Saturday, November 10, 2018

दलित उत्थान का प्रेरणादायक संस्मरण



दलित उत्थान का प्रेरणादायक संस्मरण

डॉ विवेक आर्य

1920 के दशक में स्वामी श्रद्धानन्द ने दलितोद्धार का संकल्प लिया। उस काल में दलित कहलाने वाली जनजातियों को सार्वजानिक कुओं से पानी भरने की अनुमति नहीं थी। इस अत्याचार के विरुद्ध आर्यसमाज के शीर्घ नेता स्वामी श्रद्धानन्द ने आंदोलन चलाया। उन्होंने पहले महात्मा गाँधी और कांग्रेस से दलितों के हक के लिए सहायता मांगी पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अंत में उन्होंने आर्यसमाज के मंच से महान कार्य को प्रारम्भ किया। स्थान स्थान पर स्वामी जी के आवहान से प्रेरित होकर आर्यों ने दलितों को अपने कुओं से पानी भरवाना आरम्भ किया। भागपुर गांव, तहसील बेरी, जिला झज्जर, हरियाणा प्रान्त के निवासी चौधरी शीश राम आर्य गांव के बड़े जाट जमींदार थे। आपने अपने खेत में स्थित कुँए को दलितों के लिए पानी भरने हेतु खोल दिया। आपके इस महान कर्म की प्रशंसा करने के स्थान पर आपका पुरजोर विरोध आप ही की बिरादरी ने किया। आपको दो वर्ष के लिए बिरादरी से निष्काषित कर दिया गया। आपके सुपुत्र शेर सिंह उस समय आठवीं कक्षा में थे तो उस समय की प्रचलित प्रथा के अनुसार आपका विवाह जाट गोत्र की कन्या से तय हो गया था।जब शेर सिंह के ससुराल पक्ष को मालूम चला कि अपने अपने कुओं पर दलितों को चढ़ा दिया है। तो उन्होंने आपत्ति कर दी। चौधरी शीशराम पर रिश्ता तोड़ने का दवाब तक बनाया गया। शीशराम जी ने कहा मुझे रिश्ता तोड़ना स्वीकार है, मगर दलितों के साथ हो रहे अन्याय का समर्थन करना स्वीकार नहीं हैं। अंत में शेर सिंह का रिश्ता टूट गया। मगर स्वामी दयानंद के सैनिक जातिवाद को मिटाने में कामयाब हुए। बाद में जनसामान्य ने उनकी चेष्टा को समझा और दलितों को सार्वजानिक कुओं से पानी भरने का किसी ने कोई विरोध नहीं किया। प्रोफेसर शेर सिंह जी ने आगे चलकर अंतर्जातीय विवाह किया एवं जाने माने राजनीतिज्ञ एवं भारत सरकार के केंद्र में मंत्री भी बने।

महार दलित समाज में पैदा होकर दलितों के लिए कुँए खुलवाने वाले डॉ अम्बेडकर का नाम तो सभी राजनीतिक पार्टिया लेती है। मगर सवर्ण समाज में पैदा होकर दलितों के लिए संघर्ष करने वाला आपको कोई स्वामी दयानंद का शिष्य ही मिलेगा। आर्यसमाज के जातिवाद को मिटाने के संकल्प में भागी बने। तभी यह देश बचेगा। यह प्रेरणादायक संस्मरण आज के समय में हम सभी को विश्व भातृत्व और आपसी सद्भाव का पावन सन्देश देता हैं।


सलंग्न चित्र- स्वामी दयानन्द के अनन्य भक्त चौधरी शीशराम एवं उनके बड़े भाई चौधरी हरनारायण

No comments:

Post a Comment