Tuesday, June 5, 2018

मतों व सम्प्रदायों में दर्शन का लोप



◼ मतों व सम्प्रदायों में दर्शन का लोप ◼
✍🏻 पंडित चमूपति एम॰ए॰
📚 आर्य मिलन

आर्य — आप परमात्मा का अस्तित्व मानते हैं ?
मौलवी साहब - हाँ ।

आर्य - जीव तथा प्रकृति के अस्तित्व पर आपका क्या विचार है ?
मौलवी — उन्हें भी मानते हैं ।

आर्य - ईश्वर तथा जीव एवं प्रकृति के अस्तित्व में क्या अन्तर मानते हैं ?
मौलवी साहब - ईश्वर का अस्तित्व अपना है ; जीव एवं प्रकृति का अस्तित्व अपना नहीं है , अपितु यह उन्हें ईश्वर ने दिया है ।

आर्य - ईश्वर ने क्या दिया है ?
मौलवी — अस्तित्व ।

आर्य - क्या इस अस्तित्व के देने से पूर्व आत्मा तथा प्रकृति विद्यमान थे या नहीं ?
मौलवी - यदि उनका अस्तित्व होता , तो देने की आवश्यकता क्या थी ? अस्तित्व देने का अर्थ ही यही है कि वे पहले विद्यमान न थे ।

आर्य — यदि वे थे ही नहीं , तो ईश्वर ने अस्तित्व दिया किसे था ?
मौलवी - आत्मा तथा प्रकृति को ।

आर्य — जिसका अस्तित्व ही न हो , उसे भी कुछ दिया जा सकता है ? लेनेवाला उपस्थित ही नहीं , और देनेवाला दे रहा है , यह नया तर्क है !
मौलवी साहब - ईश्वर अनादि काल से देता आया है ।

आर्य - बहुत अच्छा ! क्या देता आया है ?
मौलवी — अस्तित्व ।

आर्य - जो वस्तु अनादि काल से दी जाती रही है , वह अनादि है अथवा नहीं ?
मौलवी - हाँ ! अस्तित्व अनादि है , तभी तो . ईश्वर अनादि काल से देता आया है ।

आर्य - आप ईश्वर के अस्तित्व में तथा जीव और प्रकृति के अस्तित्व में कोई अन्तर मानते हैं या दोनों का अस्तित्व एक - सा मानते हैं ?
मौलवी - ये दोनों अस्तित्व ( जीव - प्रकृति का तथा ईश्वर का ) विरोधी अस्तित्व हैं ।

आर्य - अस्तित्व का विरोधी तो अनस्तित्व ( अभाव ) होता है । दो अस्तित्व एक - दूसरे के विरोधी कैसे ? यदि आप विरोध को ही मानते हैं तो परमात्मा को सत् एवं जीव - प्रकृति को असत् मान लीजिये , अथवा इसके उलट मन्तव्य बना लीजिये कि अस्तित्व .......
मौलवी - नहीं । ईश्वर का अस्तित्व अपना है , जीव तथा प्रकृति का अस्तित्व उधार का है ।

आर्य — यह उधार वाला अस्तित्व कब से उधार मिलने लगा ?
मौलवी — अनादि काल से ।

आर्य - उधार लिया अस्तित्व भी एक गुण है , इसका गुणी चाहिए , क्या यह गुणी अनादि काल से है या नहीं ?
मौलवी - उधार अस्तित्व के गुणी जीव तथा प्रकृति हैं और ये जातिरूप से अनादि हैं ।

आर्य - और ये जातिरूप से अनन्त काल तक रहेंगे ?
मौलवी — यह मनुष्य जातिरूप से भी तथा अपने वैयक्तिक रूप में भी अनन्त काल तक रहेंगे ।

आर्य - क्या अनादि उधारवाले अस्तित्व के गुणी कोई मनुष्य होंगे ?
मौलवी — हाँ ! मनुष्य जातिरूप से अनन्त काल तक उधार लिये अस्तित्व का गुणी है । परन्तु हर मनुष्य ऐसा नहीं ।

आर्य - वह जाति भी कैसी अनादि है जिसका कोई व्यक्ति अनादि न हुआ हो ? क्या अल्लाह तआला ने जाति बनाई या व्यक्ति ?
मौलवी - जाति ।

आर्य - क्या जाति का व्यक्ति के बिना निर्माण सम्भव है ?
मौलवी - नहीं । पैदा तो व्यक्ति किये जाते हैं और उनके एकत्रित रूप की कल्पना ‘ जाति ' कहलाती है ।

आर्य - बहुत अच्छा ! जब खुदा अनादि काल से उत्पन्न करता आया है और जाति की उत्पत्ति व्यक्ति के उत्पन्न किये बिना सम्भव नहीं है , तो व्यक्तियों को अनादि मानिये , उनका अस्तित्व उधार लिया हुआ सही , होंगे तो अनादि ? "
मौलवी - हाँ , यह तो मानना पड़ेगा । सनातन उत्पत्ति में कुछ मनुष्यों का उधार लिया अस्तित्व अनादि होगा , नहीं तो अल्लाहतआला की अनादि सृजन - शक्ति समाप्त हो जाएगी ।

आर्य - जब आप मनुष्यों का अनादित्व , व्यक्ति - रूप से भी मानते हैं , तब तो वे अनादि मनुष्य अनन्त काल तक रहेंगे ?
मौलवी - हाँ , हर मनुष्य अनादि है , अनादि मनुष्य अनन्त काल तक रहेंगे । परन्तु भाई , इससे कुफ्र लगता है ।

आर्य - कुफ्र ( नास्तिकता ) अस्तित्व में नहीं होता क्योंकि वह तो इस समय भी है , हम भी मौजूद हैं और ईश्वर भी ।
मौलवी — मैंने आपसे कहा था कि हमारा अस्तित्व ईश्वर की देन है जबकि ईश्वर का अस्तित्व अपना है ।

आर्य — इसकी वास्तविकता तो आपने सुन ली । आपने उसे ईश्वर की देन भी कहा , और अनादि भी ; भला कोई अनादि वस्तु देन भी होती है ? देनेवाली वस्तु वह होती है , जो लेनेवाले में पहले न हो , और कुछ काल पश्चात् दी जाए ; और अनादि अस्तित्व वह होता है जो पहले था । अस्तित्व देन नहीं होता ; अपने स्वरूप से होता है अथवा दूसरे के कारण से । दूसरे के कारण से गुणों , कमों , रूपों , शक्तियों का अस्तित्व होता है । परन्तु आप यह तो न मानेंगे कि आत्मा एवं प्रकृति ईश्वर के कर्म , रूप अथवा शक्तियों या गुण हैं ?
मौलवी - यह मन्तव्य तो ‘ सर्व खल्विदं ब्रह्म ' वालों का है , हम त्रुटियों तथा दुर्बलताओं को ईश्वर का गुण नहीं मान सकते ।

आर्य - परन्तु संसार में तो त्रुटि एवं दुर्बलता मौजूद हैं ?
मौलवी — हां , हैं तो सही !

आर्य - तो ये किसके गुण हुए !
मौलवी - ईश्वर से इतर के ।

आर्य - वस , यही हमारा मन्तव्य है कि दुर्बलता एक गुण है जो वास्तविक है । इसका गुणी ईश्वर नहीं , उसके अतिरिक्त कोई और है , और वह है आत्मा तथा प्रकृति । आप कुफ्र से भयभीत थे कि आत्मा तथा प्रकृति अनादि न माने जाएँ । हमें इस कुफ्र का भय है कि आत्मा तथा प्रकृति की अल्पज्ञता एवं जड़ता ईश्वर के गुण न बनें । आप बताएँ कुफ्र का पाप आप पर लगता है कि हम पर ?

[ ऊपर लिखी गयी वार्तालाप पंडित चमूपति द्वारा लिखित पुस्तक “अनादि तत्व”(जवाहिरे जावेद) से ली गयी है , अनादि तत्व उच्च कोटि की दार्शनिक पुस्तक है , जो की “हदूसे रूहो माद्दः” का युक्तियुक्त सप्रमाण उत्तर जवाहिरे जावेद का हिन्दी संस्करण है । जिज्ञासु पाठक इसको पढ़ कर लाभान्वित होंगे । पुस्तक डाउनलोड करे - https://drive.google.com/open?id=1aqJIZik1zARHSi2xKm_TcDXj8bdd00q-  📚 आर्य मिलन ]

✍🏻 पंडित चमूपति एम॰ए॰
📚 आर्य मिलन

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