पानीपत वाली ट्रेन
पं.रामचन्द्र देहलवी जी ओर मियां जी
वर्षों पुरानी बात है। पं० रामचन्द्र देहलवी दिल्ली में रहते थे। पानीपत में आर्यों और मौलवियों के मध्य शास्त्रार्थ बहुत हुआ करते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि एक मौलवी जी पानीपत आने के लिए रेलगाड़ी में बैठे हुए थे। संयोग से देहलवी जी भी उसी गाड़ी से आ रहे थे। वे भी उसी डिब्बे में पहुंच गए। देहलवी जी ने मियाँ जी से पूछा कि कहाँ जा रहे हो ? मौलवी जी ने कहा कि पानीपत जा रहा हूँ, वहाँ रामचन्द्र देहलवी से मेरा शास्त्रार्थ होगा जो कहता है कि कुरान इलहामी नहीं है, वेद ही इल्हामी है।
इसी बात पर वहाँ मेरा देहलवी से शास्त्रार्थ होना है। देहलवी जी ने मियां जी से पूछा कि आज कौन सा दिन है ? मौलवी जी ने कहा कि आज जुमेरात है। देहलवी जी ने कहा कि मैं रात नहीं दिन पूछ रहा हूँ। जब देहलवी जी ने पुनः दिन के विषय में पूछा तो मियाँ जी से फिर जुमेरात होने का ही उत्तर मिला। इस पर देहलवी जी ने कहा कि आप फिर रात बता रहे हैं, दिन नहीं। यह सुनकर मौलवी जी ने देहलवी जी से पूछा कि आपका क्या परिचय है। तब देहलवी जी ने कहा कि मुझे लोग रामचन्द्र देहलवी कहते हैं ? इस पर मौलवी जी पानीपत न जाकर रास्ते में ही उतर गए। ये तो देहलवी जी थे।
उस समय तो साधारण आर्य कार्यकर्ता भी इतने स्वाध्यायशील होते थे कि उनके तर्कों का उत्तर अन्य सम्प्रदायों वाले नहीं दे पाते थे। वैदिक धर्म सर्वोपरि है। अतः यदि आप अपना भला चाहते हैं तो वेद के सिद्धांतों को अपनाओ। वैदिक धर्म के सिद्धांत वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था आदि कितनी सुन्दर व्यवस्थाएँ हैं! वैदिक धर्म सबसे पुराना है।
उपरोक्त घटना स्व. श्री चन्द्रभानु आर्योपदेशक जी ने नागपुर में आयोजित "आर्यसेवक" के शताब्दी समारोह में 28 दिसंबर 2003 में सुनाई थी।
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