Wednesday, June 16, 2021

स्व० श्री वैद्य दयाकृष्ण आर्य


हिन्दी - रक्षा - सत्याग्रह के अग्रणी योद्धा 
स्व. श्री वैद्य दयाकृष्ण आर्य    (अहिरका जींद)

हिन्दी सत्याग्रह के वैद्य जी के लिखे संस्मरण 
प्रस्तुति :- श्री सहदेव समर्पित संपादक शांतिधर्मी मासिक 
 

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आरम्भिक योजना
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       सन् १९५७ में आर्यसमाज की ओर से हिन्दी आन्दोलन चलाया गया । हरयाणा की ओर से स्वामी रामेश्वरानन्द गुरुकुल घरौंडा जिला करनाल एवं पंजाब राज्य के निर्देशक स्वामी आत्मानन्द जी महाराज थे। सर्वप्रथम वे तत्कालीन पंजाब के मुख्यमन्त्री श्री प्रतापसिंह कौरो से प्रतिनिधिमण्डल के रूप में मिले , परन्तु बिना किसी निष्कर्ष के यह वापिस आ गया। अगले दिन उस समय के प्रसिद्ध समाचार पत्र वीर अर्जुन में स्वामी रामेश्वरानन्द का ब्यान छपा कि हरयाणा - पंजाब के हिन्दी प्रेमियों द्वारा आन्दोलन चलाया जायेगा। यह वार्ता पंजाब के आर्यों तथा हिन्दी प्रेमियों में बिजली की तरह फेल गई। आन्दोलन के लिए लोग तैयार थे। 

       मैं भी पूर्वनियोजित योजनानुसार जीन्द के रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया जहां बहुत ही चहल - पहल थी। वहां नारे भी लग रहे थे। हिन्दी भाषा - अमर रहे। देश धर्म का नाता है - हिन्दी राष्ट्र भाषा हैं। मैंने स्वामी रामेश्वरानन्द जी के चरण - स्पर्श किए एवं सभी रेलगाड़ी में बैठ गए। हम सभी सत्याग्रही अम्बाला छावनी पहुंचे जहां आर्यसमाज अम्बाला के लोग स्वागत के लिए तैयार खड़े थे। यहां भोजन आदि की बहुत उचित व्यवस्था थी। विश्राम के पश्चात् स्वामी जी ने सभी को सरकार से टक्कर एवं संघर्ष के लिए प्रोत्साहित किया। प्रात: काल हम सभी आर्यसमाज सैक्टर २२ ए , चण्डीगढ़ पहुंच गए। यहां स्वामी रामेश्वरानन्द जी का शोले उगलता हुआ भाषण हुआ जिससे सत्याग्रहियों का जोश देखते ही बनता था। 

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पुलिस - प्रशासन की रोक में 
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             आन्दोलन अपनी छटा चण्डीगढ़ की सड़कों पर बिखेर रहा था कि जारों दर्शकों से घिरे एवं साधारण वेशभूषा में पुलिस वालों का तांता लगा था। आगे चलकर पुलिस विभाग की गाड़ियां लगा दी गई एवं हमें कहा गया  कि हम इनमें बैठ लें। जैसे ही स्वामी जी का आदेश मिला सभी गाड़ियों में सवार हो गए। संघर्ष में स्वामी जी के दांत भी टूट गए। लगभग ५० कि० मी० की दूरी पर हमें छोड़कर कहा कि आप सभी उस ट्यूबवैल पर स्नान करके संध्या आदि करलें पुन: आपको जेल ले चलेंगे। हम सभी ज्योंहि ट्यूबवैल की ओर गए तो वे गाड़ियों को भगा  ले गए। रातों रात चलकर प्रात: ७-०० बजे सभी पुनः चण्डीगढ़ पहुंच गए। पुलिस ने फिर गिरफ्तार करके १० कि० मी० चमकौर साहिब के जंगलों में छोड़ आए पुन: वापसी पर गिरफ्तार किए गए एवं नालागढ़ के जंगलों में हमें बाघों के जंगल में छोड़ दिया गया। 

    
        अगले दिन हमें मजिस्ट्रेट के सम्मुख पेश किया गया। उसने हमें न्यायिक हिरासत में भेज दिया एवं हमें अंबाला सैन्ट्रल जेल में रखा गया। यहां के पूर्व कैदियों ने बताया कि यहां केवल ३ रोटियां ही एक समय मिलती हैं - तथा अन्य यातनाएं भी मिलेंगी। हमने हालात देखे तो वैसे ही निकले। हमने वहां भूख हड़ताल कर दी। इस बात से प्रशासन चरमरा गया एवं अलग से रसोइये की व्यवस्था की गई एवं भोजन कुछ काम चलाऊ सा मिलने लगा। हम वहां १० दिनों तक रहे। पुन: ओर अधिक जत्थे वहां आने लगे। 

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पारस्परिक जद्दोजहद एवं जेल स्थानान्तरण
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              जेल में बंद आर्यसमाजियों के अतिरिक्त कुछ पौराणिक हिन्दीप्रेमी भी थे। उनके साथ सामाजिक विषयों पर अधिकांशतया वाक्कलह होता रहा था। पुन : गिरफ्तारी खुल जाने से हमें फिरोजपुर जेल भेजने का आदेश मिला। इस जेल में बंद व्यक्तियों में कुछ न बताया था कि फिरोजपुर जेल एक खतरनाक जेल है। जहां खूंखार लोगों को ही भेजा जाता है। अत: लगभग १०-११ दिनों के उपरान्त हमें रात के ११ बजे फिरोजपुर जेल के लिए रवाना किया गया। लगभग ४०० पुलिस कर्मचारियों के साथ हम फिरोजपुर जेल में पहुंच गए। इस जेल में जानेवाला हिन्दी - सत्याग्रहियों का हमारा पहला जत्था था। यह जेल अम्बाला जेल से कुछ सुविधाजनक थी। भोजन की व्यवस्था वहां से बेहतर एवं वस्त्रादि भी प्रदान किए गए थे। राशन भी उपयुक्त मिलने लगा था। यहां हमारी सन्ध्या हवन की दिनचर्या ठीक हो गई । इस जेल में हमारे जत्थे को हवन - पार्टी के नाम से जाना जाने लगा था। 

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२४ अगस्त १६५७ - हृदय विदारक दिन
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          यह दिन हमारे हिन्दी रक्षा आन्दोलन का एक सर्वाधिक रोंगटे खड़े कर देनेवाला दिन था। समय के ४ बजे थे कोई स्वाध्याय कर रहा था , तो कोई भोजन की तैयारी एवं कुछ गर्मी के कारण इधर - उधर घूम रहे थे।  किसी ने चुपके से बताया कि कैदियों पर लाठी - चार्ज होने वाला है तभी एक पुलिस वाले ने आकर यही चेतावनी दी। सभी सत्याग्रही स्वामी नित्यानन्द के पास आकर बैठने लगे। स्वामी जी ने गायत्री का जाप करने की  सलाह दी। तुरन्त कुछ पुराने कैदी एवं पुलिस वाले लाठियां लेकर आ गए एवं साधुओं एवं अन्य पर गड़ागड़ लाठियों की बौछाए शुरू हो गई। प्रत्येक व्यक्ति को छांट - छांट कर पीटा गया। यह कृत्य घण्टों पर्यन्त चलता रहा एवं वह जेल - बारिग खूनी - बूंदों से लाल हो गई। लगभग ३५० सत्याग्रहियों को चोटें लगी। 

         पुन: हमने अधिक घायलों की देखभाल शुरू की एवं परस्पर सहयोग करते रहे। घण्टो चले इस हृदय विदारक दृश्य ने हिन्दी रक्षा प्रेमियों के दिलों को झकझोर कर रख दिया एवं वह रौंगटे खड़े कर देने वाला दिन आज ४३ वर्ष बाद भी मानस पटल पर दहला देने वाली टीस पैदा करता है। यहां पर कुछ व्यक्तियों को चोटें जान लेवा लगी एवं उन्हें यथा समय चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होने के कारण अत्यधिक व्यथित अवस्था में रहना पड़ा। श्री सुमेरसिंह की शहादत पं० जगदेवसिंह जी सिद्धान्ती जो रोहतक से जत्था लेकर आए थे के साथ एक क्रान्तिकारी विचारों के व्यक्ति थे। इनका नाम श्री सुमेरसिंह था एवं सांपला के पास नयाबास गांव के निवासी थे। इसी उपरोक्त लाठी चार्ज में उन्हें भारी चोटें लगी एवं खून शरीर के अन्दर बह गया। जेल में एक कोई डॉ० थापर से व्यक्ति थे जो विचारों से आर्यसमाजी थे। जेल - इंचार्ज ने श्री सुमेरसिंह की चिकित्सा करने का उनसे आग्रह किया तथा अपने आपको इस लाठी चार्ज से अनभिज्ञ कहा। श्री सुमेरसिंह की हालत बदतर होती जा रही थी एवं यह समाचार जेल से बाहर भी फैल चुका था। लोगों ने धार्मिक स्थानों की ओर बढ़ना शुरू किया। देखते ही देखते ही जेल की ओर बढ़ने लगे। नारे लगने लगे जेलर को बाहर निकालो। वरना जेल तोड़ेंगे। इससे भयभीत होकर हमें वहां के अस्पताल ले जाया गया। यह समय रात्रि ८-३० बजे का था। डॉ० थापर ने शहर के सभी प्राइवेट चिकित्सकों को बुला लिया एवं अत्यधिक गहनता से लोगों की चिकित्सा की जाने लगे। दुर्भाग्य ने अपना परचम जारी रखा। आदरणीय श्री गुनरसिंह की चेतना सचेत न हो सकी। अर्धरात्रि को श्री सुमेरसिंह जी आर्य ने अपनी भौतिक देह को राष्ट्ररक्षा एवं मातृभाषा की बलिवेदी पर समर्पित कर दिया। यह शहादत मेरे जीवन की एक महान् किन्तु हृदयविदारक थी। शहीद सुमेरसिंह तो मातृभूमि पर न्यौछावर हो गए। परन्तु हम उनके सहयोग एवं समर्पणभाव के प्रति नतमस्तक हैं एवं रहेंगे। यह शहादत इतिहास पटल पर सदैव रहेगी एवं लोगों के जीवन में कान्ति का बिगुलवादन करके कुछ करने की प्रेरणा संजोती रहेगी। 

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लोकसभा में हंगामा एवं जेल का निरीक्षण
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       शहीद सुमेरसिंह की मौत का समाचार तत्कालीन दैनिक समाचार पत्रों के मुखपृष्ठों पर छपा। फलस्वरूप लोकसभा में भी हंगामा सड़ा हो गया। श्री घनश्यामदास गप्ता ने प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल महरू से मुलाकात करके रोष प्रकट किया। श्री अलगूराय शास्त्री जेल का निरीक्षण करने आए। उन्होंने तीन दिन पश्चात् रिपोर्ट दी एवं लिखा- “ जेल की इस घटना एवं अत्याचार ने डायर एवं औरंगजेब के जुल्मों - की भी मात दे डालीं। " इस समाचार ने उन लोगों ने हृदयों की भी आघात पहुंचाया जो सत्याग्रहियों के रिश्ते नातेदार एवं परिवारों के थे। बहुतों ने फिरोजपुर की ओर अपने आन्दोलनकारियों से मिलने की ठानी। अत : जन - साधारण में यह चर्चा का विषय बन गया तथा बाहरी वातावरण में गतिशीलता आई।

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ऐतिहासिक - समझौता एवं रिहाई 
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         भाषा - समिति के नेता श्री घनश्यामदास गुप्ता एवं प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरू के बीच प्राथमिकता के आधार पर समझौता हो गया। पं० नेहरू ने एक वक्तव्य के माध्यम से बयान जारी करके कहा कि आर्यसमाज की ९० प्रतिशत मांगें मान ली गई हैं। उन्होंने आर्यनताओं से आन्दोलन वापिसल लेने का निवेदन भी किया तथा आश्वासन दिया कि मांगें विचारपूर्वक मान ली जायेंगी। अत: एक ऐतिहासिक समझौते एवं छ: माह के कठोर कारावास के उपरान्त हमें २८ दिसम्बर १९५७ की रात के १२ बजे जेलों से रिहा कर दिया गया।

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