Wednesday, June 23, 2021

पंजाब का हिन्दी रक्षा आंदोलन - श्री स्वामी भीष्म जी का सत्याग्रह


पंजाब का हिन्दी रक्षा आंदोलन 
श्री स्वामी भीष्म जी का सत्याग्रह 

 प्रस्तुति :- श्री सहदेव समर्पित 

                 स्वामी रामेश्वरानंद जी की गिरफ्तारी के पश्चात् हरयाणे की आर्य जनता उग्र हो उठी। आचार्य भगवानदेव जी दक्षिण ओर मध्य हरयाणे की कमान संभाली तथा श्री स्वामी भीष्म जी महाराज ने जीटी रोड़ बेल्ट तथा उत्तरी हरयाणे की, आन्दोलन में स्वामी जी ने बढ़ चढ़ कर भाग हुआ लिया। स्वामी जी अपने जत्थे का नेतृत्व करते अम्बाला से दिल्ली चले। पानीपत में जत्था पहुंचा तो दो पुलिसकर्मी स्वामी जी को पकड़ने के लिए आगे बढ़े, स्वामी जी जवानी में जाने माने पहलवान रहे, स्वामी जी ने दांव लगाकर उन दोनों की गर्दन को दबोच लिया। पुलिसकर्मियों की सांसे फुलने लगी। अन्य सत्याग्रहियों के कहने पर स्वामी जी ने उनको छोड़ा। 

              वहां से चण्डीगढ़ पहुंच कर आर्य समाज मन्दिर में पहुंचे। वहां भोजन इत्यादि किया। वहीं पर पता लगा कि 3 बजे मोर्चा लगेगा। 3 बजे स्वामी जी सचिवालय के सामने डट गये। स्वामी जी के जत्थे में स्वामी जी के साथ 126 व्यक्ति थे। वहीं पर लाला जगत नारायण भी खड़े थे उन के साथ 10-11 व्यक्ति थे। सिपाहियों ने लाठियों से घेरा बना रखा था। वे किसी को अन्दर घुसने नहीं देते थे। जब स्वामी जी ने लाला जगत नारायण से पूछा कि क्या आप इस घेरे को तोड़ेगें तो लाला जगत नारायण ने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि हम तो गान्धी जी के शिष्य हैं , तोड़ फोड़ में विश्वास नहीं करते। 

          स्वामी जी ने , अपने तीन पहलवान साथियों सहित , धक्का मार कर सिपाहियों की पंक्ति तोड़ डाली। आगे भी सिपाहियों की पंक्ति लगी थी। स्वामी जी को पुलिस कप्तान ने पीछे से पकड़ लिया। किन्तु स्वामी जी के आगे उसकी एक न चली। स्वामी जी ने झटका देकर उसे अलग कर दिया। इसी कार्यक्रम में उसका टोप पास पड़े पानी में जा पड़ा। इससे वह कप्तान बड़ा लज्जित हुआ। स्वामी जी को पकड़ने का आदेश देकर एक तरफ चला गया। जो थानेदार स्वामी जी को पकड़ने आया वह स्वामी जी का बचपन में शिष्य था। वह बोला कि स्वामी जी यदि पापको पकड़ता हूं तो बड़ी कृतघ्नता होगी यदि नहीं पकड़ता तो नौकरी को खतरा है। आप इस समस्या का हल करें। स्वामी जी बोले कि तू ही बता। तब उसने कहा कि आप को गाड़ी में बिठा कर कहीं पास ही छोड़ आएंगे। उस थानेदार पर रहम खा कर स्वामी जी ने यह बात मान ली। गाड़ी में साथियों सहित बैठ गये। एक अन्य थानेदार चार सिपाही आदि लेकर चला। 

           वर्षा हो रही थी चण्डीगढ़ से 30-32 कि० मीटर आने पर थाने दार ( अन्य ) बोला कि स्वामी जी बड़ी देर हो गई आप को बैठे - बैठे , उतर कर पेशाब आदि कर लो। स्वामी जी बोले - कि मुझे पता है तुम हमें नीचे उतार कर भाग जाओगे हम यहां धक्के खाते रहेंगे , हम नीचे नहीं उतरते। एक नौजवान , नातजुबें कार इंस्पैक्टर बोला कि फिर हम नीचे उतारेंगे , अगर खुद नहीं उतरोगे तो। स्वामी जी बोले कि आ जा , यदि तू मुझे उतार दे तो सब स्वयंमेव उतर जायेंगे। थानेदार बोला कि स्वामी जी , कुछ तो समाधान करो , इस बात का। स्वामी जी बोले , वापिस ले चल। चण्डीगढ़ से 1 कि.मी. बाहर छोड़ देना। इस बात पर सहमति हो गई , किन्तु यह शर्त रखी गई कि नारेबाजी नहीं की जाएगी। वापिस लाकर एक कि० मीटर के पत्थर पर उतार दिये गये। जत्थे के साथियों ने खूब नारे लगाये। पुनः आर्यसमाज के मन्दिर में आकर खाना आदि खाया। अगले दिन फिर सत्याग्रह किया। 

           फिर स्वामी जी को हवालात में बन्द कर दिया गया किन्तु तीन दिन बाद उन्हें छोड़ दिया गया। अब स्वामी जी सिकन्दराबाद की ओर प्रचार हेतु चले गये। यहां उन्हें पता चला कि उनकी गिरफ्तारी का वारन्ट निकल गया है। उन्होंने सोचा कि लोग कहेंगे कि वारन्ट के डर से भाग रहा है। यह सोच स्वामी जी वापिस घरोण्डा आ गये। घरौण्डे के थानेदार स्वामी जी को थाने ले आये वहां से उन्हें नाभा ( पंजाब ) जेल में भेज दिया गया। उन्हें ' बी ' क्लास में रखा गया। स्वामी जी का प्रबन्ध अलग से कर दिया गया क्योंकि बैरक में लोग बीड़ी सिगरेट इत्यादि पीते थे। 

            रोज हवन यज्ञ होता , उपदेश होता। स्वामी जी अपने भजनों के क्रान्तिकारी विचार लोगों को देते। जेल में स्वामी जो अन्य सत्याग्रहियों के साथ हवन यज्ञ किया करते थे किन्तु एक व्यक्ति जिसका नाम ' तपस्वी ' था यज्ञ के समय , शोर करके विघ्न डाला करता था। एक दिन स्वामी जी को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने उसे उठा कर भट्ठी में डालने की सोची। ऐसा करते देख बलराम जी दास टण्डन ने उसे बचाया। फिर कभी उसने शोर नहीं किया। जब सब लोग जेल से छूट रहे थे , तो स्वामी जी ने सोचा कि यह जो कम्बल , जुराब आदि जेल से मिला है , इसे अपने साथ लेकर जाना है। जब जेल के दरवाजे पर पहुंचे , तो पुलिस कर्मचारी कपड़े वापिस ले रहा था। स्वामी जी ने ' न ' कर दी। सब सिपाहियों को पता था कि बाबा क्रान्तिकारी है , बगावत कर देगा। जब दो बार कहने पर भी नहीं दिया और स्वामी जी बोले कि - अरे मुर्दे पर भी कफ़न डाल देते हैं , तुम इस ठण्ड में कपड़े लेकर मुझे मारोगे। आदमी हो कि कसाई। 

         चण्डीगढ़ हैड क्वार्टर पर टेलीफोन किया गया। पता लगा कि रसीद पर हस्ताक्षर करवा कर दे दो तथा जाने दो। इस चक्कर में 5 घण्टे लग गये। स्वामी जी ने देखा कि बाहर अन्धेरा है। स्टेशन अढ़ाई मील दूर है पैदल ठण्ड में जाना कठिन है। स्वामी जी फिर अड़ गये। स्वामी जी बोले कि पहले हमारे लिए तांगा मंगवाओ तब जायेंगे। जेलर बोला कि बाहर बेंच पड़ी है , उन पर बैठ जाओ। स्वामी जी ने सोचा कि यदि गेट पर हम चले गये तो ये पूछेगे भी नहीं , फिर पैदल जाना पड़ेगा। इन्होंने साफ इन्कार कर दिया। तंग होकर तांगा मंगवाया गया , तब स्वामी जी अपने साथियों सहित स्टेशन पर आए।

      हिन्दी सत्याग्रह, हैदराबाद सत्याग्रह की तरह आर्यसमाज का सफल सत्याग्रह रहा। आर्यसमाज का प्रचार ओर अत्यधिक हुआ।

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