Wednesday, June 9, 2021

स्व० पंडित भूराराम आर्योपदेशक


स्व. पंडित भूराराम आर्योपदेशक            (चिड़ी रोहतक)

45वीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन 

--अमित सिवाहा 

      उस तन की कौन बडाई करे जिस तन से हुआ शुभ काज नहीं। वो नारी निंदा के योग्य सदा जिसकी आंखो में लाज नहीं। उस देश की शौभा है फिकी जहां राज स्वराज नहीं। उस घर की क्या दशा जहां आर्य समाज नही। 

      उपरोक्त पंक्तियों की अंतिम लाइन में आया है उस घर की क्या दशा जहां आर्य समाज नहीं। एक समय था जब आर्य समाज हरियाणा के साथ साथ उत्तर भारत में खूब फल फुल रहा था।  अनेकों विशेषताएं हैं महर्षि दयानंद के लगाए इस विद्या रुपी बाग में, हरियाणा प्रदेश में आर्य समाज का प्रचार ही नहीं अपितु समूचा प्रदेश आर्याणा बन गया था। हरियाणा में आर्य समाज के प्रचार प्रसार की बागडोर यहां के उपदेशकों के कंधो पर थी।  जिन्होने इसको निभाया ही नहीं बल्कि हरियाणा पृथक राज्य बनाने में भी अहम भूमिका निभाई।  इन्हीं शूरवीर उपदेशकों में पंडित भूरा राम जी का नाम आता है। उन्हीं के जीवन के पड़ावों का थोड़ा सा जिक्र करते हैं। 

🔥जन्म 🔥

             पंडित भूराराम जी का जन्म रोहतक जिले के चिड़ी गांव में चौधरी गूगन राम जी के घर पर सन् 1887 ई० में हुआ।  चौधरी गूगन राम जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़े श्री कन्हैया लाल, पंडित भूराराम जी, श्री हरिसिंह वैद्य जी। पंडित भूराराम जी शिक्षा व्यवस्था न होने कारण वंचित रहे लेकिन कृषि कार्य में निपुण थे। दुर्भाग्यवश ये जब बाल्यावस्था में ही थे, इनकी माता जी भगवान को प्यारी हो गई। इनकी माता जी के जाने के बाद श्री हरिसिंह जी ने गांव छोड़ कर पंजाब के मोगा में रहने लग गए। वहां पर इन्होने आठ नो वर्ष आयुर्वेद पर अध्ययन किया।  वहां से शिक्षा प्राप्त करने के बाद ये गांव लौट आए।  ये लगभग सन् 1911/12 की बात है। इन्होने गांव में ही अपनी आजीविका के लिए वैद्य का कार्य प्रांरभ कर दिया।  ओर अपने बड़े भाई पंडित भूराराम जी को भजनोपदेशक बनने के लिए प्रेरित कर देते हैं।  भूराराम जी ने भी यही उचित समझा। 

🔥प्रचार कार्य 🔥

            वैद्य हरिसिंह जी के द्वारा भूराराम जी ने महर्षि दयानंद सरस्वती जी के ग्रंथो का गहन अध्ययन कर भजन बनाए।  ओर प्रचार क्षेत्र में निकल पड़े।  भूराराम जी उत्तरी हरियाणा प्रदेश तथा पंजाब राज्य, लाहौर सुदूर क्षेत्रों में आर्य समाज का प्रचार करते थे। भूराराम जी के सुपुत्र श्री पंडित गोपाल आर्य विद्यावाचस्पति, तथा वैद्य हरिसिंह जी के सुपुत्र श्री सूर्यभानु डी. ए. वी कॉलेज लाहौर में पढ़ते थे। ये वही समय था जब इसी कॉलेज में वीर भगत सिंह तथा अन्य क्रांतिकारी शिक्षा प्राप्त करते थे। श्री गोपाल आर्य विद्यावाचस्पति व श्री सूर्यभानु जी भी अन्य क्रांतिकारियों की तरह देश की आजादी में क्रांतिकारियों का साथ दिया करते थे। यहां से शिक्षा प्राप्ती के बाद श्री गोपाल जी ने यहीं पढ़ाना शुरु कर दिया था।  पंडित भूराराम जी ने गांवो में जाकर के आर्य समाजों की स्थापना की।  पंडित भूराराम जी ने दो से तीन हजार ग्रामीण आर्य समाजों की स्थापनों की। सहस्त्रों यज्ञ कराए अनेकों आर्य पाठशालाएं स्थापित कर वैदिक धर्म के प्रचार को स्थायी कर दिया।  कई जगह तो मुस्लिम बहुल इलाकों में वेद पताका फहरा दी थी। उसी समय हैदराबाद सत्याग्रह का बिगुल बज गया। पंडित भूराराम जी ने यहां भी अपनी भूमिका बखूबी निभाई। 

🔥हैदराबाद सत्याग्रह🔥 

          पंडित भूराराम जी इनके बेटे, वैद्य हरिसिंह व इनके बेटे अपने पूरे परिवार सहित हैदराबाद सत्याग्रह में कूच कर गए।  इनको हैदराबाद की जेलों में बंदी बनाकर रखा गया।  भूराराम जी स्वयं का जत्था लेकर रोहतक से रवाना हुए थे।  इनको हैदराबाद के निजाम ने सीमेंट मिली आटे की रोटी मिलती।  निजाम की क्रूरता आर्य समाजियों के प्रति ज्यादा थी। हैदराबाद सत्याग्रह समाप्त होने के बाद ये गांव लौेटे। हैदराबाद सत्याग्रह की पैंशन भी लेने से मना कर दिया था। इसके थोड़े दिन बाद लोहारु कांड में भी भूराराम जी की भागीदारी रही। आजादी के बाद भूराराम जी जालंधर प्रतिनिधि सभा के उपदेशक रहे।   

🔥हिंदी आंदोलन 🔥

            वर्ष 1957 के हिंदी आंदोलन में पंडित भूराराम जी का योगदान चिर स्मरणीय है। पंडित भूराराम जी व पंडित प्रभुदयाल आर्य पौली वाले ने सभी के आदेशानुसार हजारों लोगों को सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया तथा अंतत: खूद भी गिरफ्तारी दी।  इनको हिसार जेल में लगभग 6 मास तक रखा गया। जेल में इनके अनेकों विशिष्ट सहयोगी थे :-श्री रामचन्द्र खरकड़ा, श्री सुबे सिंह खरकड़ा, श्री भीमसिंह जी, वुनी सिंह, बाजेराम,  श्री धर्मचंद, श्री टेकराम, इत्यादि को पंडित भूराराम जी ने ही सत्याग्रह के लिए प्रेरित किया तथा ये अमर सिंह के जत्थे में हिसार जेल में रहे।  पंडित भूराराम जी पर लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काने के आरोप लगे। इनको भी जेल में बंद कर दिया। इनके साथ जगदेव सिंह सिद्धांति जी, पं0  बुद्धदेव जी रहे। सत्याग्रह समाप्त होने के उपरांत भूराराम जी घर लौटे।

🔥पंडित का शिष्य 🔥

       लगभग सत्तर वर्ष पुरानी घटना है। पंडित भूराराम जी अपनी भजन मंडली के साथ प्रचार करने जा रहे थे। बीच रास्ते में दो पुलिसकर्मी आए। ओर उनकी भजन मंडली को परेशान करने लग गए। आरोप लगाते हुए बोले की आप नशे का सामान बेचते हो। पंडित श्री भूराराम जी ने उनको बहुत समझाया, की भाई हम तो आर्य समाज के प्रचारी हैं। भजन गाकर लोगों को सत्य मार्ग पर चलने की प्ररेणा देते हैं। वैदिक धर्म का प्रचार करते हैं। आर्य समाज के सिद्धांत लोगों को बताते हैं। हमारा ओर नशे का तो दूर तक कोई संबंध नहीं हैं। 

 पंडित जी ने पुलिस वालों को बहुत समझाया पर ना समझो ने पंडित जी एक न सुनी। उनको भजन मंडली सहीत थाने में ले गए। उन्होनें थानेदार को एक की दो बातें लगाकर सुनाई। थानेदार ने कहा चलो देखते हैं। 

 सज्जनों ये आर्य समाज की शिक्षा का प्रभाव ही कहो की जैसे ही थानेदार साहब ने पंडित भूराराम जी को देखा तो उनके पैरों में जा पड़े। नमस्ते प्रणाम् दोनों की हुई। अब ये दृश्य देखकर वो दोनो सिपाही सन्न रह गए। ये क्या हो रहा है।  सज्जनों ये थानेदार कोई ओर नहीं बल्कि पंडित भूराराम जी का विद्यार्थी था। पंडित जी की पाठशाला में पढ़ता था।  गुरु ओर शिष्य दोनों ने एक दुसरे को पहचाना। थानेदार ने पंडित जी का अतिथि सत्कार किया। 

इस घटिया हरकत के लिए थानेदार ने उन सिपाहियों को कड़ी फटकार लगाई। उनको नौकरी से बर्खास्त करने तक की बात कह दी। ऐसे में वो सिपाही थानेदार से माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगे। थानेदार बोले तुम्हारी इस नीच हरकत के लिए मैं माफी का हकदार नहीं, अपितु गुरु जी से माफी मांगो। माफ करने का हक उन्हीं को है।  सिपाहियों ने नम आंखो से पंडित जी के पैर पकड़ कर माफी मांगी। पंडित जी ने कहा एक शर्त पर तुम्हें माफ कर सकता हूं, सिपाहियों ने हामी कर दी। 

  पंडित जी ने उनको एक महिने तक गांवो में हमारी प्रचार की मुनियादी करने को कहा। सिपाहियों ने भी ऐसा ठीक समझा। लम्बी बात क्या है वो सिपाही घोड़ो पर जाते, पंडित जी उनको पहले की सूचित करते आज प्रचार इस गांव में होगा कल उसमें, गांव में भजन पार्टी के लिए रहने खाने की सारी व्यवस्था करके वे सिपाही वापिस पंडित जी को सूचित करते। 

जब महिना पुरा होने वाला था तब पंडित भूराराम जी ने उनको कहा, तुम्हें ये दंड देने का मेरा कोई प्रायोजन नहीं था, बल्कि मैने ऐसा इस लिए किया ताकि ये हरकत तुम ओर तुम्हारे साथी आर्य समाज के किसी भजनोपदेशक के साथ न करो। 

 सज्जनों ऐसी ऐसी अनेकों घटनाएं हैं, जो प्रचार में हमारे भजनोपदेशकों के साथ घटित होती रहती थी। पंडित भूराराम जी जैसे उपदेशक विरले ही जन्म लेते हैं। यें भजनोपदेशक तूजर्बे वाले थे। जनता के मन को भांप कर उपदेश करते। 90 वर्ष की आयु तक आर्य समाज का प्रचार करके पुन्य कमाया। आर्य समाज को समर्पित पंडित जी तथा इनके भाई वैद्य हरिसिंह जी ने लगभग 30हजार पुस्तकों को संग्रह करके आर्य समाज को दान कर दिया। 

🔥देह त्याग 🔥

       हिंदी आंदोलन के सफल सत्याग्रह के पश्चात पंडित भूराराम जी ने वानप्रस्थ की दीक्षा ले ली। इसके पश्चात भूराराम जी ने विधिवत सन्यास की दीक्षा तो नहीं ली अपितु एक सन्यासी की तरह जीवन व्यतीत किया। इतना ही नहीं उसके बाद गोरक्षा आंदोलन के लिए भी सत्याग्रही तैयार किये। गो माता के लिए भी भूराराम जी ने विशेष कार्य किये। जीवन के अंतिम समय में भूराराम जी भजन लिखने का कार्य करते। लगभग 1200 के करीब पुस्तकों को सम्पादन किया व हिन्दी के प्रचार हेतु सैंकड़ो वैदिक भजनो की पुस्तकें स्वयं लिखी। 1 जून 1977 को पंडित श्री भूराराम जी अपनी जीवन लीला समाप्त कर गए थे। भूराराम जी द्वारा लिखे गए गीत आज समाज के लिए प्रेरणा देते हैं। भूराराम जी द्वारा रचित पुस्तक वैदिक प्रार्थना भजनावली पुन: प्रकाशित होने जा रही। समस्त आर्य समाज पंडित भूराराम जी को नमन करता है।  वैदिक धर्म की जय।

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