मातृभूमि की सेवा में जिन्होंने अर्पण किया
अपना शीश
क्या तुम्हें वे याद हैं जिन्हें भारत माँ
देती अपना आशीष
भूल गये वीर दाहिर को जब सिंध की छाती पर
कासिम का घोड़ा दौड़ा था
स्वाभिमानी राजा दाहिर के परिवार ने बलिदान
से उसका मस्तक फोड़ा था
भूल गये उन बाप्पा रावल को जो काबुल किले पर
चढ़ आया था
जीत के साथ साथ तुर्क स्त्री को अपने घर की
शोभा बना लाया था
भूल गये उन राजा सुहेलदेव पासी को जिन्होंने
गाज़ी मिया को दोज़ख पहुँचाया था
हिन्दू राजाओं ने बाराबंकी के मैदान में
तुर्क को मस्तक पर तीर मार गिराया था
भूल गये उन सांगा को जिनसे बाबर अन्दर तक
थर्राया था
राजपूतों की नंगी तलवार ने रण में ऐसा
पराकर्म दिखलाया था
भूल गये उन महाराणा प्रताप को जिनके लहू से
हल्दी घाटी रंगी थी
कायर मुगलों की सेना भाग भाग कर पहाड़ों के
पार तक दौड़ी थी
भूल गये छत्रसाल को जिन्होंने औरंगजेब का
दंभ कुचला था
बुंदेले वीर ने मुग़ल राज की छाती पर अपना
झंडा गाड़ा था
भूल गये शिवाजी को जिन्होंने औरंगजेब का
सपना छीना था
आलमगीर की नाक के नीचे दक्कन का छत्र बड़ा
सजीला था
भूल गये उन गुरु को जिनका नाम 'हिन्द की चादर' था
स्वप्राण देकर हिन्दू धर्म रक्षा की ऐसा
उनका आदर था
भूल गये उन गुरु गोविन्द जी को जिन्होंने
खालसा बनाया था
अपने चारों पुत्रों का बलिदान देकर हिन्दू
धर्म को बचाया था
भूल गये उस बन्दे बैरागी को जिसका तुर्क नाम
'भूत' था
जिसकी सरहिंद विजय से सारा हिन्दू समाज
अभिभूत था
भूल गये हरी सिंह 'नलवा' को जो महाराज रंजित सिंह का दामोदार था
पठानों का दमन करने वाला वो अकेला
अफगानिस्तान के किलेदार था
भूल गये दीवान गिडूमल की कन्या को जिसे
मुस्लिम मीर ने डोला भेजा था
भूखी कन्या ने मीर की जगह अपने पिता की
तलवार को अपना वर बोला था
भूल गये उस वीर हकीक़त राय को जो हिन्द का
भूषण था
तन दिया मगर अपना धर्म न दिया ऐसा उसका
आभूषण था
हिन्दू हैं हम,
देश हैं हमारा गौरव और संस्कृति हमारा
अभिमान हैं
वेदों के धर्म मार्ग पर चलना चलाना ही हमारा
निज स्वाभिमान हैं
डॉ विवेक आर्य
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