शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान के जन्म दिवस पर स्मरण विशेष
(22 अक्टूबर 1900 – 19 दिसम्बर 1927)
भारतीय स्वतंत्र संग्राम में अंग्रेजी सरकार की रातों की नींद उड़ाने वाला स्वर्णिम अध्याय था काकोरी रेल कांड. रातों रात आज़ादी के दीवानों ने अपने आन्दोलन को गति देने के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ती के लिए काकोरी रेलवे स्टेशन से चली ट्रेन में डाका दाल कर न केवल सरकारी खजाना लूट लिया बल्कि सोई हुई अंग्रेजी सरकार को उनकी नाक के नीचे खुली चुनोती दे डाली. इस आन्दोलन के मुखिया थे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और उनकी अगुवाई में वीर चंदेर्शेखर आजाद और वीर अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जैसे क्रन्तिकारी थे.बिस्मिल जी और अशफ़ाक़ुल्ला जी गहरे दोस्त थे. एक थे सत्यार्थ प्रकाश पढ़ कर आर्य बने ,ब्रहमचर्य व्रत का पालन करने वाले, सुबह शाम संध्या उपासना हवन करने वाले आर्यसमाजी बिस्मिल जी और दूसरी तरफ थे पांच वक्त के नमाज़ी कट्टर मुस्लमान अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी. दोनों उर्दू के अच्छे शायर थे, क्रांतिकारी थे पर धार्मिक मान्यता से विभिन्न होते हुए भी दो शरीर और एक प्राण के समान थे.
शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान के जीवन की कुछ प्रेरणादायक घटनाये
एक बार शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान किसी कारन से बेहोश हो गए तो बेहोशी की हालत में राम राम पुकारने लगे. उनके घर वाले अचरज में आकार सोचने लगे की एक मुस्लमान होते हुए भी वे राम राम क्यूँ पुकार रहे हैं. पास खड़ा एक मित्र इस रहस्य को समझ गया और राम प्रसाद बिस्मिल जी को बुला लाया जिनके आने से अशफ़ाक़ुल्ला जी शांत हो गए. ऐसे थी दोनों की मित्रता जो मत मतान्तर के आपसी भेदभाव से कहीं ऊपर उठ कर थी.
एक बार कानपूर आर्यसमाज में बिस्मिल जी और अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी कुछ मंत्रणा कर रहे थे की कुछ मुस्लिम दंगाइयों ने वहां हमला कर दिया. अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी ने अपनी पिस्तोल निकल कर उनकी तरफ करके चेतावनी देकर कहा की रूक जाओ यह आर्यसमाज मेरा घर हैं अगर इसकी एक ईट को भी नुकसान पंहुचा तो आज तुम में से कोई जिन्दा नहीं बचेगा.दंगाई डर कर वापिस भाग गए.
जब जेल में अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान और बिस्मिल जी बंद थे तो एक मुस्लिम थानेदार ने अशफ़ाक़ुल्ला जी को इस्लाम की दुहाई देते हुए कहाँ की तुम एक मुस्लमान होते हुए भी हिन्दुओं का साथ दे रहे हो तो अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी ने कहाँ की मेरे लिए एक हिन्दू राष्ट्र अंग्रेजी हुकूमत से कहीं ज्यादा अच्छी हैं.वह मुस्लिम थानेदार मायूस होकर चला गया पर इस्लाम की दुहाई देकर उन्हें सरकारी गवाह नहीं बना सका.
धन्य हैं वह माँ जिनकी कोख से अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जैसे शहीद पैदा हुए जिनके लिए मत से ऊपर उनका देश था. आज के मुसलमानों के लिए अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान सबसे आदरणीय एवं अनुसरणीय मुसलमान हैं क्यूंकि उन्होंने देश को अंग्रेजों से आजाद करवाने में अपनी शक्ति लगाई नाकि पाकिस्तान को बनाने में.
अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान की शायरी उनके सच्चे मुस्लमान होने का सबूत हैं जिसमे उनकी इच्छा जन्नत की नहीं अपितु बार बार जन्म लेकर इस देश की सेवा करने की हैं.
उनका यह प्रसिद्द शायर हैं
“जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा”.
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा.”
आज शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान के जन्म दिवस पर हम ईश्वर से यहीं प्रार्थना करते हैं की देश के लाखों मुस्लमान युवक उन्हें अपना आदर्श मानकर देश की सेवा करे।
डॉ विवेक आर्य
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