Monday, September 9, 2013

क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे?




क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे?

वाल्मीकि रामायण में मर्यादा पुरुषोतम श्री राम चन्द्र जी महाराज के पश्चात् परम बलशाली वीर शिरोमणि हनुमान जी का नाम स्मरण किया जाता है। हनुमान जी का जब हम चित्र देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में चित्रित किया गया है जिनके पूंछ भी लगी हुई है।इस चित्र को देखकर हमारे मन में अनेक प्रश्न भी उठते हैं जैसे-

क्या हनुमान जी वास्तव में बन्दर थे? क्या वाकई में उनके पूंछ लगी हुई थी ?

इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम लेकर परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते है। आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते है।

1.  प्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते है। सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ होता है "बन्दर"  परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है।  उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते है। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

2. सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते है उसमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती हैं।  परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र है।

3. किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले-

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || 4/3/28

अर्थात-

“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया है, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती है”।

4. सुंदर कांड (30/18-20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते है-

“यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।”

इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।

5. हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ है। हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।

बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान।

चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद।

राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।

भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकते है?

6. एक शंका हमारे समक्ष आती है कि क्या हनुमान जी उड़ कर अपनी पुंछ की सहायता से समुद्र पार कर लंका में गये थे?

हनुमान जी के विषय में यह भ्रान्ति अनेक बार सामने आती है कि वह उड़ कर समुद्र कैसे पार कर गए ? क्यूंकि मनुष्य द्वारा उड़ना संभव नहीं है? सत्य यह है कि हनुमान जी ने उड़ कर नहीं अपितु तैर कर समुद्र को पार किया था। रामायण में किष्किन्धा कांड के अंत में यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया गया है। सम्पाती के वचन सुनकर अंगदादि सब वीर समुद्र के तट पर पहुँचे, तो समुद्र के वेग और बल को देखकर सबके मन खिन्न हो गये। अंगद ने सौ योजन के समुद्र को पार करने का आवाहन किया। युवराज अंगद के सन्देश को सुनकर वानरों ने 100 योजन के समुद्र को पार करने में असमर्थता दिखाई। तब अंगद ने कहा कि मैं 100 योजन तैरने में समर्थ हूँ। पर वापिस आने कि मुझमे शक्ति नहीं है। तब जाम्बवान ने कहा आप हमारे स्वामी है आपको हम जाने नहीं देंगे। इस पर अंगद ने कहा यदि मैं न जाऊँ और न कोई और पुरुष जाये,तो फिर हम सबको मर जाना ही अच्छा है। क्यूंकि कार्य किये बिना, सुग्रीव के राज्य में जाना भी मरना ही है।

अंगद के इस साहस भरे वाक्य को सुनकर जाम्बवान बोले-राजन मैं अभी उस वीर को प्रेरणा देता हूँ, जो इस कार्य को सिद्ध करने में सक्षम है। इसके पश्चात हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण करा प्रेरित किया गया। हनुमान जी बोले-"मैं इस सारे समुद्र को बाहुबल से तर सकता हूँ और मेरे ऊरु, जंघा के वेग से उठा हुआ समुद्र जल आकाश को चढ़ते हुए के तुल्य होगा। मैं पार जाकर उधर की पृथ्वी पर पाँव धरे बिना, अर्थात विश्राम करे बिना फिर उसी वेग से इस ओर आ सकता हूँ। मैं जब समुद्र में जाऊँगा, अवश्य खिन्न हुए लता, वृक्ष आकाश को उड़ेंगे, अर्थात अन्य स्थान का आश्रय ढूंढेंगे।" (श्लोक किष्किन्धा काण्ड 67/26)

इसके पश्चात हनुमान समुद्र में उतरने के लिए एक पर्वत के शिखर पर चढ़ गये। उनके वेग से उस समय प्रतीत होता था कि पर्वत काँप रहा है। हनुमान जी के समुद्र में प्रविष्ट होते ही समुद्र में ऐसा शब्द हुआ जैसे कि मेघ गर्जन से होता है। और हनुमान जी ने वेग से उस महासमुद्र को देखते ही देखते पार कर लिया।
हिंदी भाषा में एक प्रसिद्द मुहावरा है" हवा से बातें करना" अर्थात अत्यंत वेग से जो चलता या तैरता या गति करता है, उसे हवा से बातें करना कहते है। हनुमान जी ने इतने वेग से समुद्र को पार किया कि उपमा में हवा से बातें करना परिवर्तित होकर हवा में उड़ना हो गया। इसी से यह भ्रान्ति हुई कि हनुमान जी हवा में उड़ते थे। जबकि सत्य यह है कि वह ब्रह्मचर्य के बल पर हवा के समान तेज गति से कार्य करते थे।

अशोक वाटिका में पकड़े जाने पर जब हनुमान जी को रावण के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो उनका उपहास करने की मंशा से रावण के सैनिकों ने उन्हें जंगली जानवर जैसा दिखाने के लिए पुंछ लगाकर उपहास करने का स्वांग किया। मूर्खों से इससे अधिक कुछ अपेक्षित भी नहीं हैं। हनुमान जी ने भी इस उपहास का समुचित प्रतिउत्तर दिया। उसी आग लगी पुंछ से पूरी लंका को भस्म कर रावण को पाठ सिखाया।  

7.  अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था कि-

“सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण है। जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता।”

ऐसे गुण विशेष मनुष्यों में ही संभव है।

8 . किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये। किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।

क्या बंदरों में शास्त्रीय विधि से संस्कार होता हैं?

9 . जहाँ तक जटायु का प्रश्न है, वह गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था।  तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ –
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || अरण्यक 49/38

हे आर्य जटायु ! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा है।


कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || 68/6

अर्थात -यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया है। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते।

रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा -

जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः । अरण्यक 50/4

अर्थात- मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु है।

यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य का राजा नहीं हो सकते। इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं कि जटायु पक्षी नहीं था, अपितु एक मनुष्य था। जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में वास कर रहा था।

10. जहाँ तक जाम्बवान के रीछ होने का प्रश्न है। यह भी एक भ्रान्ति है। रामायण में वर्णन मिलता है कि जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे।  तब किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के पास परामर्श लेने गये।  तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था।
इसका सन्दर्भ रामायण के युद्ध कांड सर्ग 74/31-34 में मिलता है।

आप्त काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता है। जैसे युद्धकाल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता है। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं। दूसरे बुद्धि से परे की बात है। इसलिए स्वीकार्य नहीं है।

इसलिए जाम्बवान का रीछ जैसा पशु नहीं अपितु महाविद्वान होना ही संभव है।


इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धिपूर्वक पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हनुमान, बालि, सुग्रीव आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य थे। उन्हें बन्दर आदि मानना केवल मात्र एक कल्पना है और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन है।

18 comments:

  1. dear sir
    agar hanumaan g vaanar nahi the to unki pooch q thi???? jaisa ki sundar kaand me likha gaya hai ki unhone lanka ko jala daala tha???
    kripya marg darshan kare...

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    1. dear sir
      hanumaan g k pooch nhi thi, hanumaan ji ki pooch thi means ram ji k pure group me
      koi bhi kam hota tha tohanumaan g ko hi bola jata tha, to islie kahte ki hanumaan g ki pooch thi ok

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    2. arey lanka kaise jlayi thi fir bhai? sab jhuth hai kya?

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  2. parkash kumar ji, hanumaan ji vaanar the, jiska artha h Vano me rahene wala nar , na ki bandar, aur aapki jankari ke liye batana chahta hu, ki hanumaan ji ke poonch nhi thi aur na hi unka sharir ghatata aur bhadta tha, aur na hi hanuman ji ud kar samundra paar karte the, aur Maharshi Valmiki ji ne Ramayan Sanskrit me likhi h, jiska sahi-sahi arth uch koti ka koi mahan sanskrit ka vadwan hi kar sakata hm jisme koi bhi ashtay baat nhi likhi h, par jo ramayan aaj kal uplabadh h, wah bahut sari milawat ke saath chhapi h, eise hi sundar kaand me bhi bahut si baat kalpanik aur mithya chhapi h....

    aap yadi is vishay me adhik jankari chahte h, to aap samapark kar sakte h...

    ravi.crown@yahoo.com

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    1. matlab vo poonch se lanka jalaane wali baat jhuth h?

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  3. Great Approach ....................

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  4. Galat hai yeh sab. Hanumanji vanar hi the. Sabko pata hai ki hanumaan ji amar hai. Aise aur bhi log hai jo amar hai. Unhe koi logon ne dekha bhi hai. Eg. Saraswat brahmanon ko bhagwaan parsuraam prakat hue the . Koi logon ko mahabali raja dikhe hai. Aswatthama ko to kai logon ne dekha hai. Usi tarah bhagwaan hanuman ko bhi ek aadmi ne dekha tha . Usne unki tasweer khichi lekin uski wahi mryutyu ho gain . Woh ek mandir me lagayi hui hai. Aur ek baat batata hoon. Aise koi log hote hai jo devi ke bhakt hote hai. Kabhi kabhi bhakti ke karan unhe sapno me devi prakat hoti hai. Isi tarah mere ek mitra ke uncle ko hanuman ji prakat hue the . Woh hanuman ji ke bade bhakt hai. Unhe saamne dikhe aur uske baad woh behosh ho gaye. aapne jo upar likha hai woh 100% galat hai. Mujhe lag raha hai aap valmiki ji ki batoon ko aapne hisaab se interpret kar rahe hai.

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    1. These claims seems to be cooked up stories which no one will beleive

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  5. sir , u belive in kundalini. ya ye bhi aapke khayal se kisine badhai chadhai hui baat hai. jaisa ki mai janata hu kundlini jagrn se insan ko kai ridhi sidhiyan prapt hoti hai. jinme sharir ka halka hona, echya se usko chota ya bada krana. echyase waight badhana , pani pe chalan etc. shamil hai. to kundlin jagrut karne ke liye insan ko tapsya karni hoti hai. ham sab jante hai ki hanuman ji brahmchari the aur bramhcharya sabse badi tapsya hai, aur unki bhakti bhi etni shresht hai ki kisibhi tapsya se badhakr hai. esase pata chalata hai ki hanumanji chote , bade ho sakte the. agar aap ese nhi mante to aap pure bharat varsh ke prachin gyan ko galat bata rahe hai.
    aap ki soch vidgyan se prerit hai aisa lagata hai.. pr jan lijiye ki gyan se hi vigyan hai.

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  6. sir , u belive in kundalini. ya ye bhi aapke khayal se kisine badhai chadhai hui baat hai. jaisa ki mai janata hu kundlini jagrn se insan ko kai ridhi sidhiyan prapt hoti hai. jinme sharir ka halka hona, echya se usko chota ya bada krana. echyase waight badhana , pani pe chalan etc. shamil hai. to kundlin jagrut karne ke liye insan ko tapsya karni hoti hai. ham sab jante hai ki hanuman ji brahmchari the aur bramhcharya sabse badi tapsya hai, aur unki bhakti bhi etni shresht hai ki kisibhi tapsya se badhakr hai. esase pata chalata hai ki hanumanji chote , bade ho sakte the. agar aap ese nhi mante to aap pure bharat varsh ke prachin gyan ko galat bata rahe hai.
    aap ki soch vidgyan se prerit hai aisa lagata hai.. pr jan lijiye ki gyan se hi vigyan hai.

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  7. any body give prov that god is exit
    if any pl prov it i confused

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    1. Please read this article for proof of very existance of God

      मैं आस्तिक क्यों हूँ?

      http://vedictruth.blogspot.in/2014/06/blog-post_20.html

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  8. Mere khayal se dono tarah ki bate manane yogya nahi hai, bahut se rahasya hume pata hi nahi hai, na hi science ko aur na hi bhaqti me, yadi hanuman ji udate nahi the to surya ko kaise kha liye? Comment me ek jan likhe hai ki unke dost ke pitaji hanuman ji k bahut bade bhaqt the to unko dikhai diye. Yani hanuman ji aaj v dharti par hai. To mai kahna chata hu ki dharti par kitani saari buraiya, paap, adharma, atyachar, hatya, loot ho rahi hai to hanuman ji kya kar kahe hai., kya mahabharat me jaisa unhone kaha ki ye yug mera nahi hai, aisa kah kar apna dayitwa sametana chahte hai?

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  9. Prithvi par rehke aap surya ko kha sakte hai??? Surya ko kha kar koi prothvi par reh sakta hai kyonki surya prithvi se kai guna bada aur khaane ke laayak nahi hai... iska bhavarth kuch aur hai jo koi samjh nahi paya aur aisa likh samjha diya.... waise surya ki dhak lena bhi khana kaha jata hai

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  10. बाल समय रवि भक्ष लियो तब तीनहुं लोक भयो अंधियारो
    युग सहस्र योजन पर भानु।लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।
    क्या हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया था । श्री हनुमान जी पर यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है ।कई लोग कहते हैं कि धार्मिक विषय पर कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाना चाहिए। चुपचाप स्वीकार कर लेना चाहिए ।परन्तु सच्चाई इस से बिल्कुल अलग है ।महर्षि मनु कहते हैं जो तर्क से जाना जाए वह धर्म है । धर्म मैजिक (जादू) नही लॉजिक (तर्क) पर आधारित है।
    अब जरा इस विषय पर विचार करें हम सभी जानते हैं सूर्य पृथ्वी से करोड़ो गुना बड़ा है और सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है ।तीसरे महत्वपूर्ण बात है सूर्य अत्यंत गर्म हैं ।
    हनुमान जी के सूर्य निगलने पर विचार करते हैं कहते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हनुमानजी के पास अणिमा गरिमा आदि सिद्धियां थी जिसके कारण वह शरीर को बड़ा कर सकते थे। चलिए अभी हम अणिमा गरिमा क्या है इस विषय पर विचार बाद में करेंगे पहले शरीर बड़ा करने पर विचार करते हैं ।
    मान लीजिए एक गुब्बारा है जब हम उसमें हवा भरते हैं वह बड़ा हो जाता है। बाहर की हवा गुब्बारे के अंदर चली जाती है हमें लगता है कि गुब्बारा बड़ा हो गया है। यदि हम हनुमानजी का शरीर बड़ा करने का गुण भी स्वीकार करें तो शरीर बड़ा करने के लिए सारी धरती का पानी और धरती की हवा हनुमान जी के शरीर में समा जाए तो भी हनुमान जी सूर्य से छोटे ही रहेंगे क्योंकि वायुमंडल की संपूर्ण वायु और पृथ्वी के समुद्रों का सारा जल भी मिला लिया जाए सूर्य के मुकाबले नगण्य है। हनुमान जी का सूर्य को निगलना केवल एक कल्पना है। इसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं है आप इसे स्वीकार करें या ना करें यह आप पर निर्भर है ।
    वाल्मीकि रामायण के लगभग 10 संस्करण उपलब्ध हैं। उनमें से 1 या 2 संस्करणों में यह कहानी मिलती है। जहां यह कहानी मिलती है वहां इसका कोई प्रकरण ही नही है। साफ साफ पता चलता है कि इसे बाद में मिलाया गया है।
    अब अणिमा और गरिमा आदि सिद्धियों के विषय में जानते हैं। अणिमा सिद्धि का अर्थ है चित्त का छोटी से छोटी बातों को जानने में सक्षम होना। गरिमा सिद्धि का अर्थ है विशाल ज्ञान को एक समय में एक साथ धारण करना । यह सिद्धियां मानसिक हैं ना कि शारीरिक।
    आप विचार करने के लिए स्वतंत्र हैं। सहमति और असहमति आपका अधिकार है। इस लेख के पीछे किसी की मानसिकता का अपमान करना नही है।

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  11. Sir hanuman ji valmiki ramayan k anusaar hanuman ji janm kese hua tha (please answer) why his one name is pavan putra kya pavan=pavan dev hai ya koi normal human being jiska naam pavan hai

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  12. (1)
    वा=पवन
    नर= पुरूष
    पवनदेव के पुत्र , वंशज
    (2) हनुमानजी पर वज्र का प्रहार इन्द्रदेव द्वारा आखिर मे किया गया था जिससे उनकी दाढी और मुँह का भाग क्षतिग्रस्त हो गया था जिस कारण हनुमानजी का मुँह बन्दर के समान दिखता था।
    (जानकारी के मुताबिक)

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