सलंग्न चित्र- अमर क्रांतिकारी रामप्रसाद जी का अंतिम चित्र अपने पिता के कन्धों में उनका पृथिव शरीर
अमर बलिदानी रामप्रसाद बिस्मिल
लेखक- वीर भगत सिंह
(काकोरी के वीरों का परिचय और उनके फाँसी के दृश्य नामक लेख क्रांतिकारी भगत सिंह जी की लेखनी से “किरति ” नामक पत्रिका में जनवरी १९२७ और मई १९२७ को छपा था। यह लेख उसी लेख का अंश है- डॉ विवेक आर्य )
रामप्रसाद बिस्मिल बड़े होनहार नौजवान थे। गजब के शायर थे। देखने में भी बहुत सुंदर थे। योग्य बहुत थे। जानने वाले कहते है कि यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी ओर समय पैदा हुए होते तो सेना अध्यक्ष होते। आपको पूरे काकोरी षडयन्त्र का नेता माना गया है। चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे, लेकिन फिर भी पंडित जगत नारायण जैसे सरकारी वकील की सुध बुध भुला देते थे। चीफ़ कोर्ट की अपनी अपील खुद ही लिखी थी, जिससे की जजों को कहना पड़ा कि इसे लिखने में जरुर ही किसी बहुत बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति का हाथ है। १९ तारीख की शाम कप आपको फाँसी दी गयी। १८ की शाम को जब आपको दूध दिया गया, तो आपने यह कहकर इंकार कर दिया कि अब मैं माँ का दूध ही पियूँगा। १८ को आपकी माँ से मुलाकात हुई। माँ को मिलते ही आपकी आँखों से अश्रु बह चले। माँ बहुत हिम्मत वाली देवी थी। आपसे कहने लगी- हरिश्चंद्र, दधिची आदि बुजुर्गों की तरह वीरता, धर्म वह देश के लिए जान दे, चिंता करने और पछताने की जरुरत नहीं। आप हँस पड़े। कहाँ! माँ मुझे क्या चिंता और पछतावा, मैंने कोई पाप नहीं किया। में मौत से नहीं डरता लेकिन माँ! लेकिन माँ आग के पास रखा घी पिघल ही जाता है। तेरा मेरा सम्बन्ध ही कुछ ऐसा है कि पास होते ही आँखों में अश्रु उमर पड़े। नहीं तो में बहुत खुश हूँ। फाँसी पर ले जाते समय आपने बड़े जोर से कहाँ ‘वन्दे मातरम’ ‘भारत माता की जय ‘ और शांति से चलते हुए कहाँ-
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे
बाकि न में रहूँ, न मेरी आरजू रहे
जब तक की तन में जान रगों में लहूँ रहे
तेरी ही जिक्र-ए-यार, तेरी जुस्तजू रहे!
फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहाँ
(मैं ब्रिटिश राज्य का पतन चाहता हूँ )
फिर ईश्वर के आगे प्रार्थना की और फिर एक मंत्र पढना शुरू किया। रस्सी खींची गई। रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गए। आज वह वीर इस संसार में नहीं है। उसे अंग्रेजी सरकार ने अपना खौफनाफ दुश्मन समझा। आम ख्याल यह है कि उसका कसूर यही था की वह हलम देश में जन्म लेकर भी बड़ा भरी भोझ बन गया था और लड़ाई की विद्या से खूब परिचित था। आपको मैनपुरी षडयन्त्र ने नेताश्री गेंदालाल दीक्षित जैसे शूरवीर ने विशेष तौरपर शिक्षा देकर तैयार किया था। मैनपुरी के मुक़दमे के समय आप भाग कर नेपाल चले गए थे। अब वही शिक्षा आपकी मृत्यु का एक बड़ा कारण हो गयी। ७ बजे आपकी लाश मिली और बड़ा भरी जुलूस निकला गया। स्वदेश प्रेम में आपकी माता नें कहाँ-
“मैं आपने पुत्र की मृत्यु पर प्रसन्न हूँ, दुखी नहीं। मैं श्री रामचंद्र जैसा ही पुत्र चाहती थी। बोलो श्री रामचंद्र की जय। ”
इत्र-फुलेल और फूलों की वर्षा के बीच उनकी उनकी लाश का जुलूस जा रहा था। दुकानदारों ने उनके ऊपर से पैसे फेकें। ११ बजे आपकी लाश शमशान भूमि पहुंची और अंतिम क्रिया समाप्त हुई।
आपके पत्र का आखिरी हिस्सा आपकी सेवा में प्रस्तुत है –
“मैं खूब सुखी हूँ। १९ तारीख को प्रात: जो होना है।उसके लिए तैयार हूँ। परमात्मा काफ़ी शक्ति देंगे। मेरा विश्वास है कि लोगों की सेवा के लिए फिर जल्द ही जन्म लूँगा। सभी से मेरा नमस्कार कहें। दया कर इतना काम और भी करना कि मेरी और से पंडित जगतनारायण (सरकारी वकील जिसने इन्हें फाँसी लगवाने के लिए बहुत जोर लगाया था) को अंतिम नमस्कार कह देना। उन्हें हमारे खून से लथपथ रूपए से चैन की नींद आये। बुढ़ापे में ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे। ”
रामप्रसाद की सारी हसरतें दिल ही दिल में रह गयी। फाँसी से दो दिन पहले से सी. आई. डी. के मिस्टर हैमिल्टन आप लोगों की मिन्नतें करते रहे कि आप मौखिक रूप से सब बातें बता दो। आपको पांच हज़ार रुपया नकद दे दिया जायेगा और सरकारी खर्च पर विलायत भेजकर बैरिस्टर की पढाई करवाई जाएगी। लेकिन आप कब इन बातों की परवाह करने वाले थे। आप हुकुमतों को ठुकराने वाले व कभी कभार जन्म लेने वाले वीरों में से थे। मुक़दमे के दिनों में आपसे जज ने पूछा था,’ आपके पास क्या डिग्री हैं? तो आपने हँसकर जवाब दिया “सम्राट बनने वालों को डिग्री की कोई जरुरत नहीं होती, क्लाइव के पास भी कोई डिग्री नहीं थी। ”
आज वह हमारे बीच नहीं है।आह!!
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