शंका-क्या दयानंद जी युद्ध में पकड़ी महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार करना मानते थे?
समाधान- महर्षि दयानंद कृत सत्यार्थप्रकाश , षष्टम समुल्लास पर एक आक्षेप किया जाता है, वह ये कि महर्षि ने राजधर्म के प्रकरण में युद्ध में जिस-जिस सैनिक के हाथ में आये तोल,घी के कुप्पे , व स्त्री आदि ग्रहण करने को कहा है। यहां पर स्त्री ग्रहण करने से कुछ दुष्ट लोग अर्थ करते हैं कि उन स्त्रियों के साथ जो चाहे, वो किया जाये। उनको रखैल बनाकर कामभोग किया जाये, या फिर गुलाम बनाकर बेचा जाये।
दरअसल ये राक्षसी ,असभ्य और कबीलाई प्रथा अरबी इस्लाम वालों की है। उसका प्रमाण हम कुरान हदीस व तफसीर से दे सकते हैं। हम चकित हैं कि मुसलमान महर्षि के इस लेख पर कैसे आक्षेप कर सकते हैं, जबकि उनकी आसमानी किताब में खुद उनके अल्लाह ने काफिरों की युद्धबंदी औरतों को रखैल बनाना लिखा है।
खैर, पहले हम महर्षि दयानंद के लेख पर विचार कर लें।
विवादास्पद लेख के पहले महर्षि दयानंद लिखते हैं-
"विशेष इस पर ध्यान रक्खे कि स्त्री, बालक, वृद्ध और आतुर तथा शोकयुक्त पुरुषों पर शस्त्र कभी न चलावे। उनके लड़के-बालों को अपने सन्तानवत् पाले और स्त्रियों को भी पाले। उन को अपनी माँ बहिन और कन्या के समान समझे, कभी विषयासक्ति की दृष्टि से भी न देखे। जब राज्य अच्छे प्रकार जम जाय और जिन में पुनः पुनः युद्ध करने की शंका न हो उन को सत्कारपूर्वक छोड़ कर अपने-अपने घर व देश को भेज देवे और जिन से भविष्यत् काल में विघ्न होना सम्भव हो उन को सदा कारागार में रक्खे।।८।।"
पाठकों! इस लेख को दुबारा पढ़िये। यहां स्वामीजी ने साफ-साफ कहा है कि युद्ध में पकड़ी महिलाओं का पालन पोषण बाकायदा करे, उनके बच्चों का भी पालन करे। यह बात भी रेखांकित की है कि उनको अपनी बहन,बेची या मां के समान माने और उन पर विषयासक्ति न करें। तब फिर उनके साथ "जो चाहे वो करना, उनको रखैल बनाना" आदि कल्पना का खंडन इसी पूर्वापर के लेख से हो जाता है।
आगे विवादास्पद लेख देखिये-
"इस व्यवस्था को कभी न तोड़े कि जो-जो लड़ाई में जिस-जिस भृत्य वा अध्यक्ष ने रथ घोड़े, हाथी, छत्र, धन-धान्य, गाय आदि पशु और स्त्रियां तथा अन्य प्रकार के सब द्रव्य और घी, तेल आदि के कुप्पे जीते हों वही उस-उस का ग्रहण करे।।११।।"
यहां पर हाथ आई हुई स्त्रियों को ग्रहण करने की बात है। मगर उनको मां,बहन, बेटी की तरह पालना है और उनमें विषयासक्ति नहीं करनी है, ये दयानंद जी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है।
यही नहीं, शत्रुराज्य के जीते पदार्थों का एक भाग उन स्त्रियों व उनके बालकों को मिलेगा। तथा यदि ने असमर्थ हैं तो उनका पालन करना व उनकी संतानों के बालिग होने पर उनको यथायोग्य उनका भाग देने का वर्णन है-
"परन्तु सेनास्थ जन भी उन जीते हुए पदार्थों में से सोलहवां भाग राजा को देवें और राजा भी सेनास्थ योद्धाओं को उस धन में से, जो सब ने मिल के जीता है, सोलहवां भाग देवे और जो कोई युद्ध में मर गया हो उस की स्त्री और सन्तान को उस का भाग देवे और उस की स्त्री तथा असमर्थ लड़कों का यथावत् पालन करे। जब उसके लड़के समर्थ हो जायें तब उनको यथायोग्य अधिकार देवे। जो कोई अपने राज्य की रक्षा, वृद्धि, प्रतिष्ठा, विजय और आनन्दवृद्धि की इच्छा रखता हो वह इस मर्यादा का उल्लंघन कभी न करे।।१२।।"
इस पूरे प्रकरण को पढ़कर स्पष्ट हो गया है कि महर्षि दयानंद युद्ध में निराश्रित गई महिलाओं को यथोचित सम्मान देकर उन्हें पुनर्वास के पक्षधर थे।
- कार्तिक अय्यर
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