Monday, June 14, 2021

स्वामी रत्नदेव जी सरस्वती


पूज्य स्वामी रत्नदेव जी सरस्वती    
गुरुकुल कुम्भा खेड़ा एवं कन्या गुरुकुल खरल 
के संस्थापक 

लेखक :- श्री दिलबाग शास्त्री 
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा 

         ऋषि - मुनियों की पावन वसुन्धरा हरियाणा जो प्राचीन काल से वेद मन्त्रों एवं यज्ञों की सुगन्धित हवाओं से हमेशा सराबोर रही है। इस पवित्र भूमि में अनेक ऋषि - मुनियों ने अपने तप से हमेशा ही समाज को नई दिशा प्रदान की है। उन्हीं महान आत्माओं में से स्वामी रत्नदेव जी सरस्वती भी एक थे , जिनका सम्पूर्ण जीवन ही समाज के लिए समर्पित था। वे समाज के दुख - दर्द को अपना दुःख मानते हुए , उसे मिटाने में ही सच्चा सन्तोष अनुभव करते थे। इस महान आत्मा के जीवन का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:- 

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जन्म एवं बाल्यावस्था 
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            हरियाणा के ऐतिहासिक जिला जीन्द से पन्द्रह कि०, मी०, पूर्व की ओर ग्राम निडाना में पूज्यपाद स्वामी रत्नदेव जी महाराज का जन्म जनवरी 1933 में हुआ। आपके दादा का नाम चौ० पन्ना राम जी व पिता का नाम चौ० सही राम था। आपकी माता श्रीमती नन्हीं देवी आपकी बाल्यावस्था में ही स्वर्ग सिर गार गई थी। आपकी चाची समाकौर ने ही आपका पालन - पोषण किया। आपके चाचा श्री बेलीराम जी पहलवान थे , जिनके प्रभाव से आप व्यायाम के प्रति रूचि रखने लगे तथा बाद में श्रेष्ठ खिलाडी बने। आपके दो भाई तथा दो बहने हैं। जिनका आपसे हमेशा बड़ा स्नेह रहा। आपके बड़े भाई धारा राम के शील स्वभाव ने आपके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। अतः धार्मिक विचार आपको पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुए। 
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शिक्षा
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          उस समय लोग शिक्षा के महत्व को नहीं समझते थे तथा साधन भी उपलब्ध नहीं थे। आपके पिता जी शिक्षा के प्रति बड़े जागरूक थे , उन्होंने अपने पुत्रों को उच्च शिक्षा दिलवाई। प्रारम्भिक शिक्षा गांव की पाठशाला में ग्रहण कर जाट हाई स्कूल जीन्द से आपने दसवीं की परीक्षा सन् 1951-52 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी प्रभाकर एवं रत्न की परीक्षा को पास किया। वेदों का अध्ययन करने के लिए व्याकरण महाभाष्य निरूक्त आदि ग्रन्थों को पढ़ने के लिए आप गुरुकुल झज्झर गये। किसी भी प्रकार की सहायता न मिलने के कारणवश आपकी इच्छा पूरी न हो सकी। आपने स्वतन्त्र रूप से आर्षग्रन्थों का स्वाध्याय किया। 

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समाज सेवा व्रत
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             उस समय लोग अधिक पढ़े - लिखे नहीं थे , आप उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। आप चाहते तो कोई सरकारी पद प्राप्त कर आनन्द की जिन्दगी बिता सकते थे लेकिन आप पर तो कोई और ही धुन सवार थी , जिसने आपको इतना आन्दोलित कर दिया कि आप समाज के बन्धनों को तोड़ देव दयानन्द के दिखाये मार्ग पर निकल पड़े। इस मार्ग पर आपको अनेक कष्ट झेलने पड़े , जैसे एक बार आपको गन्नों के खेत में दो रात व एक दिन बिताना पड़ा। आप भूख - प्यास से व्याकुल हो प्रातः काल जब समीप के गांव में गये, वहाँ एक माता जी से रोटिया मांगी और खाकर भूख को शान्त किया। अनेक बार मेरे दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों आप इतने कष्ट झेल रहे थे ? परन्तु आप तो अपने मन में समाज सेवा का व्रत धारण कर , समाज का उद्धार करने की ठान चुके थे । किसी ने ठीक ही कहा है - " महान पुरुष महानताओं के लिए जीत हैं , तुच्छ वासनाओं के लिए नहीं। " 

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हिन्दी सत्याग्रह में योगदान 
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           आर्य समाज ने 1957 में हिन्दी सत्याग्रह प्रारम्भ किया। स्वामी जी महाराज ने इसमें बढ़ - चढ़ कर भाग लिया। यह आन्दोलन इस समय पूरे जोरों पर था , लोगों ने बहुत अधिक संख्या में गिरफ्तारियां दी। लोगों ने जगह - जगह पर हड़ताले की , जुलूस व सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किये। स्वामी जी प्रमुख आन्दोलनकारियों में से थे , इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। 

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गौरक्षा आन्दोलन व संन्यास ग्रहण
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             देश आजाद होने के बाद भी अनेक जगहों पर गऊ - हत्थे खुल हुए हैं। जिनमें सरेआम गऊओं को काटा जाता है। गऊ हत्या बन्द करवाने के लिए आर्य समाज ने सन् 1966 में गौरक्षा आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में लगभग एक लाख लोगों ने गिरफ्तारियां दी। स्वामी जी महाराज इस आन्दोलन के प्रमुख नेताओं स्वामी रामेश्वरानन्द , स्वामी ओमानन्द जी के साथ अग्रिम पंक्ति में से थे। अतः आपको पकड़ कर तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। इससे पहले आप स्वामी ओमानन्द जी महाराज से गुरुकुल झज्झर में श्रावणी पर्व पर नैष्ठिक की दीक्षा ले चुके थे। इसी दौरान तिहाड़ जेल में ही स्वामी रामेश्वरानन्द जी महाराज से आपने संन्यास ग्रहण किया तथा आप स्वामी रत्नदेव सरस्वती के नाम से विख्यात हुए। 

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शिक्षा के क्षेत्र में योगदान 
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            शिक्षा के क्षेत्र में स्वामी जी महाराज का महान योगदान स्वर्णिम अक्षरों में लिखने योग्य है। सन 1953 में अपने जीवन की समाज सेवा रूपी यज्ञ में आहुति डाल शिक्षा के क्षेत्र में कूद पड़े। आपने निरन्तर बाहर वर्ष तक ग्राम निडाना में ही बच्चों को शिक्षा देने का कार्य किया। आप बड़े ही लगनशील , ईमानदार व अनुशासपप्रिय थे। आपकी देख - रेख में पाठशाला ने बहुत अधिक तरक्की की। आप अद्भुत प्रतिभा के धनी थे अतः इस संस्था से आपकी तमन्ना शान्त न हुई। आर्यसमाज के भजनोपदेशकों की प्रेरणा से आपने सन् 1968 में गांव कुम्भाखेडा में श्रावणी के शुभ अवसर पर गुरुकुल की स्थापना की। यह गांव जिला जीन्द व हिसार की सीमा पर स्थित है। यहां साधनों का अभाव था फिर भी आपने कठिन परिश्रम से वह सब कर दिखाया जो कल्पना से भी परे था। आपने ऊबड़ - खाबड़ झाड़ - झुण्डों से युक्त सरा जमीन को अपना पसीना बहा कर समतल कर गुरुकुल रूपी पौधे को खड़ा किया जिसकी छत्र - छाया में आज हजारों छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। प्रारम्भ में स्वामी जी स्वयं कुएं से पानी खींच कर बच्चों को नहलाते व वस्त्र साफ करते थे। स्वामी जी की सतत मेहनत से यह गुरुकुल दिन दोगुनी रात चौगुनी प्रगति करता हुआ आज अपनी स्थापना के 52 वर्षों को पूरा कर चुका है। स्वामी जी के निर्देशन में इस संस्था ने जहाँ शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं वहीं खेलों के क्षेत्र में भी पीछे नहीं है। स्वामी जी स्वयं वालीवाल के श्रेष्ठ खिलाड़ी रहे है। उनके मार्ग - दर्शन में यहाँ के छात्रों ने राज्य - स्तरीय व अखिल भारतीय क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में अनेक बार विजय प्राप्त की है। महान व्यक्तित्व के धनी स्वामी जी के संरक्षण में ही यह सब सम्भव था। 

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स्वामी जी की दृष्टि में नारी का महत्व 
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           महर्षि दयानन्द के सच्चे अनुयायी स्वामी जी महाराज नारी को समाज का महत्वपूर्ण अंग मानते थे। मनु की धारणा के अनुसार “ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः " के आदर्श का पालन करते हुए स्वामी जी ने हमेशा नारी जगत के लिए अविस्मरणीय कार्य किया। वर्तमान समय में उपेक्षित नारी की दुर्दशा से स्वामी जी अनभिज्ञ नहीं थे। वैज्ञानिक युग में स्त्री शिक्षा को अत्यावश्यक समझते हुए स्वामी जी ने 26 जनवरी 1976 को सुबेदार भरत सिंह , शास्त्री कमल सिंह , मांगेराम यात्री व महाशय रण सिंह आर्य आदि के सहयोग से कन्या गुरुकुल खरल की स्थापना की। इस प्रकार स्वामी जी ने नारी समाज के लिए एक ऐसा पौधा लगाया जो हजारों वर्षों तक नारी जगत का कल्याण करता रहेगा। वर्तमान समय में नारी के प्रति बढ़ रहे अत्याचार को दूर करने के लिए स्वामी जी दिन - रात प्रयत्नशील रहते थे। वे गांव - गांव घूम कर लोगों को दहेज - प्रथा के विरूद्ध जागृत करते। अपनी संस्थाओं में भी अमीर - गरीब सब छात्राओं को समान रूप से शिक्षा का अवसर देते रहे। पुरुषों के समान नारी जाति में स्वाभिमान की भावना जगाने के लिए गुरुकुल में छात्राओं को तलवार , बन्दूक आदि सिखाते हुए खेलों को भी बढ़ावा दिया। बहन दर्शनाचार्या की देखरेख में यह संस्था नारी समाज के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। सन् 1978 में नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए गांव हसनगढ़ ( हिसार ) में भी कन्या पाठशाला की स्थापना की। लोगों का सहयोग न मिलने पर इसे सरकार को सौंप दिया गया। जहाँ स्वामी जी संस्था खोलते थे वहीं स्वयं एक सशक्त प्रशासक के रूप में उसका अनुशासन भी चलाते थे। स्वामी जी महाराज समय और अनुशासन के बड़े पक्के थे , यही कारण है कि आज तक दोनों संस्थाएं अनुशासन में पहले स्थान पर हैं। 

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वर्तमान सन्दर्भ में स्वामी जी महाराज का कार्य क्षेत्र 
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           स्वामी जी महाराज ने 40 वर्षों तक शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अधिक काम किया। आप द्वारा स्थापित संस्थाओं ने समाज को अनेक स्नातक व स्नातिकाएं दीं। अनेक कन्याओं को शास्त्री , बी.ए.एम. ए तक शिक्षा दी तथा वर्तमान समय में भी ले रही हैं। आप में अदम्य साहस एवं कर्मठता थी , आपने सामाजिक बुराईयों के विरूद्ध अपना संघर्ष जारी रखा। 

           आज समाज में शराब , दहेज - प्रथा , साम्प्रदायिकता , जातिवाद जैसी अनेक बुराईयां घर कर चुकी हैं। शराब ने तो इस देश को गर्त में धकेल दिया है , वे जातिवाद का जहर भी समाज को नष्ट कर रहा है। इन सब बुराइयों के खिलाफ स्वामी जी महाराज का अभियान चला रहता था। जिला जीन्द के लगभग 80 गांवों में जाकर लोगों को शराब बन्द करने के लिए प्रेरित किया। दिन - रात पीडित समाज के कष्टों को दूर करने में लगे रहते थे। आपके कन्धों पर अनेक जिम्मेवारियों थीं। 

         आप कन्या गुरुकुल खरल व कुम्भाखेड़ा के कुलपति के साथ - साथ वेद प्रचार मण्डल जिला जीन्द के संयोजक भी रहे। गांव निडाना में कन्या पाठशाला का निर्माण भी आपने स्वयं करवाया। वेदप्रचार मण्डल के अन्तर्गत स्वामी भीष्म भजनोपदेशक महाविद्यालय भी आपने आरम्भ किया था। आपका जीवन एक कर्मयोगी के समान है। आपकी भावनाएं हमेशा देश - धर्म पर न्यौछावर हैं। एक सच्चे दयानन्द के सैनिक के रूप में आप निश - दिन कार्य में लगे रहते थे। 

        गुरुकुल शिक्षा में आपके योगदान को देखते हुए 15-16-17 मई 1992 में पं ० गुरुदत निर्वाण शताब्दी समारोह चरखी दादरी में " गुरुकुल शिक्षा सम्मेलन " का आपको अध्यक्ष बनाया गया। प्रान्तीय आर्य वीर महासम्मेलन आपके संरक्षण में मनाये जाते थे। स्वामी जी महाराज महान देशभक्त , सच्चे ईमानदार , कर्मठ व ईश्वर पर विश्वासी करने वाले साधु थे। आप आखिर दम तक सामाजिक बुराईयों के विरूद्ध डटे रहे। हम स्वामी जी महाराज के जीवन के जिस भी पहलु को उठाएं वहीं से देश सेवा समाज सेवा व वैदिक धर्म की गूंज आती है। धन्य हैं ऐसे महापुरुष जिनका प्रत्येक क्षण दूसरों की भलाई में व्यतीत हुआ। आओ हम भगवान से प्रार्थना करें कि इस महापुरुष द्वारा स्थापित संस्थाएं और प्रगति करे जिससे इनका नाम हमेशा अमर रहे।

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