Wednesday, March 21, 2018

दूध ही अमृत है



दूध ही अमृत है

ईश नारंग

(प्राचीन भारतीय चिकत्सीय व शास्त्रीय साहित्य में दूध को अमृत कहा गया है. यह उपमा इसे इसके गुणों के आधार पर दी गई है. इस लेख में पढ़िए दूध के बारे में प्राचीन भारतीय ग्रंथों में दिये गए दूध के गुण एवं वे आधुनिक विज्ञान की मान्यताओं पर कैसे खरे उतरते है.इसके लेखक श्री ईश नारंग एक डेरी टेक्नोलॉजिस्ट होने के अतिरिक्त वैदिक साहित्य में भी स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त किये है. भारत सरकार के पशुपालन विभाग से सहायक आयुक्त के पद से 2005 में सेवा निवृत होने के पश्चात आपने गुरुकुल कांगड़ी युनिवर्सिटी से MA ( Vedic literature) की उपाधि पाई आप एक प्रशिक्षित एवं कुशल प्राकृतिक चिकित्सक तथा यज्ञ चिकित्सक भी हैं. –संपादक)
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श्रृष्टि के आरम्भ से ही मनुष्य एक अमृत नाम की वस्तु की खोज करता रहा है जिसे ले कर वह सभी रोगों व दुखों से छुटकारा पा ले और अमर हो जाये. उस आलौकिक एवं कल्पित अमृत को तो मनुष्य पा सके या नहीं , किन्तु इस संसार में एक ऐसी अद्भुद वस्तु प्रकृति ने उसे दी है जिसे अमृत की संज्ञा दी जा सकती है और वह वस्तु है –दूध. इस लौकिक अमृत को मनुष्य सुगमता से प्राप्त कर सकता है.

2. महाभारत में एक श्लोक है :
(Mahabharata 65/46)

इसका साधारण अर्थ है : गाय का दूध ही वास्तव में अमृत है इस लिए जो गाय या धेनु दान देता है वह अमृत दान देता है ऐसा देवराज इन्द्र ने कहा है. इसी प्रकार ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 71 वें सूक्त के छटवें मन्त्र में कहा है :
गोषु प्रियम् अमृतं रक्षमाणा ( ऋग 1/71/6 )
इसका अर्थ है गोदुग्ध अमृत है यह हमारी ( रोग से ) रक्षा करता है.इसी प्रकार ऋग्वेद के मन्त्र 5/19/14 में भी कहा है कि गोदूध सर्वाधिक प्रिय एवं वांछनीय पेय पदार्थ है. अन्य अनेक स्थानों पर दूध को एक स्वास्थ्य वर्धक, रोग नाशक, रोगों से बचाव करने वाला , ओज व शक्ति देने वाला पेय कहा गया है. केवल शारीरिक शक्ति नहीं अपितु इसे बुद्धि वर्धक व सद्बुद्धि देने वाला भी कहा गया है.

आयुर्वेद के ग्रन्थ “ निघंटु” में भी दूध के अमृत एवं पीयूष नाम दिए है.इस प्रकार इन सभी शास्त्रीय प्रमाणों से ज्ञात होता है कि संसार में यदि कोई अमृत है तो वह दूध ही है. अमृत नाम की कोई काल्पनिक वस्तु नहीं है.

3. ऐसा नहीं है कि दूध को अमृत की उपमा केवल भावना वश अथवा किसी धार्मिक विचार से दी गई है. बिना गुणों के किसी वस्तु की प्रशंसा करना भारतीय परम्परा नहीं है. दूध को यह उपमा इसके गुणों के आधार पर ही दी गई है. आइये देखते है विभिन्न ग्रंथों में दूध के गुणों का किस प्रकार वर्णन किया गया है व आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर वह कैसें उतरता है.
3.1. चरक आदि चिकित्सीय ग्रंथों में दूध के गुणों का वर्णन.
चरक शास्त्र संसार के प्राचीनतम चिकित्सा शास्त्रों में गिना जाता है. चरक सूत्र स्थान 27/214 में दूध के गुणों का वर्णन इस प्रकार किया गया है.

स्वादु शीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम् | गुरु मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दशगुणं पयः || 217 ||
चरक २७/२१७

अर्थात गाय का दूध स्वादु, मीठा, शीत, कोमल, घना , चिकना, कुछ भारी, देर से खराब होने वाला और निर्मल – इन दस गुणों से युक्त है.
फिर एक स्थान पर लिखा है :
“दूध पुरुषों में ओज की वृद्धि करता है”.
3.2. इसी प्रकार ऋषि धन्वन्तरी, जो कि एक अन्य भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति के विद्वान रहे है , कहते है कि गाय का दूध सभी अवस्थाओं एवं रोगों में प्रयोग करने योग्य भोजन पदार्थ है. इससे वात, पित्त, व हृदय रोग नहीं होते.
3.3. अथर्व वेद में लिखा है कि दूध एक सम्पूर्ण भोज्य पदार्थ है. इसमें मनुष्य शरीर के लिए आवश्यक वे सभी तत्व हैं जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता होती है.
“यूयं गावो मेद्यथाम कृशं चिद्श्रीरं चित कृणुथाम सुप्रतीकम
भद्र गृहम कृणुथ भद्रवाचो बृहद वो उच्यते सुभासु”



अर्थात गाय का दूध स्वादु, मीठा, शीत, कोमल, घना , चिकना, कुछ भारी, देर से खराब होने वाला और निर्मल – इन दस गुणों से युक्त है.
फिर एक स्थान पर लिखा है :
“दूध पुरुषों में ओज की वृद्धि करता है”.
3.2. इसी प्रकार ऋषि धन्वन्तरी, जो कि एक अन्य भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति के विद्वान रहे है , कहते है कि गाय का दूध सभी अवस्थाओं एवं रोगों में प्रयोग करने योग्य भोजन पदार्थ है. इससे वात, पित्त, व हृदय रोग नहीं होते.
3.3. अथर्व वेद में लिखा है कि दूध एक सम्पूर्ण भोज्य पदार्थ है. इसमें मनुष्य शरीर के लिए आवश्यक वे सभी तत्व हैं जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता होती है.
“यूयं गावो मेद्यथाम कृशं चिद्श्रीरं चित कृणुथाम सुप्रतीकम
भद्र गृहम कृणुथ भद्रवाचो बृहद वो उच्यते सुभासु”
अथर्व ४/२१/६


इसका अर्थ है गाय अपने दूध से कृशकाय मनुष्य को पुष्ट करती है, निस्तेज को तेजवान बनाती है और घर को कल्याणमय बनाती है. इस प्रकार उस व्यक्ति की सभ्य लोगों में प्रशंसा होती है. इस मन्त्र में दूध के पौष्टिक गुणों के अतिरिक्त एक अन्य बात की ओर ध्यान दिलाया गया है कि शारीरिक दृष्टि से पुष्ट व्यक्ति ही समाज में सभ्य व्यक्ति माना जाता है. इस प्रकार गाय व्यक्ति को सभ्य समाज का अंग बनाती है. दूध के इन सभी पौष्टिक गुणों के कारण ही वेदों में विद्वानों व अतिथियों का सम्मान भी दूध व घी से बनाई हुए भात से करने की बात कही गई है. ( यह खाद्य पदार्थ संभवत: आज कल की दूध और चावल की खीर जैसा है. ( अथर्व वेद 18/4/16 तथा 18/4/19 ).
दूध के बल देने वाले गुणों के कारण ही अथर्व वेद 18/4/34 में कहा गया है कि
“धेनव: धाना: ऊर्जम अस्मे विश्वाहा दुहाना तन्तु”
अथर्व १८/४/३४

अर्थात दुधारू गाय पुष्टिकारक व बलदायक रस ( दूध व घी आदि ) तेरे लिए देती रहे.
3.4. गाय के दूध का रोगनाशक गुण :
अथर्व वेद के मन्त्र 1/21/1 में बड़े सपष्ट शब्दों में बताया गया है.

यह मन्त्र इंगित करता है की लाल रंग की गाय के दूध से हृदय रोग व पांडु रोग दूर होते है. कैसे?
आज के विज्ञान की अनेक शोध कृतियाँ हमें बताती है की गाय के दूध के सेवन से कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम होती है. लगभग दो लिटर प्रतिदिन दूध पीने से भी रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढती नहीं है. अपितु कम होती है. अब यदि हृदय रोग कोलेस्ट्रोल की मात्रा से सम्बंधित बताये जाते है तो , निश्चय ही गाय के दूध का सेवन हृदय रोग से हमें बचाने में सहायक होगा.

इसी प्रकार पीलिया ( पांडु रोग ) में भी दूध सहायक होता है. दूध की प्रोटीन का पाचन लगभग 96% होता है .इस प्रकार पीलिया / पांडु रोग में , जिसमें लीवर की काम करने की क्षमता कम हो जाती है, यदि हम सुपाच्य प्रोटीन लेंगे तो हमारे शरीर की शक्ति बनी रहेगी और हम जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे,
किन्तु हाँ! यह विषय और अधिक वैज्ञानिक खोज भी मांगता है.
3.5. ऋग्वेद व् अथर्व वेद के निम्न दो मन्त्र एक अत्यंत महत्त्व पूर्ण दिशा की ओर संकेत करते है.
चक्रं यदस्याप्स्वा निषत्तमुतो तदस्मै मध्विच्चछद्यात |
पर्थिव्यामतिषितं यदूधः पयो गोष्वदधा ओषधीषु || Rig Veda 10.73.9
यावतीनामोषधीनां गाव:प्राश्नन्त्यघ्न्या यावतीनामजावय:| तावतीस्तुभ्योषधी: शर्म यच्छन्त्वा शर्म यच्छन्त्वाभृता ( अथर्व Atharv 8.7.25)
इनमें कहा गया है कि जो औषधियां गाय खाती है , उनके गुणों को वह अपने दूध में दे देती है और इस प्रकार हमें रोगों से मुक्त करती है. ये मन्त्र औषधि युक्त दूध के उत्पादन की संभावनाओं की ओर इशारा कर रहे है.


आज भी पशु विज्ञान के कुछ वैज्ञानिकों ने गाय को ऐसी औषिधयां खिला कर उनके दूध से मधुमेह आदि रोग के उपचार करने के कई सफल परीक्षण किये है.
यह विषय भी और अधिक वैज्ञानिक खोज मांगता है.
3.6. इसी प्रकार दूध के साथ दूध से बने अन्य पदार्थों की भी महत्ता वेद आदि शास्त्रों में की गई है. ऋग वेद के मन्त्र 10/179/3 में दही को देवों का भोजन कहा गया है.
इस मन्त्र का अर्थ है कि यह दही रोगरहित दूध से बनी है. पहले गाय के स्तन में पकी है, फिर इसे अग्नि पर पकाया गया है, अत: यह बड़ा लाभकारी पदार्थ है. विविध कार्य करता हुआ मेहनत करने वाला व्यक्ति यदि इसे दोपहर के समय सेवन करता है तो यह बहुत लाभकारी है.

3.7. इसी प्रकार ऋग्वेद के मन्त्र 1/187/10 में दही, सत्तू व् घी से बने एक पौष्टिक पदार्थ ‘करम्भ’ का वर्णन है. यह भी रोग नाशक व शक्ति दायक कहा गया है.
3.8. गोदुग्ध से प्राप्त घी का महत्त्व
घी को जीवन के लिए सभी खाद्य पदार्थों में उत्तम व आवश्यक पदार्थ माना गया है. इसी लिए ऋग्वेद 10/18/2 तथा अथर्व वेद 3/12/1 / 3/12/4 में घी से भरे घरों के लिए प्रार्थना की गई है.अथर्ववेद के मन्त्र 3/12/8 में कहा है
इसमें घी की धारा को अमृत से भरी हुई धारा कहा गया है. अन्य अनेक स्थानों पर घी को “निर्दोष” भोजन पदार्थ कहा गया है. उसके सेवन से बल की वृद्धि होती है. ( ऋग्वेद 10/19/7 ) , शरीर पुष्ट होता है ( आयु में वृद्धि होती है (अथर्ववेद 2/31/9)

3.9. ऋग्वेद 1/20/3. तथा 3/55/16 आदि स्थानों में गाय को ‘सबर्दुधा’ कहा गया है

ग्रिफिथ, सकंद्स्वामी, व् वेंकत्मधाव ने सबर्दुघा का अर्थ अमृत की वर्षा करने वाली किया है. ऋग्वेद के ही एक अन्य स्थल पर सबर्दुधा का अर्थ धन को प्राप्त कराने वाली शक्ति कहा गया है. आज के सन्दर्भ में पुष्टि कारक दूध देने वाली को अमृत देने वाली का अर्थ और दूध को बेच कर धन कमाने वाली शक्ति , दोनों ही अर्थ सार्थक है.
3.10 साम वेद का निम्न मन्त्र गाय के दूध को मन को शांत करने वाले गुणों की ओर इशारा करता है .
(Saam veda 1/1)
शायद मानसिक रोगों में दूध द्वारा उपचार की संभावनाओं को खोजा जा सकता है.
4. दूध के इन्हीं गुणों के कारण गाय को अनेक ग्रंथों में कहीं माता , कहीं अघन्या ( जिसका वध नहीं करना चाहिये), कहीं अन्न स्वरूपा, तो कंहीं अमृत रस बरसाने वाली कहा गया है. इसी कारण , संभवत: भारतीय

जनमानस के लिए गाय पूज्य व वन्दनीय बन गई. यजुर्वेद के मन्त्र 22/22 में राष्ट्र की वृद्धि व स्वतंत्रता की कामना करते हुए दुधारू गायों की भी प्रार्थना की गई है “दोग्धिर्धेनु’ – हे प्रभु मेरे स्वतंत्र देश में अधिक दूध देने वाली गाय हों.
5. इस प्रकार हम देखते है कि ऋग्वेद से लेकर महाभारत और चरक , सुश्रुत और धन्वन्तरी आदि वैद्यों ने भी अपने अपने तरीके से गाय के दूध के गुणों को दर्शाते हुए उसके महत्त्व का वर्णन किया है.
6. मोहनजोदड़ो की खुदाई में भी एक मुद्रा मिली थी जिसमें ‘कुकुदमान’ सांड की छाप है. यह सांड अथवा बैल गोवंश का ही द्योतक है.
यही मुद्रा आजकल हमारे राष्ट्रिय डेरी विकास बोर्ड के प्रतीक चिन्ह के रूप में प्रयोग की जाती है. यह सभी उदाहरण भारत में गौ, गोदुग्ध व दूध से प्राप्त पदार्थों के मनुष्य जीवन के लिए महत्त्व को दर्शाते हैं .

7. मध्यकाल में दुग्ध उत्पादन व् गोपालन उद्योग की उपेक्षा
आजकल हम देखते है कि भारत में प्रति गाय दूध का उत्पादन अन्य देशों की की तुलना में काफी कम है. इससे लगता है कि हमारे यहाँ गोपालन की परम्परा शायद कम विकसित रही होगी. किन्तु ऐसा मध्य काल में किसानों की शिक्षा आदि की ओर ध्यान न देने के कारण हुआ लगता है. अधिक दूध उत्पादन के उपायों का भी हमारे प्राचीन शास्त्रों में पर्याप्त वर्णन है. जो समाज दूध के गुणों के महत्त्व को जानता हो, समझता हो, गाय को पूज्य मानता हो, वहां की गाय कम दूध देने वाली हो, ऐसा संभव नहीं हो सकता . लगता है विदेशी शासन के दौरान जानबूझ कर हमारे किसानों को इस शिक्षा से वंचित कर दिया गया और हमें यह आभास कराया गया कि हम अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में इस विषय में पिछड़े हुए है. जब कि वास्तविकता यह है की भारतीय समाज इस विषय में बहुत अधिक विकसित था एवं दूध व दूध के महत्त्व को जानता, समझता और उस ज्ञान का भरपूर उपयोग भी करता था.
निष्कर्ष
8. उपर्युक्त चर्चा से हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि :

8.1 हमारे ऋषि अपने समय के वैज्ञानिक थे और वे दूध व दूध से बने पदार्थों के गुण व उनके अंदर पाए जाने वाले पौष्टिक पदार्थों के बारे में पूरी तरह जानते थे,
8.2. विभिन्न रोगों का दूध व् दूध के पदार्थों द्वारा उपचार करना भी जानते थे.
8.3. गायों को चारे में औषधियुक्त पदार्थ खिला कर उस दूध से मनुष्य के रोगों का उपचार करना भी जानते थे,
8.4. दूध को गर्म करके उसे पीने के लिए व दही आदि बनाने के लिए सुरक्षित बनाने के विषय में भी उन्हें पूरा ज्ञान था.
8.5. वेदों व शास्त्रों में इंगित बातों को ठीक से समझने व उन पर अधिक शोध की ओर ध्यान देना भी अपेक्षित है .






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