महिला जगत
बाल ब्रह्मचारिणी वीरांगना राणाबाई
-किशनाराम आर्य
राणाबाई नामक एक देवी महान् ईश्वर भक्त थी। उनकी गणना सीता , सावित्री , मदालसा , दमयन्ती , अनसूया , गार्गी , लोपामुद्रा , किशोरी , सती , कौशल्या , किरण , तारा , पद्मावती , लाजवन्ती , और रत्नावली से की जाती है। मरु प्रदेश जोधपुर के हरनावा गाँव के चौधरी श्री जालिम सिंह जी सरदार के जो बिसियों गांवों की सरदारी करते थे यहां विक्रम संवत् सोलह सौ में राणाबाई का जन्म हुआ था।
वीरांगना राणाबाई ने अनेक दु:ख झेल कर तथा अपने माता - पिता भाई भौजीइयों के अनेक प्रकार से समझाया पर फिर भी विवाह नहीं किया था। राणाबाई बाल्यकाल से ही ईश्वर भक्ति में समय बिताती थी। उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर रखा था। जब 15 या 16 वर्ष की उम्र मे उनके माता - पिता ने विवाह की चर्चा की तो राणाबाई ने अपने जननी जनक के समक्ष हाथ जोड़ अपनी भीष्म प्रतिज्ञा बताते हुए कहा कि मैं अविवाहित रहूंगी। आप मेरे विवाह करने की चिन्ता न करें। चौधरी जालिम सिंह जी ने कहा कि बेटी इस समय हमारी मातृ भूमि के बहुत बड़े भू भाग पर विधर्मी मुसलमानों का राज्य है। मैं उनसे तुम्हारी रक्षा कैसे करूंगा ? राणा बाई ने जवाब दिया कि कृपालु ईश्वर मेरी रक्षा करेगा।
हरनामा गांव से दो कोस उत्तर दिशा में गाछोलाव नामक का तालाब था। उस तालाब के पास दिल्ली के बादशाह अकबर का सूबेदार हाकिम रहता था। उसके पास पांच सौ सवार रहते थे। वह मुसलमान था। अन्यायी और व्यभिचारी था। राणाबाई के रूप लावण्य युवावस्था और अति सुन्दरता की बात सुन कर उसने अपने मन में ठान ली कि मैं येनकेन प्रकारेण राणा बाई को प्राप्त कर उससे विवाह करूंगा। एक दिन चौधरी जालिम सिंह जी सरकारी लगान लेकर गाछोलाव तालाब के पास से होकर छिवाला के चौधरी के पास जा रहा था।
किसी ने बता दिया कि यही चौधरी जालिम सिंह जी राणाबाई के पिता हैं। उस छलिया हाकिम ने धोखे से जालिम सिंह को पकड़ लिया और मीठी - मीठी बातों से अनेक तरह के लालच देकर कहा कि तुम अपनी पुत्री राणाबाई का विवाह मेरे साथ कर दो। पहले तो जालिमह जी ने नम्रता से उत्तर दिया कि मेरी लड़की जब अपने धर्म के योग्य वर से विवाह करने से इनकार कर रही है , तो फिर विधर्मी मुसलमान से विवाह कैसे कर सकती है। इस बात को सुनकर वह राजदूत हाकिम बहुत गरम हुआ ; और उसने जालिम सिंह को नजरबंद कर लिया। चौधरी जालिम सिंह ने क्रोधित होकर उसे खूब फटकारा।
इस पर वह अपनी सेना लेकर हरनामा गांव पर चढ़ गया। सेना ने हरनामा गाँव को चारों तरफ से घेर लिया , नाकेबंदी कर दी फिर वह अपने अंगरक्षक व चुने हुए सैनिक साथ लेकर राणाबाई को लाने उनके घर पहुंचा। ईश्वरीय भक्त राणाबाई उस समय भी प्रभु भजन में शान्तचित्त योगियों की तरह मन व लीन थी। वह दुष्ट राक्षस जब उनके सामने जाकर खड़ा हो गया तो बिजली की चमक जितनी देर में वीरांगना खड़ी हुई और सिंहनी की तरह झपटी। खूंटी से ढाल - तलवार उतार कर म्यान से निकाल ली और एक ही वार से उस हाकिम का सिर काट दिया। फिर उसे बाएं पैर से ठोकर मारी। यवन सैनिक राणाबाई का यह भयंकर रूप देखकर थर थर कांपने लगे। सामना भी किया , परन्तु राणाबाई तो सिंहनी जैसे बकरे पर निडर और निःशंक होकर झपटती है। वैशे ही काट - काट कर उसने लाशों के ढेर लगा दिये। राणाबाई की तलवार की मार से शत्रु प्राण बचा कर भागे। बादशाह अकबर ने फिर हमला नहीं किया। वह अनेक वीरांगनाओं के तलवारों के जौहर देख चुका था। अकबर बड़ा दगाबाज था। उसने रामा कृष्ण और ऋषि महर्षियों की संतान को झूठ , कपट , छल , लोभ , लालच , पद , जागीर नौकरियां और रिश्तेदारियां आदि मीठे विष पिला कर हमेशा के लिए पगु बना देने के प्रयत्न शुरू किये थे।
राणाबाई की इस विजय से हिन्दुओ का सिर ऊंचा हो गया । दुःखिया बहिनों को उस समय सिंहनी सदृश वीरांगना बन अपने सतीत्व की रक्षा करने का पद प्रदर्शन मिला। उनकी कीर्ति फैल गई। चौधरी जालिम सिंह छुड़ा लिये गए। राजाओं के जमाने की बात है। कुछ राज पुरुष जोधपुर राजबाई जी की सगाई जयपुर महाराज से करने के लिए जा रहे थे। रात में ये लोग राणाबाई के धाम पर ठहरे और मंद में चूर हो कर के मद्य मांस का सेवन करने लगे। जब जोधपुर महाराजा को मालूम हुआ कि सरकारी उन्मत्त नौकरी ने राणाबाई के धाम की पवित्रता बिगाड कर मद्य मांस का सेवन किया तो तत्कालीन जोधपुर नरेश ने सरकारी नौकरों को सजा दी , और राणाबाई से क्षमा मांगी।
आज भी राणाबाई की वीरता उनका संगमी जीवन , ईश्वर भक्ति , गोसेवा , निर्भयता , ब्रह्मचर्य पालन और स्वदेश भक्ति के गीत गाये जाते हैं। मारवाड़ में उनकी गाथा चाव से कही और सुनी जाती है। प्रभु , ऐसी महिमामयी वीरगांनाए भारत के घर घर में पैदा करे।
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