बोध कथा
राम और श्याम दो मित्र थे। दोनों ने दूध बेचने का व्यापार आरम्भ किया। राम स्वाभाव से ईमानदार, शांतिप्रिय, सज्जन व्यवहार का था जबकि श्याम कुटिल, लालची एवं क्रूर स्वाभाव का था। राम ने सदा ईमानदारी से दूध बेचा और कभी मिलावट नहीं करी। जबकि श्याम पानी मिला मिलाकर दूध बेचता रहा। धीरे धीरे श्याम धनी बनता गया और उसके पास अपना मकान, सम्पति आदि हो गए जबकि राम निर्धन का निर्धन बना रहा।
धीरे धीरे राम के मन में एक विचार बार बार घर करने लगा कि क्या कलियुग में अधर्म से ही सुख मिलता हैं? राम के मन में यह विचार उठ ही रहा था कि एक साधु उनके गांव में पधारे। राम ने उनके समीप जाकर कहा- महात्मा जी मनुष्य धर्म से फलता हैं अथवा अधर्म से फलता हैं। महात्मा जी मुस्कुराएं एवं राम को अगले दिन इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आने को कहा।
राम जब अगले दिन उनके समीप पहुंचा तो उसने देखा की महात्मा जी के यहाँ पर धरती में आठ फुट गहरा गढ़ा खुदा हुआ हैं। महात्मा जी ने राम को उस गढ़े में खड़े होने को कहा। अब उस गढ़े में जल डाला जाने लगा। जब जल राम के पैरों तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पूछा कोई कष्ट। राम ने उत्तर दिया नहीं कोई कष्ट नहीं हैं। जब जल राम कि कमर तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पूछा कोई कष्ट। राम ने उत्तर दिया नहीं कोई कष्ट नहीं हैं। जब जल राम कि गर्दन तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पूछा कोई कष्ट। राम ने उत्तर दिया नहीं कोई कष्ट नहीं हैं। जब जल राम के सर तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पूछा कोई कष्ट। राम ने उत्तर दिया महात्मा जी बाहर निकालिये नहीं तो जान पर बन आएगी।
महात्मा जी ने राम को बाहर निकाला और पूछा अपने प्रश्न का उत्तर समझे। राम ने कहा जी नहीं समझा। महात्मा जी ने कहा- “जब पानी आपके पैरों, कमर, गर्दन तक पंहुचा तब तक आपको कष्ट नहीं हुआ और जैसे ही सर तक पहुँचा आपके प्राण निकलने के हो गए। इसी प्रकार से पापी व्यक्ति के पाप जब एक सीमा तक बढ़ते जाते हैं तब एक समय ऐसा आता हैं कि उसके फल से उसका बच निकलना संभव नहीं होता और वह निश्चित रूप से अपने पापों का फल भोगता हैं। मगर पापों का फल मिलना निश्चित हैं”
“अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दशवर्षाणि तिष्ठति
प्राप्त एकादशे वर्षे समूल्ञ्च् विनश्यति”
प्राप्त एकादशे वर्षे समूल्ञ्च् विनश्यति”
शिक्षा- पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता अवश्य है।
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