*सत्यार्थप्रकाश- कुछ शंका समाधान* *-डा मुमुक्षु आर्य*
शंका१- सत्यार्थप्रकाश में कबीर को मूर्ख बताया है ।
समाधान- कबीर को मूर्ख नहीं बताआ अपितु उनके चेले चपाटों को मूर्ख बताआ है जो उनको परमात्मा मान कर पूजने लगे। ऐसा ही एक चेला रामपाल वेदों में कबीर का वर्णन बताता था और उसको पूर्ण परमात्मा बताता था । आजकल ये धूर्त हत्या व देशद्रोह के जुर्म में रोहतक जेल में बंद है और आजीवन कारावास की सजा भुक्त रहा है ।
शंका२- सूरज चांद पर लोग रहते है वहां वेद पढे जाते हैं।
समाधान- जीवों को वसाने में सहायक होने के कारण यह भी वसु कहाते हैं। ईश्वर की रचना बडी विचित्र है इनका कोई भाग जीवों के रहने के अनुकूल भी हो सकता है।योगी आप्त महापुरुषों के वचन वैज्ञानिकों के बदलते रहते वचनों से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
शंका३- नारी का अपमान किया,गंगा पार्वती काली नाम वाली कन्यायों से विवाह नहीं करे लिखा है,नदियो के नाम वाली कन्या (गंगा कावेरी गोमती कृष्णा मांडवी आदि के नाम वाली )से विवाह न करने को लिखा है ।
समाधान- सुन्दर सार्थक नाम का बडा महत्व है,जो मां बाप बच्चों के उल्टे पुल्टे नाम रखते हैं वे अपने बच्चों को क्या संस्कार देगें ! ऋषि दयानंद जी ने नारी को पूज्यनीय बताआ है।
शंका४- नियोग व्यभिचार है, विधवा से नियोग करने को कहा पति विदेश जाये तो तीन साल बाट देखे फिर नियोग कर ले पत्नी गर्भवती हो तब पडोसन से नियोग करे ।
समाधान- नियोग केवल सन्तान प्राप्ति के लिये आपातकालिन वैज्ञानिक वेदानुकूल व्यवस्था है। पाण्डु धृतराष्ट्र विदुर भी नियोग से ही पैदा हुये थे। आजकल किराये की कोख और वीर्य बैंकों की स्थापना नियोग का ही एक बिगडा हुआ रुप है।यह कहीं नहीं लिखा कि पत्नी गर्भवती हो तो पडोसन से नियोग करे।
शंका५- 48 साल के पुरूष का 24 वर्ष की स्त्री से विवाह करना श्रेष्ठ लिखा है ..
समाधान- यह उत्तमोतम आदर्श विवाह योग्य आयु है क्यों कि इस आयु में शरीर में सब धातुओं की पुष्टि होती है। यह कठिन हो तो दूसरे विकल्प भी बतायें हैं।हंसी तो तब आती है जब मूर्ख लोग वक्ता वा लेखक के अभिप्राय से उल्टा अर्थ करते हैं।
शंका ६ - यजुर्वेद २५.७ में गुदा में सर्प ले जाने की बात कही है....
समाधान- इसमे शरीर विज्ञान का अलंकारिक भाषा में वर्णन है,अतंडियों के उतकों(villi) की तुलना सांपो से की गई है। मूर्ख अनाडी लोग इसका उल्टा ही मतलव लेते हैं।
हठ दुराग्रह द्वेष वैमनस्य से भरे, अन्धविश्वास पाखंड व पाषाण पूजा ग्रह पूजा की गहरी खाई में पडे धूर्तों को दयानंद जैसे योगी महापुरुषों की बातें समझ नहीं लग सकती। *ऐसे धूर्तों द्वारा समय समय पर सत्यार्थप्रकाश पर कई प्रकार के आक्षेप किये गये जिनका समाधान जानने के लिये कृपया दो पुस्तकें पढें- पौराणिक पोल प्रकाश एवं पौराणिक पोप पर वैदिक तोप ।*
शंका ७- ऋषि दयानंद ईसाईयों के एजेण्ट थे ।
समाधान- अरे मूर्खों, ऋषि दयानंद ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में बाईबल व कुरान की धज्जियां उडा रखी हैं उन पर ऐसे आरोप लगाना मानसिक रुप से बीमार लोगों का काम ही हो सकता है ।
सत्यार्थप्रकाश में वेदविरुद्ध मतमतान्तरों का तर्क और प्रमाण सहित खण्डन किया गया है जिससे आहत होकर इन लोगों ने ऋषि दयानंद को कई बार विष दिया, उनके विरुद्ध कई पोथियीं लिख मारी, वेदमंत्रों के उल्टे पुल्टे अर्थ कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास किया...परन्तु सत्यार्थप्रकाश रुपी सूर्य को ये धूर्त न ढक पाये हैं और न ही कभी ढक पायेंगे । सत्यार्थप्रकाश तो एक प्रकाशस्तम्भ है जिसने करोडों लोगों के जीवन का कायाकल्प किया है ।
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