हेतु सर्व-शक्तिवान् भगवान् की प्रेरणा से गुरु नानक साहिब प्रकट हुए।"
इस प्रकार मुस्लिम शासकों के दुराचार से व्याप्त प्रतिकूल परिस्थितियों में गुरु नानकदेव ने भारतवर्ष के सस्य श्यामला प्रदेश तत्कालीन बृहत्तर पंजाब में १५२६ विक्रमी की कार्त्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन जन्म लिया।
ऐसी महान् विभूति के अवतरण-दिवस पर सभी सच्चे राष्ट्रभक्तों को हार्दिक शुभ कामनाएं ! ०
चित्र परिचय :
तपस्या करते हुए गुरु नानकदेव
स्रोत : बी-४० जनमसाखी (१७९० विक्रमी)

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