बीमार मानसिकता
डॉ विवेक आर्य
नवरात्र का आज अंतिम दिन है। पिछले कुछ वर्षों से नवरात्रों के समय कुछ असुर प्रवृति वाले विशेष रूप से उत्तेजित होकर बौद्धिक प्रदुषण मचाते हैं। क्या करे अपनी बीमार मानसिकता के चलते ये कोई सार्थक कार्य कर ही नहीं सकते। महिषासुर महिमामंडन दिवस, रावण महिमामंडन जैसे कृत्य करने के बाद इस वर्ष इन्होनें नया कुछ सोचा। क्यों न देवी के नाम पर भ्रमित किया जाये? इसी प्रकरण में देवियों को मानवाधिकार से जोड़कर एक सन्देश प्रचारित किया जा रहा है कि इस नवरात्र में कोई दुर्गा गर्भ में नहीं मारी जाएगी? कोई सरस्वती विद्यालय जाने से नहीं रोकी जाएगी? कोई लक्ष्मी भीख नहीं मांगेगी? कोई पार्वती दहेज़ की बलि नहीं चढ़ेगी? कोई सीता मौन रहकर अत्याचार नहीं सहेगी? कोई काली गोरे होने की क्रीम नहीं लगाएगी?
ऊपर से देखने में यह बहुत सुन्दर सन्देश लगेगा मगर क्या आपने कभी सोचा है कि ये सभी सन्देश हिन्दुओं के लिए ही क्यों होते हैं। जैसे cracker less दीवाली, water less होली इत्यादि। जैसे blood less ईद, alcohol free Christmas कभी पढ़ने को नहीं मिलता। रमजान में आपको कभी यह सुनने को नहीं मिलेगा कि आज किसी आयशा का हलाला नहीं होगा? आज किसी ख़दीजा का तीन तलाक नहीं होगा? आज किसी मरियम का पति उसे नहीं पिटेगा? आज किसी ज़ैनब को अनेक संतान पैदा करने के लिए बाधित नहीं होना पड़ेगा? आज किसी फातिमा को अनेक सौतन का सामना नहीं करना पड़ेगा?
ऐसा सन्देश हमें कभी इसलिए नहीं पढ़ने को मिलता क्यूंकि हिन्दुओं को बिना मांगे सलाह देने के लिए हज़ारों साम्यवादी मानसिकता के लोग सारा दिन कलम घिसाते हैं। उनके लक्ष्य केवल हिन्दुओं के देवी-देवताओं और त्योहारों को लक्ष्य बनाकर अपनी बीमार मानसिकता के बीजों का रोपन करना हैं। वे मानना है कि हिन्दू समाज में वर्तमान में ऐसे कोई व्यवस्था नहीं है जो इस वैचारिक प्रदुषण को रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं। मगर अब ऐसा अत्याचार नहीं चलेगा। सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे लाखों कार्यकर्ता रात दिन इस सुनियोजित षड़यंत्र को रोकने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। आप भी इस सन्देश को अपने मित्रों-सम्बन्धियों तक अवश्य भेजें ताकि षड़यंत्र असफल हो जाये।
सलंग्न चित्र इसी मानसिकता का एक उदहारण है जो इस वर्ष नवरात्री के अवसर पर प्रचारित किया गया है।
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