Sunday, May 23, 2021

गर्दन उतर सकती है जनेऊ नहीं


गर्दन उतर सकती है जनेऊ नहीं 
आर्यवीर चौधरी रामगोपाल आर्य छारा झज्झर 

      ये जिंदगी पथ है मंजिल तरफ जाने का, 
      जिंदगी गीत है तुफान से टकराने का, 
      आराम से सो जाने की बदनामी है, 
      जिंदगी गीत है मस्ती में सदा गाने का।। 

        हरियाणा के जाटों का इतिहास विरता से भरा पड़ा है। वैसे जाट किसी विशेष बिरादरी का नाम नहीं है। जो अधर्म के खिलाफ लड़े वो जाट कहलाए। आज सब बनी बनाई बाते हैं। लेकिन आजादी के योगदान में हरियाणा के आर्य समाजी जाटों ने जो करिश्मा कर दिखाया वो बेमिसाल है। हमें ऐसे ऐसे जाट नेताओं पर गर्व है। ऐसे ही जिला रोहतक के आर्य नेता (महर्षि दयानंद के भक्त )ने कमाल कर दिया। उनकी थोड़ी सी जीवनी प्रस्तुत है। 

🔥जन्म 🔥
  
            चौधरी रामगोपाल आर्य का जन्म रोहतक के छारा गांव में उन्नीसवीं सदी में हुआ।( तिथि ज्ञात नहीं ) 
ये १८ वर्ष की आयु में फौज में भर्ती हो गए। सेना में कुछ हिंदी सीखी और आर्य समाज के के प्रचार से प्रभावित होकर आर्य समाजी बन गए। सन् १९०१ई में चीन की लड़ाई में भी गए। जब गौरी सरकार बंगाल के दो भाग करना चाह रही थी,तो अंग्रेज सरकार के विरुद्ध बड़ा भारी असंतोष फैल गया। यह असंतोष सैना में भी फैल गया। अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने के लिए गुप्तरुप से सैनिकों ने खुन से हस्ताक्षर कराने आरंभ कर दिये। रामगोपाल ने भी खून से हस्ताक्षर किए थे। इनके हस्ताक्षर करने का अन्य कारण यह भी था कि उन दिनों अंग्रेज आर्य समाज को राजनैतिक पार्टी समझने लगे थे।  उन दिनों ये दीनापुर छावनी में थे। 

🔥गर्दन उतर सकती है जनेऊ नहीं 🔥

           सेना में एक निर्देश जारी किया गया कि जो सैनिक आर्य समाजी है और इस नाते जनेऊ पहनते हैं, उन्हें जनेऊ उतान देना चाहिए, अन्यथा वे सजा के भागीदार बन सकते हैं। इस निर्देश से रामगोपाल तिलमिला उठे। उन्होने दृढ़ निश्चय कर लिया की गर्दन उतर सकती है, जनेऊ नहीं उतर सकता। कमांडिग आफिसर ने यह देखने के लिए कि किन किन सिपाहियों के गले में जनेऊ है, सब सिपाहियों को पक्तिबंध खड़ा कर दिया। रामगोपाल जी ने अपना जनेऊ कान पर टांग लिया। जब सैनिक अधिकारी ने इनकी यह हरकत देखी तो आग बबुला हो गया। अधिकारी ने जनेऊ उतारने के लिए कहा, तो रामगोपाल ने उत्तर दिया -- "यदि आप गिरजाघर जाना छोड़ दे , तो हम जनेऊ छोड़ने के लिए विचार कर सकते हैं " इस बात पर इनका कोर्ट मार्शल हुआ और सन् १९०७ ई० में इनको सेना से निकाल दिया। इसके बाद लार्ड हार्डिंग पर जो आक्रमण हुआ। अनेकों से पूछताछ की गई। इसी सिलसिले में रामगोपाल जी को भी पकड़ा। परंतु बाद में छोड़ दिया। 

🔥आर्य समाज के प्रति समर्पित 🔥

       रामगोपाल जी का जीवन आर्य समाज के लिए समर्पित था। इन्होने स्वामी ब्रह्मानंद और स्वामी परमानंद को गुरुकुल झज्झर के चलाने में पूर्ण सहयोग किया। इन्होने अछूतोद्धार के प्रसंग में अपने गांव छारा में ३६ बिरादरी का सहभोग कराया। इसी प्रकार इन्होने अपने गांव में हरिजनों के लिए कुआ बनवाया। 

हैदराबाद सत्याग्रह के आरंभ होने पर इन्होने रोहतक के छठे जत्थे का नेतृत्व किया और सत्याग्रह किया। वृद्धावस्था में अपने पुत्र चन्द्रसिंह दलाल वकील के पास रोहतक आ गए। रोहतक मॉडल टाउन में इनके प्रयास से आर्य समाज मंदिर का निर्माण हुआ। १०० वर्ष की आयु में इनका देहांत हुआ। छारा गांव में आर्य समाज मंदिर का निर्माण इन्हीं के प्रयत्नों से हुआ।  दादा बस्तीराम व अनेको भजनोपदेशक इनके यहां ठहरते थे।  हमे नाज है ऐसे ऐसे आर्य नेताओ पर जो धर्म के लिए तत्पर रहे। वैदिक धर्म की जय। 

पुस्तक : हैदराबाद सत्याग्रह में हरियाणा का योगदान 
लेखक :- डॉ० रणजीत सिंह

2 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 25/05/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. वाह!लाभदायक जानकारी देता हुआ सुंदर आलेख ।हमें नाज है ऐसे आर्य नेताओं पर 🙏

    ReplyDelete