Monday, September 30, 2013

बाइबिल में वैदिक कर्म-फल व्यवस्था

 


"जो जैसा बोयेगा वो वैसा पायेगा"

वेदों में वर्णित कर्म फल व्यवस्था को इतने आसान शब्दों में शायद ही कोई समझा सकता हो। प्राचीन काल से ही हर वैदिकधर्मी इस अटल एवं अकाट्य सिद्धांत को मानता आ रहा हैं। खेद हैं कालांतर में कुछ मानव निर्मित मत अपने अपने शोर्टकट के रूप में अलग रास्ता बताते हैं, जैसे उस मत के प्रवर्तक को केवल बात मान लो, पुरुषार्थ कर्म की चिंता मत करो अथवा जैसा उस मत की विशेष पुस्तक में लिखा हैं वैसा मान लो बाकि चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं हैं।


सभी मत मतान्तरों की आंशिक शिक्षाएँ वेदों की सत्य शिक्षा से मेल खाती हैं।
जैसे बाइबिल में कर्म फल व्यवस्था का स्पष्ट वर्णन इस प्रकार से किया गया हैं।


रोमियो 2:6 वह हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला देगा।
रोमियो 2:7 जो सुकर्म में स्थिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में है, उन्हें वह अनन्त जीवन देगा।
रोमियो 2:12 इसलिये कि जिन्हों ने बिना व्यवस्था पाए पाप किया, वे बिना व्यवस्था के नाश भी होंगे, और जिन्हों ने व्यवस्था पाकर पाप किया, उन का दण्ड व्यवस्था के अनुसार होगा।
रोमियो 2:13 क्योंकि परमेश्वर के यहां व्यवस्था के सुनने वाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलने वाले धर्मी ठहराए जाएंगे।
याकूब 2:24 सो तुम ने देख लिया कि मनुष्य केवल विश्वास से ही नहीं, वरन कर्मों से भी धर्मी ठहरता है।
प्रकाशित वाक्य 22:12 देख, मैं शीघ्र आने वाला हूं; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है।
गलतियों 6:7 धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।

इतने स्पष्ट प्रमाण होने के बाद भी ईसाई समाज का यह मानना की जो प्रभु यीशु पर विश्वास लाता हैं उसी का कल्याण होगा संदेह जनक कथन प्रतीत होता हैं।
डॉ विवेक आर्य

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