Thursday, November 22, 2018

खण्डन का फल




खण्डन का फल

✍🏻 लेखक - पंडित चमूपति एम॰ए०

[श्री पण्डितजी की ज्ञान प्रसूता लेखनी से लिखा गया यह लेख ‘आर्य' मासिक लाहौर के माघ सम्वत् १९७२ के अंक में छपा था।]
एक ओर अल्पशक्ति आर्यसमाज है और दूसरी ओर नीतिमत्ता तथा वैभव के शस्त्रों से सजा हुआ साम्प्रदायिक संसार। ख्वाजा हसन निज़ामी का और किसी से वैर नहीं। सनातनियों के वह मित्र हैं, आर्यसमाज के जन्म-वैरी। अहमदियों के पत्र तथा व्याख्याता यदि किसी पर दाँत पीसते हैं तो आर्यसमाज पर और तो और, सनातनियों की वक्र दृष्टि भी आज इसी आर्यसमाज ही पर है। सनातन धर्म कान्फ्रेंस के स्वागताध्यक्ष का भाषण यदि किसी के अत्याचार के हाथों छिपा-छिपा करुण क्रन्दन करता था तो आर्यसमाज के। पण्डित मौलीचन्द का भाषण उस विकट विष का एक कण था, जो कुछ समय से सनातनी महादेव के कण्ठ में फंसा हुआ आर्यसमाज के विरुद्ध परवश फनियर की तरह मुँह बढ़ाता है पर दाँत नहीं पाता। इन सभाओं, सोसाइटियों, समुदायों का बस चले तो इकट्टे आर्यसमाज की इतिश्री करें और मिलकर उसकी चिता पर सन्तोष का श्वास लें । 
आर्यसमाज! तूने क्यों पाप किया है जिसका प्रायश्चित तेरी मौत से कराने की चारों ओर से तैयारियाँ हो रही हैं। तेरा अपराध है खण्डन, तीव्र खण्डन, निर्भय निश्शंक खण्डन। महात्मा गांधी जैसा सहनशक्ति का देवता इसी असह्य अपराध पर तेरी पीठ में छुरा घोंपने को उद्यत हो गया था। हृदय काँपता है जब स्मरण आता है, महात्मा ने तुझ पर स्त्री-अपहरण का कुत्सित पाप आरोपित किया और उसकी असत्यता प्रमाणित हो जाने पर भी अपनी भूल को पी गया। आज लाला लाजपत राय कहते हैं तेरी शास्त्रार्थ की प्रचार प्रथा मध्यकालीन है, यूरोप में इस विधि को कभी को छोड़ दिया गया है। हाय यूरोप का जादू! हम धर्म प्रचार का ढंग भी अब यूरोप से सीखने जायेंगे! लालाजी का उद्देश्य क्या है? क्या आर्यसमाज ईसाइयों की भाँति अपना प्रचार प्रलोभन से करे-छल से करे-राजभक्ति के ढोंग से करे? यूरोप की और विधि कौन सी है? लालाजी ने पश्चिम का साक्षात् अवलोकन किया है और यहाँ केवल सुने सुनाए का परिचय है। तो भी आए दिन के Fundamentalists फण्डेमेण्टेलिस्ट और Modermists मौडर्निस्ट ईसाइयों के परस्पर वाद विवाद की सूचनाएँ पत्रों में प्रकाशित होती हैं। यह शास्त्रार्थ नहीं तो और है क्या? पण्डित मदनमोहनजी मालवीय ने भरी सभा में शास्त्रार्थ का आव्हान चाहा है। इसका उत्तर अब आर्यसमाज क्या दे? मौन?
नेताओं को विचार एकता का है और आर्यसमाज को सुधार का । नेता बल के भूखे हैं, सुधारक सत्य और सदाचार के। इनकी भ्रान्त दृष्टि में सदाचार सबसे बड़ा बल है। देखें इतिहास किसके परिश्रम की प्रशंसा करता है। भावी विजयी हम होंगे या हमारे राजनैतिक नेता। इसमें हमारी अपनी अब की साक्षी तो कोरा पक्षपात होगी। समय बदल गया है। नहीं तो महात्माजी का तथा लालाजी का लक्ष्य-बिन्दु एक है। महात्मा को भारतीयता के नाते हम पर रोष था, लाला को हिन्दुत्व के नाते है। यदि हमें अपनी सफलता अथवा सत्य परायणता का प्रमाण राजनैतिक नेताओं से लेना हो, तो हम तो पहिली ही बार इनके सम्मुख होते ही अनुत्तीर्ण हैं। हमारा परीक्षक अन्तरात्मा है। इससे अधिक स्थूल साक्षी हमारे शत्रु मन्यों की है- अर्थात् उनकी जो आज हमारी जान के प्यासे प्रतीत हो रहे हैं।
🌺 मुसलमानो! कुरान की कसम है। अहमदियो! कलामे पाक को हाथ में लेकर सच कहो, हमने तुम्हारा हित किया है या अहित? मौलाना मुहम्मद अली! तुम्हीं कहना, हमारे खण्डन की छाप मात्र से ही क्या तुमने कुरान को सिर से पाँव तक सद्भावों के भूषणों से मण्डित करने का प्रयत्न नहीं किया? क्या हमारे खण्डन-कुठार के घाव कुरान के कलेवर पर वीरों के प्रसाद की भाँति कुरान को शर-शय्या पर लेटाए हुए भी उससे अमरता का स्वाँग नहीं भरवा रहे? लो! कुरान स्वयं बोल उठा?
🔥 १. कुरान सूरा २७. आयात ६० मुहम्मद महोदय के परमात्मा के दर्शनार्थ सातवें आसमान पर जाने का वर्णन किया है। बुराक नाम का गधा इस पुण्य यात्रा में खुदा के रसूल की सवारी होने से अमरता प्राप्त कर चुका है परन्तु मो० अली अपने कुरान-भाष्य में लिखते हैं
भाष्यकार प्राय: सहमत हैं कि यहाँ संकेत आरोहण के स्वप्न की ओर है जिससे पवित्र सन्देशहर को अपने पलायन (हिजरत) के पश्चात् बड़ी सफलताओं का वचन दिया गया। (Holy Quran Note 1441)
🔥 २. सूरा ४१ आयत १०में पृथिवी के छह: दिनों में बनाए जाने की कथा है जैसे तौरा (Old Testament) में सूर्य के चौथे दिन निर्मित होने का वृतान्त है। हमारे ईसाई भाइयों ने दिन का अर्थ स्टेज कर लिया तो अहमदी क्यों पीछे रहने लगे! उक्त भाष्यकार के अपने शब्दों में -
‘छ: समयों या दिवसों में सृष्टि होने का अर्थ आसमानों और जमीनों के निर्माण में लगे काल की इयता प्रकाशित करना नहीं........वास्तव में छ: काल.......इन पदार्थों की सृष्टि की स्थितियाँ-स्टेजें-हैं।' (Holy Quran Note 2199)
🔥 ३. शैतान पर मौलाना की टिप्पणी देखने योग्य है। सूरा ७ आयत १२ पर आप लिखते हैं
‘इस प्रकार यहाँ दिया वर्णन इन दो प्रकार के प्राणियों के शील के मुख्य गुणों का द्योतक है। यहाँ इसका अभिप्राय केवल यह है कि आग्नेय शील (के मनुष्य) ही पूर्ण पुरुष अथवा सच्चे सन्देशहर के अनुकरण से नकार करते हैं।' (Holy Quran Note 862)
कुरान में यहाँ वर्णन शैतान के आदम के पूजन से इनकार करने का है। सो देख लीजिये यहाँ आदम मुहम्मद हो गया और शैतान के विरुद्ध विद्रोही लोग।
🔥 ४. आदम से यों छुट्टी हुई तो उसके पुत्र आबील काबील कहाँ बच सकते हैं? सूरा ५ आयात २७ पर यह आलोक चढ़ाया है-
‘परन्तु इस सारी कथा का अभिप्राय आलंकारिक लिया जा सकता है जिसका संकेत पवित्र सन्देशहर के विरुद्ध यहूदियों के षड्यन्त्रों की ओर है। यहाँ अत्याचारी तथा पापी भ्राता (एक वचन) का अर्थ इस्राइली (बहुवचन) है और धर्मात्मा भाई (एकवचन) को अर्थ इस्माइली है जिनका प्रतिनिधि पवित्र सन्देशहर है।' (Holy Quran Note 686) 
कथा ही उड़ गई। वे सिर पैर की बात को सिर पैर देने का प्रयत्न किया है। यह और बात है, हाथी का सिर गणेश की गर्दन पर पूरा आए या न आए।
🔥 ५. कुरानी बहिश्त को सर सैयद ने वेश्या-गृह का नाम दिया था वह अब क्या बन रहा है? अहमदी भाष्यकार के अपने शब्दों में-
‘स्वर्ग और नरक दो स्थानों के नाम नहीं, किन्तु वास्तव में दो अवस्थाएँ हैं। क्योंकि यदि स्वर्ग हो तो नरक नहीं हो सकता। इन आयतों के अनुसार स्वर्ग सारे आकाश (Space) पर व्यापक है।(Holy Quran Note 2554) 
कुर्आन कर्ता इतनी अन्वय-कारक बुद्धि के मालिक न थे। इसका भाव कुअन के अन्य स्थल हैं। शुक्र है १३०० वर्ष के पीछे कोई नाम लेवा ऐसा भी हुआ जिसने पूर्वजों की भूल सुधार दी। सपूत ऐसी ही सन्तति को कहा है।

🔥 ६. बहिश्त की यह गति है तो हूरों का ठिकाना? इसपर एक बृहत् टिप्पण दिया है। प्रमाण कोई नहीं। 
‘इसलिए श्वेत आँखें वाली, विशाल नेत्रों वाली, पवित्र सुन्दरियाँ-इस आयत में आई हूर और ईन-इस जीवन की सुन्दर स्त्रियाँ नहीं। यह स्वर्गीय आल्हाद (वर) है जो धर्मात्मा स्त्रियाँ भी पुरुषों के साथ भोगेंगी। ...... पवित्रता और सुन्दरता का प्रतिनिधि स्त्रीत्व है, पुरुषत्व नहीं।(Holy Quran Note 2356) 
हम जानते हैं कुरआन के निष्पक्ष अध्येता उपर्युक्त टिप्पणियों के रचयिता पर खेंचातानी का दोष आरोपित करेंगे। हम भी उनके साथ सहमत हैं। परन्तु एक सुधारेच्छुक के लिए यह कुछ थोड़े सन्तोष का स्थान नहीं कि अरब के उपजे धर्म से विज्ञान और पवित्र आचरण की कवितात्मक ध्वनि निकले। अटकलपच्चू कहानियों को इस्लाम के प्रारम्भिक इतिहास का आलंकारिक रूप दिया जाए। बहिश्त का विलासिनी-गृह उखाड़ उसके स्थान आध्यात्मिक अवस्थाओं का स्वप्न देखने की ओर प्रवृत्ति हो । मोटी आँखों और पवित्र भावों में क्या सम्बन्ध है, यह चाहे एक साहित्यिक समस्या ही रहे परन्तु स्त्रीत्व को पुण्य भावों का प्रतिनिधि अरबी सन्देशहर के मुख से - नहीं हम भूल गए, उसके भी खुदा के मुख से-कहलवाना बीसवीं शताब्दी का चमत्कार कहो तो है, चौदहवीं सदी का कयामत का निशान कहो तो है।
विस्तार भय से पुराण और बाइबल का उद्धरण आज उपस्थित नहीं करते।
यह है खण्डन का मीठा फल, जिसका आस्वाद हमारे विरोधी होंठ चाटकर लेते जाते हैं और बस नहीं करते। यह और बात है खाते भी हैं और खिलाने वाले को गाली भी देते जाते हैं। अभी इस फल का सहवर्ती विष है जो आर्यसमाज देख रहा है और उसका उन्मूलन अपना पवित्र कर्तव्य समझ रहा है। हम भविष्य-वक्ता नहीं। सम्भव है, इस घोर संग्राम का परिणाम जो आर्यसमाज ने अपने खण्डन-कुठार की पैनी धारा से संसार के या कम से कम भारत के कोने-कोने में मचा दिया है, समस्त आर्यों को प्राण-घात हो। सम्भव है, वैरी जन-बाहुल्य के बल से आर्यसमाज को धराशायी कर उस पर सुख की नींद सोएँ। हमें सन्तोष होगा यदि हमारे दहकते हुए शरीरों की अग्नि कम से कम रोग कीटों को स्वाहा कर दे जो अभी कुरान में है, पुराण में हैं, और इजील आदि सांप्रदायिक पुस्तकों में हैं। यदि हमारी राख पर पवित्र जातीयता का मन्दिर खड़ा हो जाए तो अहो भाग्य हैं हमारे प्राणों के जो इस यज्ञ में आहुति बनकर गिरें । हम समझौता नहीं, सच्चाई चाहते हैं। मिश्रण नहीं, एकीकरण चाहते हैं। हम भेदभाव को सहना नहीं, ऐक्य के भाव में लीन कर देना चाहते हैं। हमारे उद्दिष्ट ऐक्य का दूसरा नाम सत्य है। हम गांधी नहीं, मालवीय नहीं, लाजपत नहीं, दयानन्द के चेले हैं। 
*महात्मा ने सच कहा, दयानन्द असहिष्णु थे-असत्य के असहिष्णु, कदाचार के असहिष्णु, वैमनस्य के असहिष्णु। उनका लक्ष्य ऐक्य था और उनका वह ऐक्य पर्याय था शुद्ध स्वच्छ सत्य का। वे नेता ने थे, सुधारक थे।*
*कोई ज़ुबान पर लाए न लाए* 
*महर्षि महिमा गाये न गाये*
*दिल से मगर सब मान चुके* 
*योगी ने जो उपकार कमाये* 
(ऊपर लिखी चार पंक्तियाँ मूल लेख का हिस्सा नही है - अवत्सार)
✍🏻 लेखक - पंडित चमूपति एम॰ए०
साभार - राजेंद्र जिज्ञासु जी (📖 पुस्तक -विचार वाटिका)
प्रस्तुति - 📚 अवत्सार
॥ ओ३म् ॥

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