हरयाणे के समाज सुधारक भजनोपदेशक
स्वामी रुद्रवेश जी
स्वामी रुद्रवेश जी महाराज की आर्यसमाज के निडर भजनोपदेशकों में गिनती होती है। ये घटना आजादी के 35-36वर्ष के बाद की है। गुरुकुल धीरणवास (जिला हिसार) की कार्यकारिणी ने गुरुकुल के प्रचार हेतु स्वामी रुद्रवेश जी को बतौर प्राचार्थ बुला लिया। पहले दिन खुब जमकर प्रचार हुआ। अगले रोज श्री स्वामी जी गुरुकुल के पुराने भवन की छत पर टहल रहे थे। पुराना भवन मुख्य सड़क के नजदीक है।
सांयकाल का वक्त था। थोड़ी देर के पश्चात एक बीड़ी बेचने वाला लाउडस्पीकर लगाकर बीड़ी कम्पनी का प्रचार कर रहा था। स्वामी जी के कानों में जब ये शब्द पड़े तो एकाएक क्रोध में आ गए। "आर्यों के गढ़ में बीड़ी बेचने वाला"! बीड़ी बेचने वाले को पता होते हुए भी गुरुकुल के सामने आकर उंची आवाज से लाउडस्पीकर बजा रहा था। स्वामी जी भवन से नीचे उतरे अपना मोटा लठ उठाया। अकेले ही चल पड़े। उसको लताड़कर बोले अरे मूर्ख!! तुझे दिखाई नहीं देता तू कहां नशाखोरी का प्रचार कर रहा है। यहां से चुप चाप चला जा, अन्यथा तेरा ओर तेरी गाड़ी का क्या हश्र करुंगा ये मैं खूद नहीं जानता।
वो गाड़ी वाला कोई भाड़े पर भेजा हुआ नहीं था। बीड़ी कम्पनी की ही गाड़ी थी। स्वामी जी की बातों को उलेटते हुए, तथा आंखे ओर दिखाने लग गया। स्वामी जी क्षण भर में क्रोधित हो उठे। अपना मोटा लठ उसको मारने के लिए दौड़ पड़े - हरामखोर रुक तेरी ऐसी की तेसी। बीड़ी बेचने वाले ने स्वामी जी के क्रोध को भांप लिया तथा रेस वाला पंजा दबाकर भाग गया। स्वामी जी बोले आ देखूं तुझे, कितना गाढ़ा दुध पिया है ? खैर ये तो स्वामी जी थे। उस वक्त हरियाणा में आर्यसमाज का इतना प्रभाव था कि स्वागीं, नशाखोर, विधर्मी भाग जाया करते थे।
आज हवा का कैसा रुख हो गया है। आर्यसमाज का गढ़ कहे जाने वाले रोहतक, सोनीपत, जींद भिवानी, हिसार जिलों में शराब, मांस, नशाखोर पग पग पर मिल जाते हैं। ये हरियाणा अपनी प्राचीन मर्यादाओं को भूल बैठा है। आर्यसमाजी लोग देवीलाल, बंसीलाल, भजन लाल इत्यादि नेताओं की कठपुतली बनकर आर्यसमाज को भूल बैठे। अब भी समय है नींद से जागो, भविष्य तुम्हीं से सवाल करेगा। हरियाणा बनवाया आर्यसमाज ने था। किसी ओर से प्रश्नोत्तर नहीं होगें।
--अमित सिवाहा
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