कलियुग में भगवानों का जुलुस
कलियुग में एक बार सभी भगवानों का जुलुस निकला। भगवानों के जुलुस में उनके साथ उनके श्रदालु, सेवक अपने अपने इष्ट देव के गुण गान करते हुए निकल रहे थे। दर्शकगण बड़े उत्साह से जुलुस देखने निकले। सबसे आगे परम पिता परमात्मा परमेश्वर थे जिनके साथ बमुश्किल 1-2 श्रद्धालु थे। एक दर्शक ने पूछा भाई आप के साथ इतने कम लोग क्यों है। एक चतुर पास खड़ा था। वह बोला की मैं बताऊ? सभी के हाँ कहने पर बोला की आज कलियुग है। पहले आप की बहुत प्रतिष्ठा थी या यह कहे की इनका एकछत्र राज्य था। सम्पूर्ण संसार एक सर्वव्यापक निराकार ईश्वर की उपासना करता था। अब समय बदल गया है। 1 -2 व्यक्तियों को छोड़कर सभी साकार अवतारों की, गुरुओं की पूजा करने लग गए है। अब न लोग परमेश्वर के गुण, कर्म और स्वाभाव से परिचित है और न ही उन्हें जानने का प्रयास करते है।
परमेश्वर के पीछे श्री राम जी का जुलुस निकला। भीड़ कुछ कुछ थी परन्तु विशेष उत्साह नहीं दिखा। एक दर्शक ने पूछा भाई आप के साथ इतने कम लोग क्यों है। चतुर से फिर उत्तर मिला आप की सतयुग में बड़ी प्रतिष्ठा थी। लोग आपको आदर्श एवं मर्यादावान मानते थे। कालांतर में आप के चरित्र के स्थान पर चित्र की पूजा होने लगी। फिर आप के नाम से विशेष मंदिर और मूर्तियां बनने लग गई। पहले आपके जीवन चरित्र रामायण की अमर गाथा में आये संदेशों का पालन कर लोग अपने आपको मोक्षपथ का पथिक बनाते थे फिर इनके जीवन चरित्र रामायण की अमर गाथा को सुनने भर से मोक्ष प्राप्ति मानने लग गए है। अब तो बस आपका प्रभाव रामनवमी और दशहरा-दिवाली तक ही सीमित है। इन दिनों में लोग यदा-कदा आप का स्मरण करते है। इसलिए विशेष उत्साह नहीं दीखता है।
कलियुग में एक बार सभी भगवानों का जुलुस निकला। भगवानों के जुलुस में उनके साथ उनके श्रदालु, सेवक अपने अपने इष्ट देव के गुण गान करते हुए निकल रहे थे। दर्शकगण बड़े उत्साह से जुलुस देखने निकले। सबसे आगे परम पिता परमात्मा परमेश्वर थे जिनके साथ बमुश्किल 1-2 श्रद्धालु थे। एक दर्शक ने पूछा भाई आप के साथ इतने कम लोग क्यों है। एक चतुर पास खड़ा था। वह बोला की मैं बताऊ? सभी के हाँ कहने पर बोला की आज कलियुग है। पहले आप की बहुत प्रतिष्ठा थी या यह कहे की इनका एकछत्र राज्य था। सम्पूर्ण संसार एक सर्वव्यापक निराकार ईश्वर की उपासना करता था। अब समय बदल गया है। 1 -2 व्यक्तियों को छोड़कर सभी साकार अवतारों की, गुरुओं की पूजा करने लग गए है। अब न लोग परमेश्वर के गुण, कर्म और स्वाभाव से परिचित है और न ही उन्हें जानने का प्रयास करते है।
परमेश्वर के पीछे श्री राम जी का जुलुस निकला। भीड़ कुछ कुछ थी परन्तु विशेष उत्साह नहीं दिखा। एक दर्शक ने पूछा भाई आप के साथ इतने कम लोग क्यों है। चतुर से फिर उत्तर मिला आप की सतयुग में बड़ी प्रतिष्ठा थी। लोग आपको आदर्श एवं मर्यादावान मानते थे। कालांतर में आप के चरित्र के स्थान पर चित्र की पूजा होने लगी। फिर आप के नाम से विशेष मंदिर और मूर्तियां बनने लग गई। पहले आपके जीवन चरित्र रामायण की अमर गाथा में आये संदेशों का पालन कर लोग अपने आपको मोक्षपथ का पथिक बनाते थे फिर इनके जीवन चरित्र रामायण की अमर गाथा को सुनने भर से मोक्ष प्राप्ति मानने लग गए है। अब तो बस आपका प्रभाव रामनवमी और दशहरा-दिवाली तक ही सीमित है। इन दिनों में लोग यदा-कदा आप का स्मरण करते है। इसलिए विशेष उत्साह नहीं दीखता है।
श्री राम जी के पीछे श्री कृष्ण जी का जुलुस निकला। कुछ लोग उछलते-कूदते नज़र आये। मगर विशेष उत्साह अभी भी नहीं दिखा। एक दर्शक ने पूछा भाई आप के साथ इतने कम लोग क्यों है। चतुर से उत्तर मिला आप की द्वापर युग में बड़ी प्रतिष्ठा थी। लोग आपको नीतिनिपुण एवं योगिराज मानते थे। आप के नाम से भी विशेष मंदिर और मूर्तियां बनने लग गई। कालांतर में आप के चरित्र के साथ ऐसा खिलवाड़ हुआ की आप के असली चरित्र को ही लोग भूल गए। पहले आप की एक ही पत्नी रुक्मणी थी जिनके साथ आप ने 12 वर्ष तक विवाह के पश्चात ब्रह्मचर्य आश्रम का पालन किया था बाद में आप की प्रेमिका राधा बना दी गई, एक नहीं दो नहीं 16000 गोपियों के साथ आप का सम्बन्ध बना दिया गया। कोई रणछोड़ कहने लगा, कोई माखनचोर कहने लगा, कोई राधावल्लभ कहने लगा तो कोई रसिया कहने लगा । कुल मिलाकर आप की इज्जत का फलूदा आप ही के भक्तों ने बना डाला। अब लोग लड़कियां छेड़ने के लिए बहाने बनाने में आप का नाम लेते है और अपने अनैतिक कर्मों को रासलीला कहते है। अब तो बस आप का प्रभाव जन्माष्ठमी तक सीमित हैं। इन दिनों में लोग यदा-कदा इन्हें स्मरण करते है। इसलिए विशेष उत्साह नहीं दीखता है।
श्री कृष्ण जी के पीछे हनुमान जी का जुलुस निकला। आप के साथ भी कुछ भगत थे। । एक दर्शक ने पूछा भाई आप के साथ इतने कम लोग क्यों है। चतुर से उत्तर मिला आप की पहले बड़ी प्रतिष्ठा थी। लोग आपको बल,शक्ति और ब्रह्मचर्य मानते थे। आप के नाम से भी विशेष मंदिर और मूर्तियां बनने लग गई। हनुमान जी चारों वेदों के ज्ञाता, महाविद्वान एवं परमबलशाली थे। कालांतर में आपको बन्दर के रूप में चित्रित कर दिया गया। अब लोग भीख मांगने के लिए आपके जैसा वेश धारण करते हैं। आप के चरित्र और गुणों से कोई शायद ही प्रेरणा लेता हैं। अब तो बस आप का प्रभाव मंगलवार तक सीमित हैं। इसलिए विशेष उत्साह नहीं दीखता है।
हनुमान जी के पीछे महात्मा बुद्ध का जुलुस निकला। आप के जुलुस के साथ भी नाम लेवा लोग थे। एक दर्शक ने पूछा भाई आपके साथ इतने कम लोग क्यों है। उत्तर मिला आपकी पहले बड़ी प्रतिष्ठा थी। आप महान समाज सुधारक थे। आपने यज्ञों में पशुबलि एवं छुआछूत के विरुद्ध जीवनभर प्रयास किया एवं महान सफलता पाई। कालांतर में आपके बहुत से भगत हुए। मगर दया, संयम, क्षमा, दम, अस्तेय के आपके सन्देश के स्थान पर माँसाहार, तांत्रिक पूजा, उन्मुक्त सम्बन्ध, हिंसा आदि आपके नाम से स्थापित विहारों में ज्यादा प्रचलित रहा। कुछ छदम भगत जो अपने आपको नव-बुद्ध मानते है आपकी समता की शिक्षाओं का प्रयोग जातिवाद एवं राजनैतिक रोटियां सेकने के लिए करते हैं मगर आपका सच्चा भगत तो कोई विरला ही मिलता है। अब तो आपका प्रभाव बुद्ध पूर्णिमा तक सीमित है। उस दिन लोग यदा-कदा इन्हें स्मरण करते है। इसलिए विशेष उत्साह नहीं दीखता है।
महात्मा बुद्ध के पीछे शंकराचार्य का जुलुस निकला। आप के जुलुस के साथ भी नाम लेवा लोग थे। एक दर्शक ने पूछा भाई आपके साथ इतने कम लोग क्यों है। चतुर से उत्तर मिला इनकी पहले बड़ी प्रतिष्ठा थी। आप महान समाज सुधारक थे। आपने नास्तिक मतों के विरुद्ध संघर्ष किया एवं लोप हो रहे वेद विद्या के ज्ञान का पुनरुद्धार किया। आपके महान तप से वेदों को खोई हुई प्रतिष्ठा मिली। आपने भारत देश की चारों दिशाओं में धर्म रक्षा के लिए मठों की स्थापना करी और संस्कृत एवं विद्या की रक्षा के लिए अखाड़ों को स्थापित किया। जहाँ पर शस्त्र एवं शास्त्र दोनों का सम्मान था। आपको पहले शिव का अवतार एवं तत्पश्चात ईश्वर ही कहा जाने लगा। आपने अपनी पुस्तक परापूजा में मूर्ति पूजा का विरोध लिखा उसके विपरीत आप ही की मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजा जाने लगा। आपके बनाये मठों में धन-संपत्ति पर बैठकर उनके संचालक निश्चेतना की प्रगाढ़ निंद्रा में सो गए है और अखाड़ें में बैठे नागा साधु नशे की निंद्रा में सो गए है। अब तो बस आपका प्रभाव मठों और अखाड़ों तक ही सीमित है। इसलिए विशेष उत्साह नहीं दीखता है।
इस प्रकार से अनेक देवी देवताओं का जुलुस निकला उनका भी यही हाल था। उनके पीछे अनेक गुरुओं का भी जुलुस निकला। चतुर ने बताया की सभी गुरुओं के चेले अपने अपने गुरु को भगवान बता रहे थे। गुरु की सेवा, गुरु के नाम स्मरण, गुरु की कृपा से मोक्ष प्राप्ति बता रहे थे। उनके लिए इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता था की उनके गुरु चाहे बलात्कार के आरोप में जेल में बंद हो, चाहे अनेक रोगों से पीड़ित होकर रोग शैया पर पड़े हो, चाहे वृद्धावस्था के कारण देखने, सुनने और चलने में अशक्त हो। उनके लिए तो जीवन के सभी दुखों से, सभी असफलताओं से, सभी समस्यायों से बचाने की अगर कोई शक्ति रखता था तो वो केवल और केवल गुरु था क्यूंकि गुरु के बिना कलियुग में कोई भी ईश्वर की प्राप्ति नहीं करा सकता, कोई मोक्ष नहीं दिला सकता था। गुरुओं के ठाठ देख कर यही लगा की इनके चेले अंधे है और अंधे ही रहेंगे। सभी गुरुओं के पीछे कुछ भीड़ थी मगर दर्शकों को लगा की ये सभी मानसिक गुलाम हैं न की सत्य अन्वेषक है। इस प्रकार से विभिन्न गुरुओं के जुलुस भी निकल गए।
दर्शकों को अभी भारी भीड़ वाले जुलुस की प्रतीक्षा थी और भारी भरकम भीड़ वाले जुलुस की प्रतीक्षा समाप्त हुई। चारों और नरमुंड ही नरमुंड। पाँव रखने तक का स्थान नहीं था। दर्शकों को यह उत्सुकता हुई की यह किसका जुलुस था। मगर कोई व्यक्ति नहीं दिखा। चतुर ने बताया की देखों मध्य में कोई पत्थर लिए जा रहे हैं। और पता करने पर पता चला की यह अजमेर वाले ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की कब्र थी। ये सभी चेले अपने आपको सेक्युलर मानते है और हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना के लिए मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने को अपना धर्म मानते है। चतुर से पूछा गया की हिन्दुओं का ग़रीब नवाज़ से क्या सम्बन्ध है। तो वह बोला की हमारे देश के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान को हराने वाले मुहम्मद गौरी का गरीब नवाज मार्गदर्शक था। उसने सबसे पहले इस्लामिक तलवार की काफिर हिन्दू राजा पर विजय की दुआ करी थी। उसने पुष्कर धर्मनगरी के पवित्र घाटों पर मांस पकाकर खाया था एवं पृथ्वीराज के सेना की गुप्त खबरे गौरी तक पहुंचाई थी। सुनकर दर्शकों के मुंह खुले के खुले रह गए। उन्हें यह समझ में नहीं आया की ये लाखों लोगों की भीड़ गरीब नवाज का अनुसरण क्यों कर रही है। गरीब नवाज ने हिन्दू समाज का कैसा अहित किया है उसके बारे में जानने के पश्चात तो कोई मुर्ख हिन्दू उसके जुलुस में शामिल होगा। चतुर ने एक जुलुस में शामिल बन्दे को गरीब नवाज की हकीकत बताई तो वह बोला की भगत तो अँधा होता है। हमें यह नहीं देखना चाहिए की हम किसकी भक्ति कर रहे है। बस भक्ति करनी चाहिए। चतुर और अन्य दर्शक सर खुजला कर रह गए मगर अक्ल के अंधे आँख के अंधों से भी ज्यादा अंधे निकले।
अंत में आखिरी जुलुस दिखने लगा। ऐसे भीड़ किसी भी भगवान के जुलुस में अभी तक देखी नहीं गई। दर्शकों की उत्सुकता यह जानने के लिए बढ़ गई की यह कौन सा भगवान है जिसके साथ सबसे अधिक भीड़ है। पास आने पर स्पष्ट हुआ की यह शिरडी के साईं बाबा है। सबसे अधिक चेले, भगत अगर आज किसी के है तो वह शिरडी के साईं के है।सबसे अधिक भीड़ देखकर सभी दर्शक आपस में वार्तालाप करने लगे की इससे तो यही सिद्ध हुआ की कलियुग में सबसे बड़े भगवान अगर कोई है तो शिरडी के साई बाबा है। चतुर पास ही खड़ा सुन रहा था वह बोला क्या आप जानते है की वह शिरडी के साईं बाबा कौन थे ? दर्शकों की उत्सुकता जानने की हुई और वे बोले जी अवश्य जानना चाहेंगे। चतुर ने बताया की आपका असली नाम चाँद मुहम्मद था, आप मस्जिद में रहते थे, पांच टाइम के नमाज़ी थे, मांस मिश्रित बिरयानी का शोक रखते थे और सबका मालिक एक कहते थे। आपका समाज पर उपकार का विश्लेषण करे तो आपके बारे में केवल यही प्रसिद्द हैं की आप कुछ चमत्कार करने की काबिलियत रखते थे और वे सभी चमत्कार और आपकी ख्याति महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव तक ही सीमित रही थी। यद्यपि जिस काल में आप इस देश में रहे उस काल में देश में अंग्रेजों का क्रूर राज्य रहा, भूकम्प, प्लेग, बाढ़ और अकाल से लाखों मौतें हुई पर आपने कोई चमत्कार न दिखाया जिससे देश और उसके निर्धन निवासियों का कुछ भला होता। आपकी ख्याति 100 साल तक केवल एक गाँव तक सीमित क्यों रही इसका कारण भी मालूम नहीं चलता। पर अब तक आपके चेलों ने आपके गुड़ की शक्कर ही बना दी है। आपको न केवल सबसे बड़ा भगवान बना दिया है अपितु आपको देश के 90 % मंदिरों में स्थान दे दिया है। और स्थान भी कोई ऐसा वैसा नहीं बल्कि सबसे बड़ी मूर्ति, सबसे भव्य मूर्ति, सबसे मध्य में आपकी बनाई गई है जिसके आगे बाकि सभी भगवानों की मूर्तियां बौनी लगे।
विडंबना यह है की हिन्दू समाज को यह भी नहीं मालूम की साईं बाबा की पूजा वे लोग क्यों कर रहे है। धनी इसलिए कर रहे है क्यूंकि वे समझते है की उनका धन कहीं चला न जाये और निर्धन इसलिए कर रहे है की उनके पास धन आ जाये। सभी चमत्कार में विश्वास रखते है। धर्म शास्त्र जैसे वेद, गीता आदि में वर्णित कर्म-फल का सिद्धांत उन्हें देर से परिणाम देने वाला और अप्राप्य प्रतीत होता है और चमत्कार अधिक प्रभावशाली एवं शीघ्रता से परिणाम देने वाला प्रतीत होता है । जबकि वह यह नहीं जानते की प्रतिष्ठता, स्वार्थ आदि की पूर्ति के लिए मनुष्यों की अविद्या, अज्ञानता एवं असमर्थता का लाभ उठाने के प्रपंच का नाम चमत्कार है।चमत्कार अन्धविश्वास के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं और मुर्ख लोग ही इसमें विश्वास करते है।
चतुर की बात सुनकर दर्शक सोच विचार में लग गए और उनसे पूछने लगे की भाई जी यह तो बताये की ईश्वर की सत्य परिभाषा क्या है एवं ईश्वर क्या कर्म करते हैं। इस पर चतुर ने उत्तर दिया की ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है और उसी की उपासना करने योग्य है। समाज में जितने भी भगवान अवतार के नाम पर प्रचलित है जिनके नाम पर अनेक मंदिर, अनेक मूर्तियां बनाई गई है सभी मनुष्य की कल्पना है। श्री राम और कृष्ण जी महाराज हमारे महान पूर्वज थे जिनके जीवन से मर्यादा और चरित्र का पवित्र सन्देश हमें प्रेरणा देता है परन्तु वे भी उसी वैदिक ईश्वर के ही उपासक थे। आज समाज में सभी प्रकार के अन्धविश्वास एक ही क्षण में समाप्त हो सकते है अगर सर्वव्यापक और निराकार ईश्वर की सत्ता को हर व्यक्ति स्वीकार करने लगे। वैदिक ईश्वर को जानने वाला व्यक्ति कभी पाप कर्म नहीं और आत्मिक उन्नति करता हुआ परम सुख मोक्ष को धारण करता है। और जो लोग इस सुख की प्राप्ति करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रपंचों का सहारा लेते है वे अज्ञानता के सागर में डूबकर जन्म-जन्मान्तर तक ऐसे ही भटकते रहते है। इसलिए भ्रम से बाहर निकलिये और यथार्थ को स्वीकार करते हुए वेद पथ के गामी बनिए।
आप सभी पाठकों में से कौन कौन चतुर है, कौन कौन दर्शक है और कौन कौन जुलुस में शामिल है आप स्वयं निर्णय कीजिये।
डॉ विवेक आर्य
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