ईश्वर की स्तुति कैसे करें?
लेखक- श्री मनोहर विद्यालंकार
सखाय: क्रतुमिच्छ्त कथा राघाम शरस्य।
उपस्तुतिं भोज: सूरिर्यो अह्रय:।। -ऋक् ८/७०/१३
पुरुहन्मा ऋषि:। इन्द्र: देवता। उष्णिक् छन्द:।
भूमिका- परमेश्वर के कुछ भक्तजन एकत्रित हुए। वे नित्य नियम से पूजापाठ, भजन-कीर्तन किया करते थे, किन्तु उनकी स्तुति कभी स्वीकार नहीं होती थी। उन्हें सदा यही प्रतीत होता था कि परमेश्वर उन पर न केवल प्रसन्न नहीं है, अपितु रुष्ट रहता है। उनकी समझ में नहीं आता था, कि उनकी स्तुति में क्या कमी रह जाती है, जो उनकी प्रार्थनाएं पूरी नहीं होतीं। इसके विपरीत नास्तिक जन- जो कभी सन्ध्या-पूजा नहीं करते, उन्नत और समृद्ध होते जाते हैं।
जब उनकी समझ में कुछ न आया तो वे लोग, पुरुहन्मा ऋषि के पास पहुंचे, और अपने अन्दर उठ रही विचिकित्सा को दूर करने के निमित्त प्रश्न किया- "हे भगवन्! आप ही हमारी शंका का निवारण कीजिये, और बतलाइये कि हम भक्तों को दुःख देने वाले उस ऐश्वर्यशाली परमेश्वर की स्तुति कैसे करें? हम तो उसकी स्तुति करते-करते थक गए, लेकिन हमारी कुछ सुनवाई नहीं होती। हम वैसे के वैसे गरीब बने हुए हैं, जबकि दूसरे लोग, जो परमेश्वर का नाम तक नहीं लेते आनन्द भोगते हैं, और मौज लड़ाते हैं।",
और कहा यह जाता है कि वह परमेश्वर सबको और विशेष कर अपने भक्तों को भोजन देने वाला है, सबको उत्पन्न करने वाला, प्रेरणा देने वाला और सन्मार्ग को दिखाने वाला है, तथा किसी से पराजित नहीं होता, दुष्टों का सामने झुकता नहीं।
इस पर पुरुहन्मा ऋषि ने कहा कि इसका रहस्य मैं बताता हूं। मैं अपने सारे जीवन के अनुभव के आधार पर यह बात कह रहा हूं। तुम इस पर विचार करो, और अमल करो। तुम्हारी स्तुति भी परमेश्वर के पास पहुंचेगी, और तुम आनन्द भोगोगे और मौज करोगे।
दोस्तो, मेरी बात को मामूली या किसी सामान्य आदमी की बात मत समझना। यह बात मेरे जीवन का सार है। मैं अपने सारे जीवन भर कुछ न कुछ करता रहा हूं, कभी निठल्ला नहीं बैठा। सदा गतिमय रहा हूं। बल्कि मेरी इस प्रवृत्ति के कारण लोगों ने मेरा नाम ही बहुत गति करने वाला = पुरुहन्मा = चक्रचरण = फिरकनी, रख दिया है। मेरा असली नाम तो अधिकतर लोग जानते ही नहीं हैं।
सच्ची स्तुति का रहस्य यह है कि 'क्रतुमिच्छत' कर्म की इच्छा करो। केवल सन्ध्या, भजन, पूजापाठ से कुछ नहीं होता। तुम्हारी जो इच्छा या कामना है, उसे पूरा करने के लिए कुछ कर्म करो। मतलब यह कि परमेश्वर की सच्ची स्तुति शब्द से नहीं कर्म से होती है, कथनी से नहीं, करनी से होती है।
अर्थ प्रश्न- (शरस्य) 'श् हिंसायाम्' भक्तों को सुख देने वाले की (उपस्तुतिं) स्तुति (कथा राघाम) किस प्रकार सिद्ध करें? जो (भोज:) सबको भोजन देने वाला तथा (सूरि:) प्रेरणा देने वाला है और (अह्रय:) अपराजित रहने वाला है। उत्तर- (सखाय: क्रतुमिच्छ्त) मित्रो, काम करने की इच्छा करो।
इस मन्त्र में परमेश्वर के तीन नाम बताए गए हैं। वह परमेश्वर
१. (भोज:) सबको भोजन देने वाला है, अगर तुम भी वैसा बनना चाहते हो तो (क्रतुमिच्छत) काम करो। ८/७८/७ में भी कहा है कि (क्रत्वइत्पूर्णमुदरम्) पेट कर्म के द्वारा ही भरता है।
२. वह (सूरि:) सबको प्रेरणा देने वाला है, अगर तुम भी वैसा बनना चाहते हो तो (क्रतुमिच्छत) प्रज्ञा=बुद्धि की कामना करो। जब तक स्वयं बुद्धिमान नहीं बनोगे दूसरों को भी प्रेरणा नहीं दे सकोगे।
३. वह (अह्रय:) कभी किसी से पराजित नहीं होता, दुष्टों के सामने झुकता नहीं, कोई ऐसा काम नहीं करता कि पीछे लज्जित होना पड़े; अगर तुम भी ऐसा बनना चाहते हो तो (क्रतुमिच्छत) संकल्प की इच्छा करो, सच्चे संकल्प वाले बनो। जो आदमी दृढ़ और सच्चे संकल्प करने वाला है, वह कभी बुरा काम नहीं करेगा, किसी प्रलोभन के आगे नहीं झुकेगा और किसी से पराजित नहीं होगा।
शब्दार्थ- क्रतु: - कर्म - प्रज्ञा - संकल्प।
स्तुति - शब्दात्मक स्तुति। उपस्तुति - कर्ममय स्तुति।
पुरुहन्मा - (हन हिंसागत्यो:) बहुत गति करने वाला।
-'गुरुकुल' (मासिक) के अंक से साभार
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