Friday, February 22, 2019

भेड़ बनाम सूअर



भरपेट विष्ठा खा नाली में उसने तीन-चार गोते लगाए फिर निढाल होकर पसर गया और अतीत की उन यादों में खो गया जब वह #भेड़ हुआ करता था,
सूअरों, से भीषण युद्ध में हार के बाद जंगल के हजारों जीवों को बंदी बना लिया गया था,, सुअर #ऊल्लू" के उपासक थे,,उनका मानना था कि पूरी दुनिया सूअरों की है और किसी भी अन्य जीव को यहां जीने का कोई अधिकार नहीं है ।
सभी जानवरों को दो ही विकल्प दिए गए कि या तो वे 'सूअर' बन जाए अथवा अपनी 'गर्दन कटवाने' को तैयार रहें ।
शेर, चीते और भालू जैसे अधिकांश जानवर तो पहले ही युद्ध में मारे गए थे।
वह किसी भी सूरत में "सूअर" नहीं बनना चाहता था। हरी घास खाने के बजाए, टट्टी को सपड़-सपड़ चाटने की कल्पना मात्र से ही उसे उल्टी आ जाती।
अपने शरीर की ऊन पर कभी मिट्टी तक नहीं लगने दी थी उस भेड़ ने। कीचड़ और विष्ठा में हरगिज़ नहीं नहाएगा वह।
उसनें पक्का फैसला कर लिया, 'वह गर्दन कटवा लेगा लेकिन सूअर नहीं बनेगा,
फिर एक दिन, उसे पकड़ कर मैदान में लाया गया। चारों ओर खून ही खून फैला हुआ था, हिरन, लोमड़ी, बंदर और कई भेडों तक के सिर कटे पड़े थे।
उसे पेश किया गया, तो उसकी टांगे थर थर कांप रही थी। एक #विशालकाय "सूअर" ने उससे पूछा,
"तुम्हें भेड़ रह कर सर कटवाना है या 'सूअर' बन कर जिंदा रहना है ?"
तत्काल दिमाग में विचार कौंधा 'जान है तो जहांन है, जिंदा रहूंगा तो किसी दिन वापिस भेड़ बन जाऊंगा।' 💭 💭
"हां ! मुझे बाकी मूर्खों की तरह मरना नहीं चाहिए। मैं बाद में हर हाल में पुनः भेड़ बन जाउंगा और मौका मिला तो इन 'सूअरों' से अपने सबंधियों की हत्या का बदला भी लूगां !'
'जीना ही श्रेयस्कर है।
वह तत्काल जोर से चीखा,
"मुझे ऊल्लू की दासता स्वीकार है!" 🗯️🗯️
एक दुबले पतले "काले सूअर" ने विष्ठा का पात्र उसके सामने रख दिया और खाने को कहा, उसे ऊबकाई आने को ही थी कि नज़र लपलपाती तलवार पर गई । जैसे तैसे कर जरा सी चाट ली।
अब 'कालिए सूअर' ने उसके कान में कहा "ऊंची आवाज में तीन बार बोल ...#ऊल्लू तू बक-बर'
जैसे ही उसनें पहली दफा बोला, उसके शरीर की सारी ऊन झड़ गई !!! दूसरी और तीसरी बार बोलते ही थूथंन निकल कर सूअर बन गया !!
अचानक एक अज़ीब सी खुशबू उसके नथूनों से टकराई, जो सामने पड़े "विष्ठा पात्र" से आ रही थी। वह तत्काल टूट पड़ा खाने पर,
कुछ सालों बाद 'एक काली टोपी' वाला #शेर" उसके पास आया था, जिसने उसे 'घर वापसी' कर वापिस भेड़ बनने का प्रस्ताव दिया ।
ऐसी बात नहीं कि वापिस भेड़ बनने का संकल्प उसे याद नहीं था!
पर उसनें सोच विचार के लिए कुछ समय देने को कहा। शेर अपने नंबर दे कर चला गया।
वह सोच विचार करने लगा ...
'वापिस भेड़ बनकर कहाँ नीरस घास खानी होगी, और यहां '#सबकुछ' खाने की छूट !! अकाल, के समय घास के लिए इधर-उधर भटकना और यहां जितनी चाहे 'स्वादिष्ट विष्ठा'!
वहां "एक" मादा भेड़ से काम चलाना और यहां "चार चार #सूअरनियां," उनसे भी मन भर जाएं तो तीन बार 'क्लिक', 'क्लिक' बोलकर भगाओ और नई ले आओ!! कोई रोकटोक नहीं!! 'अगर भेड़ होता तो दो चार बच्चे होते, यहां तो पहले साल में ही "चालीस" हो गए थे !! उन 'चालीस' के भी अब तो चालीस-चालीस है !!
वहां पाप पुण्य के सौ तरह के बंधन और यहां किसी भी जीव को मारो काटो .. सब कुछ जायज़ !!'
'नहीं! मुझे कोई भेड़ वेड़ नहीं बनना !!'
अगली बार जब 'शेर' आया, तो उसनें साफ मना कर दिया !!
पिछले कई सालों से वह अपनी दुनिया में मस्त था और "पक्का सूअर" बन चुका था और चाहता है कि पूरी दुनिया में "ऊल्लू" की उपासना हो और जंगलों के सारे जानवर "सूअर" बन जाएं।
अपने बच्चों को भी यही कहता है कि कहीं भी कोई अन्य 'जानवर' मिले तो घेर कर उसे सूअर बनाओ अथवा काट डालो! बकरियों, भेड़ों को बहला फुसलाकर #सुअरनी बनाओ और बच्चे पैदा करो!! किसी भी झुंड पर हमला करो और लूट लो!! तुम्हारे लिए लूट का माल और सभी मादाएं '#जायज़' हैं!
अचानक उंची चट्टान से 'कालिए' की आवाज़ गूंजी "ऊल्लू तू बक-बर, ऊल्लू तू ~बक-बर,
वह अतीत की यादों से बाहर आया और तुरंत कीचड़ से बाहर निकल आया अपना पिछवाड़ा ऊंचा कर थूथंन जमीन से रगडऩे लगा
नोट: --उपरोक्त कहानी का किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय, जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सबंध नहीं है। किसी भी धर्म के नियम, प्रथा या घटना से समानता केवल संयोग हो सकता है !!
Source Facebook

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