Saturday, May 25, 2019

स्वतंत्रता सेनानी पंडित प्रभुदयाल आर्य (पोळी जींद)



स्वतंत्रता सेनानी पंडित प्रभुदयाल आर्य (पोळी जींद)

              
                          आपसे बढ़कर किसी में बल नजर आता नहीं, आप से बढ़कर कोई निर्बल नजर आता नहीं, आपसे बढ़कर कोई ज्ञानी नजर आता नहीं, आपसे बढ़कर कोई दानी नजर आता नहीं, प्रभु आप तो दातार हो भिक्षुक तेरे द्वार हम, आत्मिक बल दान दो करते हैं नाथ पुकार हम।।

आर्य समाज के भजनोपदेशको का इतिहास गौरवशाली रहा है। गांव गांव से महर्षि के दीवाने थे। जिन्होंने आर्य समाज, वेद का नाम महर्षि दयानंद जी के रास्ते को जन जन तक पहुंचाया है। इसी सूची में जींद जिले के गांव पोळी से स्वतंत्रता सेनानी पंडित प्रभुदयाल आर्य जी का नाम अग्रणी पंक्तियों में आता है। 

जन्म 

         पंडित प्रभुदयाल जी का जन्म जींद जिले के पोळी गांव में 9अगस्त 1911 को श्रावणी पर्व पर एक साधारण वैश्य परिवार में हूआ। इनके पिता श्री हरफुलदास जी व माता श्री घोगड़ी देवी एक धर्मपरायण इस्त्री थी। उस जमाने में शिक्षा का अभाव होने के कारण इन्होने साधारण शिक्षा ग्रहण की। लेकिन 18 वर्ष की आयु में एक सज्जन ने इनको सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दे दिया। इनके पिछले जन्मो के शुभ कर्मो का फल कहें या इसी जन्म में परमात्मा ने इनको आर्य जगत के प्रचार प्रसार हेतु भेजा। सत्यार्थ प्रकाश पढ़ते ही इनको महर्षि दयानंद के प्रति अटूट प्रेम जाग उठा। पंडित जी तो ऋषि की दीवाने बन गए। बचपन से गाने का शौक भी हो चुका था। 

गायन 

         बचपन में गाने की रुची हो चुकी थी, उसी दौरान इनकी मुलाकात महाशय घासी राम आर्य खरैंटी वाले से हूई, ओर आगे चलकर उन्हीं को अपना गुरु माना। गाना बजाना शुरु कर दिया। ओर महर्षि दयानंद के प्रचार में लग गए। इनको दलितों के प्रति दया भावना थी। अनेकों शुद्धिकरण किये, आर्य निर्माण किये। इस भाव को देखते हूए गांव के वैश्य समाज ने इनको जात बिरादरी से गिरा दिया। जात निकाला कर दिया। तरह तरह की यातनाएं दी गई। पंडित जी कहते रहे महर्षि दयानंद का सिपाही बन चुका हूँ। चाहे कुछ करो मैं अपने पथ पर अडिग रहूंगा। इन सभी यातनाओं का पंडित जी ने निडर होकर सच्चे सिपाही की तरह सामना किया। 

हैदराबाद सत्याग्रह 

                       इस आंदोलन में अनेको जगह से आर्यों ने इकट्टे होकर निजाम का विरोध किया ओर आर्य समाज की विजय हूई।इस आंदोलन में आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा दिल्ली के अंतर्गत पंडित जी भी गए। ओर सक्रिय भूमिका निभाई।  इसी दौरान इनको सात महिने की जेल हूई। हैदराबाद के निजाम उस्मान ने इनको इतनी यातनाएं दी की दिन में भुखे पेट चार चार किलो ज्वार का आटा पिसना, सोने के लिए भी कंकरों के उपर बीना बिस्टर के सोना, ओर खाने में दो ज्वार के आटे की रोटी। भुख प्यास से व्याकुल हूए लेकिन फिर भी अपने पथ पर रहे। हैदराबाद जेल में पंडित जी 22/1/1939से 18/8/1939तक रहें। अंग्रेजो का दमन चक्र भी सहा, आजादी के लिए भी पंडित जी ने जमकर प्रचार किया। अप्रैल 1939 में रोहतक जत्थे पर मुसलमानों ने हमला कर दिया जिससे गुरुकुल भैंसवाल के ब्रह्मचारी बुरी तरह घायल हो गए, इस हमले से पंडित जी को बहुत चोटें आई। ऐसे ही जून में निजाम के सिपाहियों ने जत्थे पर हमला किया वहां भी पंडित जो अनेको चोटें आई। कड़कति धूप में पंडित घास खोदते तब जाकर वहां का निजाम रुखी सुखी रोटी देता। लेकिन अंतत: आर्यो के सामने निजाम ने घुटने टेक दिये। 

प्रचार 

        पंडित जी का प्रचार जैसा की जिक्र कर चुके हैं आर्य प्रादेशिक प्रतिनिधि सभा दिल्ली के अंतर्गत प्रचार करते थे। ओर हैदराबाद आंदोलन के अलावा पंडित जी ने हिंदी रक्षा आंदोलन 1957 में सक्रिय भूमिका निभाई, गोरक्षा आंदोलन में भी शामिल हूए। राजस्थान की एक घटना इनके एक परम् श्रद्धालु से सुनने को मीली, अलवर जिले में पंडित जी प्रचारार्थ गए, भंयकर काली राते, दिन, दोपहर में वहां प्रचार किया। लेकिन पंडित जी को कोई खाने की पुछने वाला नहीं था। तीन दिन तक सिर्फ पानी के सहारे वेद पताका फहराके आए। उसी दौरान इनको महाश्य सुमेर जी आर्य खरकड़ा बलम्बा का साथ मिला, फिर रामकुमार आर्य हिसार का। दोनों पंडित जी के शिष्य बन गए। पंडित जी ने दलित कन्याओं के लिए पठन पाठन का कार्यभार संभाला, पोळी गांव में पाठशाला खोली, नांदल गांव में आर्य पाठशाला का निर्माण, गांव मदीना (दांगी) पौराणिकों का गढ़ माना जाता था वहां पर आर्य पाठशाला खोली ओर वेद का परचम लहराया। 85वर्ष की आयु में भी पंडित जी गुरुकुलों के उत्सवों में कष्ट उठाकर पहूंच जाते थे। 

गीत 

      पंडित जी बहनो के गीत प्रभु भक्ति, चेतावनी भजन इत्यादि बड़े चाव से गाते थे। जैसे की ""हे सावित्री भ्रम छोड़ दे वेद धर्म पै चाल ये जीवन बीत्या जा""। ""सुनों आर्यो होकर कै ध्यान पंच महायज्ञ रोज करों""। ""वेद के प्रचार बीना राम के दरबार बीना आर्य सरकार बीना नाश होता आ रहा""। विशेषकर इन भजनो को महाशय सुमेर आर्य, रामकुमार आर्य बाघड़ु, ईश्वर सिंह खरकड़ा, रामनिवास आर्य, तेजवीर आर्य गाते थे व गाते आ रहे हैं। एक बार सन् 1991 में पंडित नागौरी गेट हिसार आर्य समाज के उत्सव पर पहुंचे वहां पर अत्यधिक बुखार होने पर भी भजन सुनाएं ओर जैसे ही मंच से नीचे उतरे तो दादा श्री चौधरी बदलुराम आर्य मुकलान वालो ने पंडित जी से कहा :- पंडित जी आपकी आवाज ये बोल सिद्धे छाती में लगते हैं"। हिसार जिले में तो पंडित का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चाहे गुरुकुलों में प्रचार करना हो चाहे किसी वैसे ही आर्य परिवार में। 

परिवार 

           पंडित जी की शादी सन् 1947 में भागवंती देवी गांव डीघल के साथ हूई। जिससे इनको पांच संताने हूई। दो बेटे तीन बेटियाँ। दिनेश जी तो आज भी इनकी शैली में भजन गुनगुनाते रहते हैं। 

देह त्याग
 

            पंडित जी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी आर्य समाज महर्षि दयानंद के प्रति सम्रपीत थे। आवागमन के इस चक्र में पंडित जी ने अपना नश्वर शरीर 12/1/2000 को त्याग दिया। समुचे आर्य जगत में शौक  छा गया। मैं नमन् करता हूँ महर्षि दयानंद सरस्वती के सच्चे सिपाही को। आप जैसे हजारों विद्वज्जनों के कारण आर्य समाज यहां तक पहुंचा है। 

               परिवर्तिनि संसारे मृत: को वा न जायते।
              स जातो येन जातेन भाति वंश: समुन्नितम्।।

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