लोक कवि कुंवर जौहरी सिंह जसराणा (सोनीपत)
-अमित सिवाहा
ओ३म् है जग का नियंता ओ३म् ही करतार है ओ३म् राजा न्यायकारी ओ३म् भव भंडार है।
ओ३म् कहने का मजा जिसकी जबां पर आ गया वो मुक्त जीवन हो गया चारों पदार्थ पा गया।
प्रेम से मिलकर चलो बोलो ज्ञानी बनो पूर्वजों की भांती तुम कर्त्तव्य के मानी बनो।
ओ३म् कहने का मजा जिसकी जबां पर आ गया वो मुक्त जीवन हो गया चारों पदार्थ पा गया।
प्रेम से मिलकर चलो बोलो ज्ञानी बनो पूर्वजों की भांती तुम कर्त्तव्य के मानी बनो।
हरियाणा प्रदेश की जनता संगीत प्रेमी रही है। यहां की जनता गाने बजाने लय सुर ढोलक, हारमोनियम ,चिमटे की ताल पर मोह उठती है। हरियाणा का वाद्द संगीत बीन बांसुरी अति प्रसिद्ध है। जनता की भावनाओं से प्रेरित होकर यहां पर अनेकों संगीतज्ञ हूए हैं। जिनमें काव्य सम्राट ईश्वर सिंह गहलोत काकरोला निवासी का नाम अति प्रसिद्ध है। ये पिंगल शास्त्र के उत्कृष्ट विद्वान थे। इन्होने ता उम्र वैदिक धर्म व स्वामी दयानंद सरस्वती जी के सिद्धांत का प्रचार किया। इनकी भजन मंडली में शिष्यों की बात करें तो स्वामी नित्यानंद (सुरा किलोई झज्झर ), कुंवर जौहरी सिंह जी जसराणा, श्री सत़्यवीर सिंह भैंसवाल कलां सोनीपत शिरोमणि शिष्य थे। हरियाणा के लोक कवियों में जौहरी सिंह जी चमकते सितारों की भांती थे।
जन्म
कुंवर जौहरी सिंह जी का जन्म 9अगस्त 1913 को गांव जसराणा तहसील गोहाणा जिला सोनीपत में पिता श्री जुगलाल जी के कृषक परिवार में हूआ। ये अपने पिता की तीन संतानों में सबसे बड़े थे। व शिक्षित भी यही थे। इनके दो छोटे भाई श्री महासिंह व चन्द्र भान जी कृषि कार्य करते थे।
आर्य समाज व उपदेशकों से प्रभावित
जब कुंवर साहब 12वर्ष के थे तो गुरुकल भैंसवाल की तरफ से चौधरी भोलाराम त्योडी निवासी जसराणा में प्रचार करने आए। बाल्यावस्था होने के कारण ये तो पता नहीं क्या प्रचार किया लेकिन इसी प्रचार से इनके चाचा देशराज पुत्र जयराम चंदगी राम पुत्र दुलीचंद ने जनेऊ धारण किये। जिस से गांव वाले कहने लगे ये दोनों बिगड़ गए। इसके बाद भोलाराम भजनोपदेशक आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब में काम करने लगे ओर दोबारा श्री पंडित समर सिंह वेदालंकार को लेकर जसराणा गांव में वेद प्रचार करने आए।
उस प्रचार का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा, कुंवर साहब समेत अनेकों ने जनेऊ धारण किया। लेकिन फिर भी वे आर्य समाज, वेद धर्म के महत्व को समझ नहीं पाए। इन्हीं दिनों आप 1928 में आठवीं कक्षा में (फरमाणा मिडल स्कूल) पढ़ रहे थे तो ईश्वर सिंह गहलोत जाट मिडल स्कूल के चंदे हेतू प्रचार करने आए। कुंवर साहब लिखते हैं की मैने लगातार एक महिना फरमाणा ,रिढाऊं, आंवली ,भैंसवाल कलां, माजरा में प्रचार सुना। ओर मन ही मन ख्याल आया की इनसे गाने की कला सिखनी चाहिए। गाने का शौक बचपन से ही था भगवान ने इतना सुंदर स्वस्थ शरीर, कोकिल जैसा कंठ भी बाल्यावस्था में दिया था। आपने चौधरी ईश्वर सिंह जी से गाना सीखने के लिए निवेदन किया। परंतु चौधरी साहब ने इनकी कम उम्र होने के कारण (बच्चा मान कर) मना कर दिया
सन् 1929 में मिडल पास करने के बाद ये दो साल ओर पढ़े, हिंदी विश्वविद्यालय दादरी से हिन्दी रत्न की परीक्षा उतीर्ण की ।
सन् 1931 में चौधरी ईश्वर सिंह जी जो पिंगल शास्त्र के ज्ञानी थे, उनकी जितनी भी कथाएं, भजन जो पिंगल शास्त्र पर थी सभी का लगातार सात साल तक स्वाध्याय किया। 1938 तक वे अच्छे प्रचार बन गए, ओर गुरू ईश्वर सिंह जी से आज्ञा लेकर,हैदराबाद सत्याग्रह में अलग पार्टी बनाकर प्रचार करने लग गए
समूचे हरियाणा में कुंवर साहब ने हैदराबाद सत्याग्रह के दौरान प्रचार किया व जत्थे भेजे। जसराणा से हैदराबाद सत्याग्रह में चौधरी अखेराम, चौधरी फुलसिंह, चौधरी मांगेराम, चौधरी बनी सिंह महाशय कृष्ण जी के साथ जत्थे में जेल गए। बाद में ये आजादी की जंग में कुद पड़े, ओर इनको भारत सरकार की तरफ से पैंशन भी मिली।
विवाह
कुंवर साहब का विवाह शादीपुर जुलाना (जींद) निवासी भोला नंबरदार की पुत्री फुलपती के साथ सन् 1936 में हूआ। जो की एक धार्मिक प्रवृत्ति, अतिथि सेवक महिला थी। इन को इन से नौ संताने हूई ,पांच लड़के, चार लड़कियां
कुंवर जी को इनके ही गांव के चौधरी रुपचंद होते थे जिन्होने सत्यार्थ प्रकाश, श्रग्वेदादिभाष्यभूमिका का काफी अध्ययन किया, जिसका इन पर अधिक प्रभाव पड़ा।
जसराणा आर्य समाज आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब संबंध हो चुकी थी। आपने गांव में बड़े उत्सव करवाए जिसमे चौधरी ईश्वर सिंह जी, श्री मोजीराम मांडी, हरिजन श्री गेलाराम भजनोपदेशको समेत शामिल हूए। ओर आपने लोगों के साथ साथ स्त्रीयों को भी जनेऊ धारण करवाए। आर्य समाजियों के घर हरिजनों को खाना खिलाया, जिससे जमींदारों में काफी रोष हूआ, लेकिन आप घभराए नहीं, मास्टर नान्हूराम का भरपुर सहयोग मिला।
कुंवर साहब समय समय पर आचार्य भगवान देव जी, आचार्य विष्णु मित्र जी, श्री सुखवीर शास्त्री जी, श्री जयलाल, स्वामी इन्द्र वेश जी, श्री नत्था सिंह जी, श्री मुंशीराम जी, वीरेन्द्र वीर आदि भजनोपदेशको को बुलाते ओर वेद प्रचार करवाते। सन् 1957 में कुंवर साहब ने हिंदी सत्याग्रह में बढ़ चढ़कर भाग लिया ओर प्रोफेसर शेर सिंह आदि सज्जनों के साथ तीन महिने जेल में रहे।
कुंवर साहब ने आजादी से पहले व बाद में कांग्रेस पार्टी खुब प्रचार किया। चौधरी सुलतान सिंह जी तो इनके भजनो के दिवाने हो गए। ओर आर्य समाज के मंच पर व अन्य मंचो पर जौहरी सिंह जी का नाम अदब के साथ लेते।
जौहरी सिंह जी अनेको संस्थाओ का प्रचार करते, जिससे लोग हस्थ मुक्त होकर दान देते। आर्य कन्या पाठशाला जसराणा, डी ए वी स्कूल सांघी, हाई स्कूल खंरैटी, डी ए वी हाई स्कूल मोखरा, कन्या हाई स्कूल भैंसवाल कलां, आर्य कन्या पाठशाला आहुलाना, गुरुकुल खानपुर कलां, हिंदी विश्वविद्यालय दादरी आदि संस्थानों में जम कर प्रचार किया।
आर्य समाज के प्रचार के दौरान आपको एक हुतात्मा भक्त फुल सिंह जी के साथ मुलाकात ने आपको ओर बुलंदियो पर पहूंचाया। आपको गुरुकल भैसंवाल, गुरुकुल खानपुर कलां का प्रचारी नियुक्त कर दिया। ओर आपने भी जी जान से मृत्युः पृयंत तक इन संस्थानों का निस्वार्थ भाव से प्रचार किया। इनके साथ साथ आपने, हैदराबाद सत्याग्रह, आर्य वीर दल, स्वाधीनता आंदोलन, कांग्रेस पार्टी, कुंडली बूचड़खाना, जमींदार पार्टी, हिंदी सत्याग्रह, शराबबंदी आंदोलन तथा विभिन्न संस्थानों के निर्माण में धन संग्रह हेतु प्रंशसनीय कार्य किया।
गायकी
आकाशवाणी दिल्ली से आपके गीत प्रसारित होते रहे हैं। समय समय पर विभिन्न विषयो के साथ श्री कपिल देव शास्त्री जी, व श्री सुखदेव शास्त्री जी व चौधरी रतन देव जी के साथ आपकी वार्ताएं प्रचारित हूई हैं।
आपने विभिन्न प्रकार की कविताएं पद्द रुप में लिखी हैं। जिनमे आल्हा, सवैया, दादरा, कव्वाली, हा हा, ख्याल, दोहा, राग, माल घोस, राग महैय्या, राग प्रभाती, गजल चौपाई, कुब्त, कुंडल, मुशायरा सम्मिलित हैं।
इनके संगीत से प्रभावित होकर सन् 1970 में गुरुकुल विद्यापीठ भैंसवाल कलां के दीक्षांत समारोह के अवसर पर आपको "संगिताचार्य" की प्रतिष्ठित उपाधी से विभूषित किया गया।
गुरुकुल सिंहपुरा में विभिन्न भजनोपदेशको की प्रतियोगिता में आपने प्रथम स्थान हासिल किया। 1972 में हरियाणा सरकार ने लोक कवि के नाते भाषा विभाग द्वारा सम्मानित किया गया।
आपकी भजन मंडली में कांशीराम चिमटे वाला, भिखन सिंह, इन्द्र सिंह ढोलकिया, कंवल सिंह, प्रभातिराम का महत्वपूर्ण स्थान है। इनके शिष्य की बात करें तो स्व रतन सिंह आर्य घिलोड कलां ,रामचन्द्र आर्य जसराणा, महाशय दयानंद रावलधी, कुंवर सुखलाल काकरोला, कुलदीप सिंह जसराणा, स्व श्री सरदार सिंह नंगली सकरावती ने उन्हीं तर्जों पर वेद प्रचार किया व कर रहे हैं।
कुंवर साहब आप वाकई धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होने जीवन के 45 वर्ष वेद प्रचार व महर्षि दयानंद सरस्वती जी के मंतव्यो में लगाए।
आप एक निर्भीक कवि व उपदेशक थे जो लगातार एक एक महिना घर से बाहर ओर गांव गांव में सात आठ दिन लगातार, 9,9 घंटे नई नई कथाएं सुनाकर लोगों को वैदिक धर्म के प्रति लोटने के लिए आग्रह करते। आप की ओजस्वी वाणी तो वयोवृद्ध सन्यासी आर्य भद्र पुरुषों को आज भी याद हैं। बताते हैं 2/3 मील दुर से आपके गाने आवाज आती थी। न कोई साऊंड सिस्टम न माईक वगैरा। गुरुकुल भैसंवाल कलां की बात करें तो रात को भी लगभग गांव गुवांडो से प्रचार सुनने के लिए लगभग 20000से 25000 लोग इकट्टा होते थे। स्त्री व पुरुष कच्चे रास्तों से जाकर चौधरी जौहरी सिंह जी के व्याख्यान सुनते। कौन भूल सकता है वो टाईम
इन्होने जीवन के अंतिम वर्ष गुरुकुल भैसंवाल कलां अध्यापन में बिताए, वहीं रह कर महर्षि दयानंद सरस्वती जी के जीवन चरित्र को पद्द शैली में लिखा। उन्हीं में से एक भजन है :- आए थे उसी रास्ते चलेगें महाकाल सबको डसतें चलेगें, जौहरी सिंह भी एक दिन कर नमस्ते चलेगें। ऐसा प्रभावशाली भजनोपदेशक बीमार होने के कारण 16 जुलाई 1981 को हम से सदा के लिए विदा हो गए। सिर्फ यादें बाकी रह गई।
शुभ करनी करता चलिये, जश के दीपक चसते रह जाएगें। पूरा कृतव्य जो पा लेगा, अग्रिम विमान भी आ लेगा। जौहरी सिंह भी चढ चालेगा, पीछे लोग तरसते रह जाएगें। शत शत नमन महान आत्मा दादा जौहरी सिंह जसराणा जी को। वैदिक धर्म की जय।