देशभक्त श्री देशबंधु गुप्त
पानीपत के पुराने शहर के बड़ी पहाड़ी में एक साद्दारण वैश्य परिवार में 18 जून, 1901 को उत्तर भारत के प्रसिद्ध उर्दू गद्यकार, पत्रकार एवं आर्यसमाजी सेठ शादीराम के घर में जन्मे लाला देशबंधु गुप्त का बचपन का नाम रतिराम था। मात्र बीस वर्ष की अवस्था में ही आजादी के लिए जेल जाने वाले देशबंधु गुप्त ने आजादी की अलख जगाने का काम किया। आजादी के लिए हुए राष्ट्रीय आंदोलनों में वे सात बार जेल गए। उनकी सक्रियता से दुःखी होकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें आजादी के पूर्व पंजाब की सबसे कुख्यात जेल मियांवाली में बंद रखा, जहाँ पर सूर्य की रोशनी भी नहीं पहुँचती थी। इसके बाद भी देशबंधु गुप्त का हौंसला कम नहीं हुआ। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ जमकर जहर उगला और हिंदु-मुस्लिम दंगे कराने की कूटनीति को पानीपत में कई बार विफल किया। पानीपत के हिंदु और मुसलमान दोनों ही उनका कहना मानते थे। हर वर्ग के प्रिय होने के कारण ही वे पहली बार सन् 1937 में तत्कालीन पंजाब विधानसभा के सदस्य बने।
रतिराम देशबंधु गुप्त ने प्रारंभिक शिक्षा पानीपत के मदरसे से पूरी की तथा माध्यमिक व हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से अंबाला से उत्तीर्ण की। तदुपरांत उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज में प्रवेश लिया। यहां पर उन्हें महान् क्रांतिकारी लाला हरदयाल तथा राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता आसफ अली जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिला। देशबंधु गुप्त जहां सभी परीक्षाओं में प्रथम आते रहे, वहीं साथ-साथ कालेज के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहे।
वे छात्र संस्थाओं में भी सक्रिय रहते। उन्होंने आर्यसमाज चावड़ी बाजार के सभासद के रूप में समाज- कल्याण के अनेक कार्य पूर्ण करवाए। अपने स्वभाव के कारण वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में अग्रणी दिखाई देने लगे। इन्ही दिनों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का दिल्ली आगमन हुआ तो इस कार्यक्रम को सफल बनाने में उन्होंने अपना पूर्ण योगदान दिया।
30 मार्च, 1919 को रोलट एक्ट का दिल्ली में विरोध हुआ और चैदह व्यक्ति अंग्रेजी पुलिस की गोलियों से शहीद हो गए तथा सैंकडों व्यक्ति घायल हो गए तो देशबंधु ने न केवल स्वयं रक्त दान किया बल्कि रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित भी किया। स्वामी श्रद्धानंदजी ने उन शहीदों के स्मारक बनवाने की योजना बनाई, जिसके लिए पटौदी हाउस खरीदना था। नौजवान देशबंधु गले में झोली डालकर जगह जगह पर दान मांगने लगे और यह कार्य पूर्ण करवाया।
महात्मा गांधी व स्वामी श्रद्धानन्द के आह्वान पर साम्प्रदायिक सद्भावना को सुुदृढ़ बनाने के लिए दिल्ली प्रदेश की महिलाओं ने हिन्दु-मुस्लिम एकता सभा का लक्ष्मीनारायण धर्मशाला में आयोजन किया, जिसमें देशबंद्दु गुप्त ने मुख्य वक्ता के रूप में सरकार के खिलाफ उत्तेजक शब्दावली का प्रयोग किया तो सरकार ने दिल्ली में उनके सार्वजनिक भाषण देने पर पाबंदी लगा दी। उन्होंने लाला लाजपतराय की आज्ञा से पंडित मोलीचंद शर्मा तथा शिवनारायण भटनागर को साथ लेकर पानीपत का ऐतिहासिक दौरा किया। जनता ने उनका भव्य स्वागत किया। जहां भी जाते, लोग उन्हें फूलमालाओं से लाद देते थे।
सन् 1920 में देशबंधु गुप्त ने तिलक स्कूल आॅफ पोलीटिक्स, दिल्ली में प्रवेश लिया। इस काॅलेज में लाला लाजपत राय प्रशिक्षण दिया करते थे। यहां उनकी मुलाकात स्वामी ध्रुवानंद और भाई परमानंद से हुई। उनकी कर्तव्य परायणता और कर्मनिष्ठा देखकर लालाजी ने उन्हें अपने पत्र ‘वंदे मातरम्’ के संपादन का कार्यभार सौंप दिया। महात्मा गांधी ने नागपुर अधिवेशन में घोषणा की कि आजादी के लिए दलितों का सहयोग आवश्यक है, इसलिए स्वराज प्राप्ति की एक शर्त है ‘दलित भाईयों को उनका अद्दिकार दिलाना।’ रतिराम गुप्त ने प्रतिज्ञा की कि वे दलितों के बीच जाकर उन्हें स्वराज के लिए तैयार करेंगे। उस कार्य में उन्हें भारी सफलता मिली और उनकी कार्य प्रणाली से प्रभावित होकर स्वामी श्रद्धानंद और महात्मा गांद्दी ने उन्हें देशबंधु की उपाधि से अलंकृत किया तथा बाद में उन्हें क्रांगेस का प्रचार मंत्री भी नियुक्त किया गया। 1924 में हिंदु महासभा के प्रयाग अधिवेशन में देशबंधु ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ प्रभावी भाषण दिया। 1925 में दिल्ली अधिवेशन में भी उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 3 फरवरी 1928 को बंबई में साईमन कमीशन आया तो साइमन गो बैंक के नारे लगा कमीशन का विरोध किया। नमक कानून के उल्लंघन पर आंदोलन के समय गांधी जी ने उन्हें दिल्ली में रहने की सलाह दी। श्री गुप्त ने शाहदरा राजमार्ग पर सीलमपुर में नमक शिविर लगाया तो दिल्ली के देशभक्तों ने इस शिविर में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। मार्च 1931 गांधी इरविन पैक्ट के तहत अवज्ञा आंदोलन बंद कर दिया गया और गांधी जी को समझौते के लिए बुलाया गया, लेकिन यह गोलमेज बैठक असफल रही। गाँधीजी वापस लौट आए तो वायसराय विलिंग्टन ने फौजी, कानून लागू करके दमन चक्र चला दिया।
तीन जनवरी, 1932 को अवज्ञा आंदोलन चलाया गया तथा 30 हजार से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया गया, जिनमें महात्मा गांधी और देशबंधु गुप्त भी शामिल थे। इससे क्षुब्ध होकर उनकी द्दर्मपत्नी सोना देवी ने भी निष्ठावान महिलाओं को साथ लेकर गिरफ्तारियाँ दीं।
सन् 1934 के चुनाव में पंजाब हरियाणा क्षेत्र से केवल कांग्रेस के देशबंधु गुप्त तथा श्रीराम शर्मा; दो विद्दायक ही चुनाव जीत सके। उन्होंने सन् 1937 में मशीनी बूचड़खाने का विरोध किया। बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, सती-प्रथा का भी इन्होंने भरसक विरोध किया। आर्यसमाज के प्रसिद्ध ‘हैदराबाद सत्याग्रह’ में अग्रणी भूमिका निभाई।
निर्भीक- निष्पक्ष स्वतंत्रता सेनानी तथा कुशल पत्रकार श्री देशबंधु गुप्त जी का निधन मात्र 51 वर्ष की आयु में 21 नवंबर, 1952 को एक विमान दुर्घटना में हो गया। निधन से पूर्व जब सन् 1947 मंे देश आजाद हुआ तो अलग हरियाणा राज्य की मांग का समर्थन हुए देशबंधु गुप्त जी ने कहा था कि यह क्षेत्र पंजाब से अलग है। हरियाणा की भाषा, संस्कृति, इतिहास, परम्पराएं, जाति-भेद और पद्धति भी पंजाब से अलग है। इसलिए इसको अलग प्रदेश बनाया जाये।
आश्चर्य की बात यह है कि पानीपत मंे उनके स्मारक के रूप में कोई सड़क, काॅलेज, स्कूल नहीं है। पानीपत में उनकी कोई प्रतिमा भी नहीं लगी हुई है, जिससे यह लगे कि यह शहर राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र के अधीन होने के साथ-साथ ऐतिहासिक भी है। पानीपत में जन्मे देशबंधु गुप्त का भले ही पानीपत में कोई स्मारक न हो, लेकिन राजधानी दिल्ली में उनके नाम पर देशबंधु गुप्त काॅलेज एवं रोड काफी प्रसिद्ध हैं। (विभिन्न स्रोतों से संकलित)
शांतिधर्मी मासिक हिंदी पत्रिका, जींद, हरियाणा प्रकाशित से साभार
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