गुरु ग्रन्थ साहब और वेद
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१) ओंकार वेद निरमए - राग रामकली महला १, ओंकार शब्द १
अर्थात् ईश्वर ने वेद बनाए
२) हरि आज्ञा होए, वेद पाप पुन्न विचारिआ. - मारू डखणे, महला 5, शब्द-१
अर्थात् ईश्वर की आज्ञा से वेद हुए जिससे मनुष्य पाप-पुण्य का विचार कर सके.
३) सामवेद, ऋग जजुर अथर्वण. ब्रह्मे मुख माइया है त्रैगुण. ताकी कीमत कीत कह न सकै को तिउ बोलै जिउ बोलाइदा. - मारू सोलहे महला-१, शब्द-१७
अर्थात् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद परमात्मा की वाणी है. इनकी कीमत कोई नहीं बता सकता. वे अमूल्य और अनन्त हैं.
४) ओंकार उत्पाती. किया दिवस सभ राती वन तृण त्रिभवन पाणी. चार वेद चारे खानी. -राग मारू महला-5, शब्द-१७
अर्थात् ओंकार (परमात्मा) ने ही दिन-रात, वन, घास, तीनों लोक, पानी आदि को बनाया और उसी ने चारों वेदों को बनाया, जो चार खानों (कोषों) के समान हैं.
५) वेद बखान कहहि इक कहिये. ओह बेअन्त अन्त किन् लहिये.
*६) दिवा तले अँधेरा जाई. वेदपाठ मति पापा खाई.
उगवै सूर न जापै चन्द, जहाँ ज्ञान प्रकाश अज्ञान मिटन्त.*
-वसन्त अष्टपदियाँ महला-१, अ.३
अर्थात् वेद से अज्ञान मिट जाता है, और उनके पाठ से बुद्धि शुद्ध होकर पापों का नाश हो जाता है.
7) असन्ख ग्रन्थ, मुखि वेद पाठ. - जपुजी १७
अर्थात् असंख्य ग्रन्थों के होते हुए भी वेद का पढना मुख्य है.
8) स्मृति सासत्र (शास्त्र) वेद पुराण. पारब्रह्म का करहिं बखियाण.
- गौंड महला-5, शब्द-१७
अर्थात् स्मृति, शास्त्र, वेद और पुराण परमात्मा का ही वर्णन करते हैं.
[सर्वे वेदा यत्पदम् आमनन्ति] स्मृति = मनुस्मृति,
शास्त्र = दर्शन = उपाङ्ग,
वेद = ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
पुराण(ऐतरय, शतपथ, तांड्य, गोपथ)
9) वेद बखियाण करत साधुजन, भागहीन समझत नहीं. - टोडी महला-5, शब्द-26
अर्थात् साधु, सज्जन सदा वेद का व्याख्यान करते हैं, किन्तु भाग्यहीन मनुष्य कुछ नहीं समझता.
10) कहन्त वेदा गुणन्त गुणिया, सुणत बाला वह विधि प्रकारा. दृडन्त सुविद्या हरि हरि कृपाला.
- सलोक सहस्कृति, महला-5, शब्द-14
अर्थात् वेदों के पढने से उत्तम विद्या परमात्मा की कृपा से बढती है.
11) वेद पुराण सासत्र (शास्त्र) विचारं, एकं कार नाम उरधारम्.
कुलह समूह सगल उधारं, बड़भागी नानक को तारम् --गाथा महला 5/20
अर्थात् वेद, पुराण शास्त्र के विचार करने से परमेश्वर का स्मरण होता है, और सारा कुल तर जाता है.
12) कल में एक नाम कृपानिधि जाहि जपे गति पावै.
और धरम ताके सम नाहन इह विधि वेद बतावै. -- राग सोरठ, महला-9, शब्द-5
अर्थात् वेदों में एक परमेश्वर के स्मरण करने का उपदेश है.
13) वेद कतेब कहहु मत झूठे, झूठा जो न विचारे. -- राग प्रभाती कबीर जी, शब्द-३
अर्थात् वेदों को झूठा मत कहो. झूठा वह है जो विचार नहीं करता.
14) दशवें गुरु गोविन्द सिंह जी का वचन, विचित्र नाटक, अध्याय-4 निम्नलिखित है:
भुजंगप्रयात छन्द:-
जिनै वेद पठ्यो सुवेदी कहाये, तिने धरम के करम नीके चलाये.
पठे कागदं मद्र राजा सुधारं, आपो आप में वैरभावं विसारं. नृपं मुकलियम् दूत सो कासी, आयं सभै वेदियम् भेद भाखे सुनायं.
सभे वेदपाठी चले मद्र देशे, प्रणामं कियो आन कै कै नरेसे धुनं वेद की भूप ताते कराई, सभेपास बैठे सभा बीच भाई. पढ़े सामवेदं युजुर्वेदकत्थं, ऋगम् वेद पाठ्यम् करे भाव हत्थं.
रसावल छन्द:- अथर्ववेद पठयम्. सुनियो पाप नठियं. रहा रीझ राजा. दीआ सरब साजा.
अर्थ: इस वर्णन में बताया गया है, की जिन्होंने वेद पढ़ा वे वेदी कहलाये.
(गुरु नानक जी का जन्म इसी वेदी परिवार में हुआ) उन्होंने उत्तम धर्म के कर्म चलाये. वेदपाठी मद्र देश में गए. राजा ने उन्हें प्रणाम किया. राजा ने उन वेदपाठियों से वेद की ध्वनि करवाई. सामवेद, यजुर्वेद, ऋग्वेद, अथर्ववेद सब वेदों का पाठ करवाया गया जिसके सुनने से भी पाप नष्ट हो गया. राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ. उसने उन वेदपाठियों को बहुत सी दक्षिणा
दी इत्यादि. इस प्रकार वेदों की पवित्रता और श्रेष्ठता का प्रतिपादन है.
15) चार दीवे चहु हथ दिए, एका एकी वारी. --वसन्त हिन्डोल महला-१, शब्द-१
अर्थात् चार दीपक (चार वेद), चार हृदयों में दिए, एक-एक ह्रदय में एक-एक वेद. मनुष्य-सृष्टि के प्रारम्भ में (स्वायम्भुव-मन्वन्तर के प्रारम्भ में) अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा इन चार ऋषियों के हृदयों में समाधि की अवस्था परमात्मा ने चारों वेदों का प्रकाश किया.
गुरु ग्रन्थ साहब में, जहाँ कहीं भी वेदों की निन्दा प्रतीत होती है, वह वेदों की निन्दा नहीं किन्तु उनलोगों की है, जो केवल वेद का पाठ करते पर उनके अनुसार पवित्र आचरण नहीं करते. इस प्रकार, गुरु ग्रन्थ साहब के अनेक वचनों द्वारा भी वेदों का महत्व तथा ईश्वरीयत्व स्पष्टतया सूचित होता है.
- साभार "वेदों का यथार्थ स्वरुप"
संकलनकर्ता एवं लेखक: पण्डित धर्मदेव विद्यावाचस्पति, विद्यामार्तण्ड
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