सरदार नाहर खाँ !
-जयनारायण व्यास
इन्सान की कमजोरियों में एक बड़ी कमज़ोरी यह है कि वह दूसरों को अपने से अधिक देखना पसन्द नहीं करता। अगर कोई व्यक्ति बलवान होता है , तो दूसरे लोग उससे डाह करने लगते हैं। इतना ही नहीं वे इस ताक में रहते हैं कि ऐसे व्यक्ति का खातमा कर दिया जाये। कई श्रेष्ठ और महान् गुणी व्यक्ति इसी डाह के कारण खटपटियों के जाल में दुनियां से विदा हो गये और उनके चले जाने से दुनिया गरीब ही हुई है। अपना विकास करके , संसार में श्रेष्ठ बनने के बदले लोगों का नाश करके श्रेष्ठों की श्रेणी में आने की चेष्टा कर चाहे कुछ समय के लिए मान और पूजा प्राप्त कर सकते हैं , पर सही मान और स्थायी प्रतिष्ठा के अधिकारी वे ही हो सकते हैं , जिनमें खुद की कुछ शक्ति हो। यद्यपि महाराजा जसवंतसिंह को बादशाह औरंगजेब ने पठानों का शासन करने के लिए अफ़गानिस्तान भेजा था और उनको रुतबा भी बहुत बड़ा दिया गया था , तथापि वे उनसे भयभीत रहते थे। इसका कारण महाराज की वीरता और चतुराई के अलावा उनके वे स्वामी भक्त सिपाही थे , जो महाराज के लिए प्राण विसर्जन करने को सदैव तत्पर रहते थे।
ऐसा ही एक वीर था नाहरसिंह ! - ऐसे वीर योद्धाओं के प्रति घृणा या ईर्ष्या करना उन लोगों के लिए स्वाभाविक था , जिनके शरीर में बल और हृदय में साहस का अभाव हो। ऐसे लोगों ने मन - ही - मन महाराजा जसवन्तसिंह से जलने वाले बादशाह औरंगजेब के सामने राठौर नाहरसिंह के लिए कुछ जा बेजा बात की तो क्या अचरज ? "
अगर नाहरसिंह सचमूच अपने को नाहर या शेर समझते हैं तो उसे राजमहल के पिंजड़े में बंद शेर से कुश्ती लड़नी होगी। " बादशाह ने अपने मुंह लगे लोगों के बहकाने पर निश्चयपूर्वक कहा। उन्होंने सुना और हाँ कह दिया। कुश्ती की घोषणा कर दी गई। शेर के पिंजड़े के चारों ओर दर्शकों की भीड़ थी , उनमें प्रमुख थे बादशाह औरंगजेब खुद। सभी मन में यही कल्पना कर रहे थे कि पिजड़े के सामने आते ही नाहरसिंह का चेहरा पीला पड़ जायेगा और कुछ क्षणों के बाद पिंजड़े में बंद किया हुआ शेर उसकी बोटियों को नोच - नोचकर खाता हुआ नजर आयेगा।
पिंजड़े का फाटक खुला और नाहरसिंह उसमें घुस गया। उसके अंग पर एक धोती के सिवा कोई कपड़ा नहीं था। उसके हाथ में अपनी मजबूत अंगुलियों के सिवा कोई शास्त्र नहीं था। वह अन्दर घुसा। घुसने से पहले बादशाह ने पूछा , " क्यों नाहरसिंह , तुम्हें इस शेर से डर तो नहीं मालूम होता ? " " जसवंत का शेर किसी शेर से नहीं डरता। " उस साहसी वीर ने गर्व के साथ उत्तर दिया।
पिंजड़े में इस समय दो ही प्राणी हैं - बंदी शेर और हत्या के लिए भेजा सिंह ने आवाज कसी- " आजा ऐ बहादुर शेर , हो जायें दो - दो हाथ दोनों शेरों में ! ' , शेर टकटकी लगाये नाहर की तरफ देखने लगा। दर्शकों में सन्नाटा छा गया। सभी मन में यही सोच रहे थे कि एक ही झपट्टे यह भीमकाय इन्सान उस प्रबल पशु के तेज़ दाँतों से फाड़ा जाता हुआ दिखाई देगा , परन्तु सबकी कल्पना के विरुद्ध शेर पिछले पॉबों में दुम दबाकर नाहरसिंह से प्रांख चुराता हुआ पीछे की ओर चला गया। " जहाँपनाह आपके शेर ने जसवन्त के शेर को पीठ दिखाई हैं। पीठ दिखा कर जाने वाले पर हमला करना तो राजपूती शान नहीं है। " उस सन्नाटे को तोड़ते हुए नाहरसिंह ने कहा ! बादशाह ने कोई उत्तर नहीं दिया , पर जब लाख प्रयत्न करने पर भी यह शेर नाहरसिंह की ओर न जा सका और उस तरफ गुर्राने लगा , जिस तरफ़ बादशाह खड़ा था तो औरंगजेब के दिल में निश्चय हो गया कि मौत के सामने जाकर भी बहादुर हिम्मत के साथ खड़े रहते हैं। गर्व के साथ अपने स्वामी की शान बढ़ाने वाले वीर को अब शेर के पिंजड़े बंद रखने का कोई लाभ नहीं था। पिंजड़ा खुला। वीर नाहरसिंह उसी शांति के साथ बाहर निकला , जिसके साथ अंदर घुसा था। बादशाह अपने हाथों से उसकी कड़ी भुजाओं को पकड़ कर हिलाने लगा। पूछा बादशाह ने , “ ऐ साहसी वीर ! लड़के भी इतने ही साहसी और मजबूत होंगे ; कितने बच्चे हैं तुम्हारे ? " " बच्चे ? ' नाहरसिंह ने मुस्करा कर उत्तर दिया- ' बच्चे कैसे होते हैं शाह ? " मैं शादी के बाद ही पठानों से युद्ध करने चला गया था ! " " तो शादी बाद ही ? ' बादशाह ने ताज्जुब से पूछा। " हाँ राजपूतों को यही शिक्षा मिलती है कि स्त्री और कुटुंब का खयाल क्षेत्र के रास्ते में दीवार न बने ! नाहरसिंह ने सरलता के साथ जवाब दिया । " शाबाश , जसवंतसिंह के शेर ! शाबाश , आज से जसवंतसिंह औरंगजेब का नाहर खाँ होगा। सभी उसे ' सरदार नाहरखाँ कहकर उसकी इज्जत करेंगे। " बादशाह ने कहा। जसवंतसिंह के शेर ने वस्त्र पहने और बादशाह को सलाम किया। बादशाह के हुक्म से सभी दर्शक एक ही कतार में खड़े हुए। वे एक एक करके झुक - झुक कर सरदार नाहरसिंह को सलाम करने लगे। उन लोगों में वे लोग भी थे , जो नाहरसिंह की बहादुरी देखने के बहाने उसकी बोटियां शेर के जबड़ों से चाबी जाती हुई देखना चाहते थे। वे मन ही मन यह बात सोचकर पछता रहे थे कि उनकी इस खटपट ने उनके ईर्ष्या के पात्र नाहर सिंह की टोपी में एक और चाँद लगवा दिया , पर जिस समय वह बहादुर जवान उनके सामने से निकला तो उनको भी झुक कर सलाम करना पड़ा और जवान से कहना पड़ा: सलाम ! सरदार नाहरखाँ।
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