Thursday, October 31, 2013

अहल्या उद्धार का रहस्य

yogini
एक कथा प्रचलित कर दी गयी हैं की त्रेता युग में श्री राम ने जब पत्थर बनी अहिल्या को अपने चरणों से छुआ तब वह पत्थर से मानव बन गई और उसका उद्धार हो गया।

प्रथम तो तर्क शास्त्र से किसी भी प्रकार से यह संभव ही नहीं हैं की मानव शरीर पहले पत्थर बन जाये और फिर चरण छूने से वापिस शरीर रूप में आ जाये।

दूसरा वाल्मीकि रामायण में अहिल्या का वन में गौतम ऋषि के साथ तप करने का वर्णन हैं कहीं भी वाल्मीकि मुनि ने पत्थर वाली कथा का वर्णन नहीं किया हैं। वाल्मीकि रामायण की रचना के बहुत बाद की रचना तुलसीदास रचित रामचरितमानस में इसका वर्णन हैं।

तीसरे दो विषयों पर विरोधाभास हैं एक की क्या अहिल्या इन्द्र द्वारा छली गयी थी अथवा दूसरा अहिल्या चरित्रवान नहीं थी?

इसका हल भी बालकाण्ड सर्ग 51 में गौतम के पुत्र शतानंद अपनी माता को यशस्विनी तथा देवों में आतिथ्य पाने योग्य कहा हैं।

49/19 में लिखा हैं की राम और लक्ष्मण ने अहिल्या के पैर छुए। यही नहीं राम और लक्ष्मण को अहिल्या ने अतिथि रूप में स्वीकार किया और पाद्य तथा अधर्य से उनका स्वागत किया। यदि अहिल्या का चरित्र सदिग्ध होता तो क्या राम और लक्ष्मण उनका आतिथ्य स्वीकार करते।

सत्य क्या हैं ।

विश्वामित्र ऋषि से तपोनिष्ठ अहिल्या का वर्णन सुनकर जब राम और लक्ष्मण ने गौतम मुनि के आश्रम में प्रवेश किया तब उन्होंने अहिल्या को जिस रूप में वर्णन किया हैं उसका वर्णन वाल्मीकि ऋषि ने बाल कांड 49/15-17 में इस प्रकार किया हैं

स तुषार आवृताम् स अभ्राम् पूर्ण चन्द्र प्रभाम् इव |
मध्ये अंभसो दुराधर्षाम् दीप्ताम् सूर्य प्रभाम् इव || ४९-१५

सस् हि गौतम वाक्येन दुर्निरीक्ष्या बभूव ह |
त्रयाणाम् अपि लोकानाम् यावत् रामस्य दर्शनम् |४९-१६

तप से देदियमान रूप वाली, बादलों से मुक्त पूर्ण चन्द्रमा की प्रभा के समान तथा प्रदीप्त अग्नि शिखा और सूर्य से तेज के समान अहिल्या तपस्या में लीन थी।

सत्य यह हैं की देवी अहिल्या महान तपस्वी थी जिनके तप की महिमा को सुनकर राम और लक्ष्मण उनके दर्शन करने गए थे। विश्वामित्र जैसे ऋषि राम और लक्ष्मण को शिक्षा देने के लिए और शत्रुयों का संहार करने के लिए वन जैसे कठिन प्रदेश में लाये थे।

किसी सामान्य महिला के दर्शन कराने हेतु नहीं लाये थे।

कालांतर में कुछ अज्ञानी लोगो ने ब्राह्मण ग्रंथों में इन्द्र के लिए प्रयुक्त शब्द “अहल्यायैजार” के रहस्य को न समझ कर इन्द्र द्वारा अहिल्या से व्यभिचार की कथा गढ़ ली। प्रथम इन्द्र को जिसे हम देवता कहते हैं व्यभिचारी बना दिया। भला जो व्यभिचारी होता हैं वह देवता कहाँ से हुआ?

द्वितीय अहिल्या को गौतम मुनि से शापित करवा कर उस पत्थर का बना दिया जो असंभव हैं।

तीसरे उस शाप से मुक्ति का साधन श्री राम जी के चरणों से उस शिला को छुना बना दिया।

मध्यकाल को पतन काल भी कहा जाता हैं क्यूंकि उससे पहले नारी जाति को जहाँ सर्वश्रेष्ठ और पूजा के योग्य समझा जाता था वही मध्यकाल में वही ताड़न की अधिकारी और अधम समझी जाने लगी।

इसी विकृत मानसिकता का परिणाम अहिल्या इन्द्र की कथा का विकृत रूप हैं।

सत्य रूप को स्वामी दयानंद ने ऋग्वेदादीभाष्य भूमिका में लिखा हैं की यहाँ इन्द्र सूर्य हैं, अहिल्या रात्रि हैं और गौतम चंद्रमा हैं. चंद्रमा रूपी गौतम रात्रि अहिल्या के साथ मिलकर प्राणियो को सुख पहुचातें हैं. इन्द्र यानि सूर्य के प्रकाश से रात्रि अहिल्या निवृत हो जाती हैं अर्थात गौतम और अहिल्या का सम्बन्ध समाप्त हो जाता हैं.

इन सब तर्कों और प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की अहिल्या उद्धार की कथा काल्पनिक हैं। अहिल्या न तो व्यभिचारिणी थी न ही उसके साथ किसी ने छल किया था। सत्य यह हैं की वह महान तपस्विनी थी जिनके दर्शनों के लिए , जिनसे ज्ञान प्राप्ति के लिए ऋषि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को वन में गए थे।

डॉ विवेक आर्य

2 comments:

  1. Bhai mene pada tha ki Baal kaand me 74 Chapter me Raja Rajan dwara Ram ko diye gaye Dahej ka Varnan hai
    Ispar Kuch Prakash daal sakte hai aap ???

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  2. वेदों के अनुसार सबसे उत्तम दहेज़ कन्या के गुण हैं। और यथार्थ में राजा जनक ने भी अपनी पुत्री सीता को अनेक गुणों से परिभाषित किया था। चूँकि वह राजा थे और दूसरे राजा दशरथ के पुत्र से उनका सम्बन्ध स्थापित हुआ था इसलिए विवाह में स्वेच्छा से उपहार में उन्होंने जो कुछ भी दिया उसे आप दहेज नहीं कह सकते क्यूंकि वह माँगने पर नहीं दिया गया था।

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