छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनते ही हर भारतवासी का सीना उनकी न्यायप्रियता, वीरता, शौर्यता के कारण गर्व से फुल जाता हैं। कुछ पक्ष पाती इतिहासकारो ने शिवाजी की भरसक आलोचना यह कहते हुए की हैं शिवाजी केवल और केवल हिन्दू हितों के समर्थक थे। पर इतिहास सभी प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम हैं अगर पक्षपात रहित छानबीन की जाये।
वीर शिवाजी द्वारा उनके राज्य में हिन्दू जनता की रक्षा करना, मन्दिरों का पुनरुद्धार करवाना, गौ हत्या पर बंदी बना कर दंड आदि देना, नेताजी पालकर जैसे पहले हिन्दू, बाद में जबरदस्ती मुस्लिम बनाये गए वीरों की फिर से शुद्धि कर हिन्दू बनाना तो सार्वजानिक तथ्य हैं।
औरंगजेब ने अपने ही पूर्वज अकबर द्वारा अपनाई गई हिन्दू निति जिसमे विशेष रूप से राजपूत राजाओं के साथ मित्रता, विवाहिक सम्बन्ध एवं आपस में हिन्दू राजाओं को लड़ाना शामिल था का त्याग कर सब प्रकार से हिन्दू प्रजा का दमन करना आरंभ कर दिया।
मिस्टर पारसनिस द्वारा लिखित मुहम्मद आदिल शाह द्वारा जारी किये गए हुकुमनामे से हमें भली भांति उस काल की परिस्थितियों के विषय में मालूम चलता हैं।
“सभी उच्च दर्जे के पदों पर केवल मुसलमानों के लिए आरक्षित हो, इनमें से कोई भी किसी हिन्दू को नहीं मिलनी चाहिए, कुछ छोटे पदों पर हिंदुओं को जरुर नौकरिया दी जा सकती हैं। सबसे अमिर हिन्दू का दर्जा भी एक गरीब मुसलमान से ऊपर नहीं होना चाहिए। एक हिन्दू और एक मुस्लिम के विवाद में भी काज़ी को किसी भी हालत में मुस्लिम को दण्डित नहीं करना चाहिये चाहे, मुस्लिम ने हिन्दू पर जुल्म किया हो। सभी हिन्दुओं के लिए जजिया देना अनिवार्य हो। जो मुस्लिम क्लर्क जजिया ले रहा हो वह अपने स्थान पर सदा बैठा रहे चाहे अमिर से अमिर हिन्दू भी उसके सामने क्यूँ न खड़ा हो। (सन्दर्भ- Parasnis I,S.,VOL.II,p.26)
दो निर्देशों में क़ाज़ी को स्पष्ट रूप से कहा गया था की उसे मराठा राज्य में हिन्दू मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ना हैं। (सन्दर्भ – Wad and Parasnis-Sanadapatren,pp.77,81) ”
पाठक आसानी से मुगल राज्य में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को समझ सकते हैं। वीर शिवाजी ने हिन्दुओं की ऐसी दशा को देखकर व्यथित मन से औरंगजेब को उसके अत्याचारों से अवगत करने के लिए एक पत्र लिखा था। जिसे सर जदुनाथ सरकार अपने शब्दों में तार्किक, शांत प्रबोधन एवं राजनितिक सूझ बुझ से बुना गया बताते हैं।
वीर शिवाजी लिखते हैं की सभी जगत के प्राणी ईश्वर की संतान हैं। कोई भी राज्य तब उन्नति करता हैं जब उसके सभी सदस्य सुख शांति एवं सुरक्षा की भावना से वहाँ पर निवास करते हैं। इस्लाम अथवा हिन्दू एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। कोई मस्जिद में पूजा करता हैं , कोई मंदिर में पूजा करता हैं पर सभी उस एक ईश्वर की पूजा करते हैं। यहाँ तक की कुरान में भी उसी एक खुदा या ईश्वर के विषय में कहा गया हैं जो केवल मुसलमानों का खुदा नहीं हैं बल्कि सभी का खुदा हैं। मुग़ल राज्य में जजिया एक नाजायज़, अविवेकपूर्ण,अनुपयुक्त अत्याचार हैं जो तभी उचित होता जब राज्य की प्रजा सुरक्षित एवं सुखी होती पर सत्य यह हैं की हिन्दुओं पर जबरदस्ती जजिया के नाम पर भारी कर लगाकर उन्हें गरीब से गरीब बनाया जा रहा हैं।
धरती के सबसे अमीर सम्राट के लिए गरीब भिखारियों, साधुओं ,ब्राह्मणों, अकाल पीड़ितो पर कर लगाना अशोभनीय हैं।
मच्छर और मक्खियों को मारना कोई बहादुरी का काम नहीं हैं।
अगर औरंगजेब में कोई वीरता हैं तो उदयपुर के राणा और इस पत्र के लेखक से जजिया वसूल कर दिखाए।
औरंगजेब अपने कई दुर्ग और क्षेत्र शिवाजी के हमलों में गवा चूका था और उसे यह सीधी चुनौती वीर शिवाजी द्वारा दी गई थी की अगर उसने हिन्दू जनता पर जजिया के रूप में अत्याचार करना बंद नहीं किया तो उसका परिणाम ठीक नहीं होगा।
अपने अहंकार और धर्मान्धता में चूर औरंगजेब ने शिवाजी के पत्र का कोई उत्तर न दिया पर शिवाजी ने एक ऐसी जन चेतना और अग्नि प्रजलवित कर दी थी जिसको बुझाना आसान नहीं था।
वीर शिवाजी हिन्दू धर्म के लिए उतने ही समर्पित थे जितना औरंगजेब इस्लाम के लिए समर्पित था परन्तु दोनों में एक भारी भेद था।
शिवाजी अपने राज्य में किसी भी धर्म अथवा मत को मानने वालों पर किसी भी का अत्याचार करते थे एवं उन्हें अपने धर्म को मानने में किसी भी प्रकार की कोई मनाही नहीं थी।
इस्लाम के विषय में शिवाजी की निति
१. अफजल खान को मरने के बाद उसके पूना, इन्दापुर, सुपा, बारामती आदि इलाकों पर शिवाजी का राज स्थापित हो गया। एक ओर तो अफजल खान ने धर्मान्धता में तुलजापुर और पंडरपुर के मंदिरों का संहार किया था दूसरी और शिवाजी ने अपने अधिकारीयों को सभी मंदिर के साथ साथ मस्जिदों को भी पहले की ही तरह दान देने की आज्ञा जारी की थी।
२. बहुत कम लोगों को यह ज्ञात हैं की औरंगजेब ने स्वयं शिवाजी को चार बार अपने पत्रों में इस्लाम का संरक्षक बताया था। ये पत्र १४ जुलाई १६५९, २६ अगस्त एवं २८ अगस्त १६६६ एवं ५ मार्च १६६८ को लिखे गए थे। (सन्दर्भ Raj Vlll, 14,15,16 Documents )
३. डॉ फ्रायर ने कल्याण जाकर शिवाजी की धर्म निरपेक्ष नीति की अपने लेखों में प्रशंसा की हैं। Fryer,Vol I, p. 41n
४. ग्रांट डफ़ लिखते हैं की शिवाजी ने अपने जीवन में कभी भी मुस्लिम सुल्तान द्वारा दरगाहों ,मस्जिदों , पीर मज़ारों आदि को दिए जाने वाले दान को नहीं लूटा। सन्दर्भ History of the Mahrattas, p 104
५. डॉ दिल्लों लिखते हैं की वीर शिवाजी को उस काल के सभी राज नीतिज्ञों में सबसे उदार समझा जाता था।सन्दर्भ Eng.Records II,348
६. शिवाजी के सबसे बड़े आलोचकों में से एक खाफी खाँ जिसने शिवाजी की मृत्यु पर यह लिखा था की अच्छा हुआ एक काफ़िर का भर धरती से कम हुआ भी शिवाजी की तारीफ़ करते हुए अपनी पुस्तक के दुसरे भाग के पृष्ठ 110 पर लिखता हैं की शिवाजी का आम नियम था की कोई मनुष्य मस्जिद को हानि न पहुँचायेगा , लड़की को न छेड़े , मुसलमानों के धर्म की हँसी न करे तथा उसको जब कभी कही कुरान हाथ आता तो वह उसको किसी न किसी मुस्लमान को दे देता था। औरतों का अत्यंत आदर करता था और उनको उनके रिश्तेदारों के पास पहुँचा देता था। अगर कोई लड़की हाथ आती तो उसके बाप के पास पहुँचा देता। लूट खसोट में गरीबों और काश्तकारों की रक्षा करता था। ब्राह्मणों और गौ के लिए तो वह एक देवता था। यद्यपि बहुत से मनुष्य उसको लालची बताते हैं परन्तु उसके जीवन के कामों को देखने से विदित हो जाता हैं की वह जुल्म और अन्याय से धन इकठ्ठा करना अत्यंत नीच समझता था।
सन्दर्भ लाला लाजपत राय कृत छत्रपती शिवाजी पृष्ठ 132 ,संस्करण चतुर्थ, संवत 1983
७. शिवाजी जंजिरा पर विजय प्राप्त करने के लिए केलशी के मुस्लिम बाबा याकूत से आशीर्वाद तक मांगने गए थे।
सन्दर्भ – Vakaskar,91 Q , bakshi p.130
८. शिवाजी ने अपनी सेना में अनेक मुस्लिमों को रोजगार दिया था।
१६५० के पश्चात बीजापुर, गोलकोंडा, मुग़लों की रियासत से भागे अनेक मुस्लिम , पठान व फारसी सैनिकों को विभिन्न ओहदों पर शिवाजी द्वारा रखा गया था जिनकी धर्म सम्बन्धी आस्थायों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाता था और कई तो अपनी मृत्यु तक शिवाजी की सेना में ही कार्यरत रहे।
कभी शिवाजी के विरोधी रहे सिद्दी संबल ने शिवाजी की अधीनता स्वीकार कर की थी और उसके पुत्र सिद्दी मिसरी ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी की सेना में काम किया था।
शिवाजी की दो टुकड़ियों के सरदारों का नाम इब्राहीम खान और दौलत खान था जो मुग़लों के साथ शिवाजी के युद्ध में भाग लेते थे।
क़ाज़ी हैदर के नाम से शिवाजी के पास एक मुस्लिम था जो की ऊँचे ओहदे पर था।
फोंडा के किले पर अधिकार करने के बाद शिवाजी ने उसकी रक्षा की जिम्मेदारी एक मुस्लिम फौजदार को दी थी।
बखर्स के अनुसार जब आगरा में शिवाजीको कैद कर लिया गया था तब उनकी सेवा में एक मुस्लिम लड़का भी था जिसे शिवाजी के बच निकलने का पूरा वृतांत मालूम था। शिवाजी के बच निकलने के पश्चात उसे अत्यंत मार मारने के बाद भी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए अपना मुँह कभी नहीं खोला था। शिवाजी के सेना में कार्यरत हर मुस्लिम सिपाही चाहे किसी भी पद पर हो , शिवाजी की न्याय प्रिय एवं सेक्युलर नीति के कारण उनके जीवन भर सहयोगी बने रहे।
सन्दर्भ shivaji the great -dr bal kishan vol 1 page 177
शिवाजी सर्वदा इस्लामिक विद्वानों और पीरों की इज्ज़त करते थे। उन्हें धन,उपहार आदि देकर सम्मानित करते थे।
उनके राज्य में हिन्दू-मुस्लिम के मध्य किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं था। जहाँ हिंदुयों को मंदिरों में पूजा करने में कोई रोक टोक नहीं थी वहीँ मुसलमानों को मस्जिद में नमाज़ अदा करने से कोई भी नहीं रोकता था।
किसी दरगाह, मस्जिद आदि को अगर मरम्मत की आवश्यकता होती तो उसके लिए राज कोष से धन आदि का सहयोग भी शिवाजी द्वारा दिया जाता था। इसीलिए शिवाजी के काल में न केवल हिन्दू अपितु अनेक मुस्लिम राज्यों से मुस्लिम भी शिवाजी के राज्य में आकर बसे थे।
शिवाजी की मुस्लिम नीति और न्याप्रियता की जीती जागती मिसाल हैं।
डॉ विवेक आर्य
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