कई बार अम्बेडकर वादी प्रश्न करते है कि सनातन धर्म में बलि प्रथा है. अश्वमेध यज्ञ में घोड़े को मार कर बलि दी जाती ही.
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इसका उत्तर महर्षि दयानन्द जी के शब्दों में.
(प्रश्न) अश्वमेध, गोमेध, नरमेध आदि शब्दों का अर्थ क्या है?
(उत्तर) इन का अर्थ तो यह है कि—
राष्ट्रं वा अश्वमेधः। अन्नं हि गौः। अग्निर्वा अश्वः। आज्यं मेधः॥
—शतपथब्राह्मणे॥
घोड़े, गाय आदि पशु तथा मनुष्य मार के होम करना कहीं नहीं लिखा। केवल वाममार्गियों के ग्रन्थों में ऐसा अनर्थ लिखा है। किन्तु यह भी बात वाममार्गियों ने चलाई। और जहाँ-जहाँ लेख है वहाँ-वहाँ भी वाममार्गियों ने प्रक्षेप किया है।
देखो! राजा न्याय धर्म से प्रजा का पालन करे, विद्यादि का देनेहारा और यजमान द्वारा अग्नि में घी आदि का होम करना अश्वमेध, अन्न, इन्द्रियां, किरण, पृथिवी आदि को पवित्र रखना गोमेध; जब मनुष्य मर जाय तब उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह करना नरमेध कहाता है।
सत्यार्थ प्रकाश ११वे स्म्मुलास से.
मेध शब्द का अर्थ बढ़ाना भी है.
बलि -
बलि का अर्थ भाग निकालना, बलिदान देना है.
गोबलि पूर्णतः वैदिक है क्योंकि उसका एक ही अर्थ है गौ की लिए अंश भाग निकालना. बलि का अर्थ ही है अंश भाग .
राजा यानी शासक बलिह्रत है यानी वह कर भाग लेता है .
बलि का अर्थ वध केवल मूर्ख करते हैं देव बलि भी वैदिक कर्म है तो क्या हिन्दू लोग देवताओं की हत्या करते हैं ? श्वान बलि , काक बलि , पिपीलिका बलि सब नित्य कर्म हैं यानी इनके लिये नित्य अंश भाग निकालना अनिवार्य है .जो लोग गोबलि का अर्थ गो वध करते हैं वे शत प्रतिशत गलत हैं.
-- राष्ट्र के लिए बलिदान
*वयं तुभ्यं बलिहृत: स्याम(अथर्ववेद 12/1/62)*
हम सब मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले हों।..
*अधि श्रियो दधिरे पृश्निमातर: ( ऋ. 1/85/2)*
पृथ्वी को माता मानने वाले देशभक्त सम्मान को अपने अधिकार में रखतेहै।
*उग्रा हि पृश्निमातर:( ऋ.1/23/10)* (पृश्निमातर:) देशभक्त (हि) सचमुच (उग्रा:) तेजस्वी होते है।
*यस्मान्नानयत् परमस्ति भुतम् (अथर्ववेद 10/7/31)*
स्वराज्य से बढ़कर और कुछ उत्तम नहीं है।
*यतेमहि स्वराज्ये(ऋग्वेद 5/66/6)*
हम स्वराज्य के लिए सदा यत्न करें
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इसलिए अर्थ का अनर्थ करने वालों से सावधान रहें.
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