( राव राजा युधिष्ठिर सिंह जी यदुवँशी द्वारा निर्मित) ॥
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दस्तावेज़ों के अनुसार आधुनिक युग की सर्वप्रथम गौशाला हरियाणा के रेवाड़ी जिले (अहीरवाल) में स्थित है।
इस गौशाला का निर्माण सन् 1874 में रेवाड़ी रियासत के क्षत्रिय यदुवंशी अहीर राजा राव युधिष्ठिर सिंह जी ने करवाया था।
आज 12 फरवरी विश्वगुरू, ब्राह्मण श्रेष्ठ स्वामी दयानंद सरस्वती जी के जन्मदिवस पर उन्हें शत् शत् नमन।
इस निर्माण के पीछे रोचक घटना पर एक नज़र।
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परमपूज्य स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के रेवाड़ी रियासत के यदुवंशी रजवाड़ों के साथ बहुत अच्छे संबंध थे।
1873 में स्वामी दयानन्द का रेवाड़ी आगमन ऐतिहासिक रहा।
उस वक्त रेवाड़ी के राजसिंहासन पर राजा राव युधिष्ठिर सिंह जी नशीन थे जो 1857 के महानायक, यदुकुल सिरमौर रेवाड़ी नरेश महाराजा राव तुला सिंह बहादुर के पुत्र थे।
राजा राव युधिष्ठिर सिंह के राज के दौरान स्वामी जी का रेवाड़ी आगमन हुआ।
स्वामी जी ने राव युधिष्ठिर सिंह को उनके महान पुर्वजों का स्मरण तथा उनके पुर्वज द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण का स्मरण कराते हुए उन्हें आर्य समाज के कल्याण के लिए मदद करने को कहा।
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के व्यक्तित्व से राजा राव युधिष्ठिर सिंह बहुत प्रभावित हुए और रेवाड़ी के महल में स्वामी जी का स्वागत करते हुए विनती करी कि वे रेवाड़ी रुककर यदुवंशी रजवाड़ों की शान में बनी शाही छतरियों में रुककर रेवाड़ी के लोगों को अपने अनमोल प्रवचन वाणी से लोगों को धन्य करें।
फिर उसी वर्ष 1874 में रेवाड़ी में राजा राव युधिष्ठिर सिंह के हुक्म के अनुसार दुनिया की सर्वप्रथम 'गौशाला' का शिलान्यास किया गया।
राव युधिष्ठिर सिंह जी ने स्वामी जी को रेवाड़ी के महल की छत से दिख रहे विशाल भूमंडल की और इशारा करते हुए कहा कि-
" हे स्वामी जी हमारे रियासत का विशाल भूमंडल जो महल के छत से दिख रहा है आप अपने ऊंगलियों से इशारा करते हुए बताईये की कितनी ज़मीन हम गौमाता के रहवास के लिए दान करें।"
स्वामी जी ने महल की छत से दूर दूर तक जहाँ तक उनकी नज़र विशाल भूमंडल पर पड़ी उन्होंने ने अपने हाथों से इशारा करते हुए माँगी।
इस प्रकार 1874 में दस्तावेजों के अनुसार रेवाड़ी में आधुनिक युग की प्रथम और विशालतम गौशाला का निर्माण कराया गया और राजा राव युधिष्ठिर सिंह ने स्वामी दयानन्द सरस्वती जी से ही गौशाला का शिलान्यास करवाया और गौशाला का नामकरण स्वामी जी के नाम पर पड़ा "स्वामी दयानन्द सरस्वती गौशाला"।
गौशाला की इमारत बहुत ही भव्य और आलिशान है और आज भी यहाँ लाखों गउओं की देखरेख की जाती है।
[मेरे परदादा श्री रामकिशन जी आर्य ने स्वामी दयानन्द के 1878 में गौशाला की स्थापना के समय ही उनके भाषण सुनकर वैदिक धर्म स्वीकार किया था। -डॉ विवेक आर्य]
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