Friday, May 25, 2018

सीता माता की उत्पत्ति






सीता माता की उत्पत्ति


✍🏻 लेखक - शास्त्रार्थ महारथी स्वर्गीय पं० श्री मनसारामजी


अनुवादकर्ता - राजेंद्र जिज्ञासु जी


प्रस्तुति - 📚 आर्य मिलन


प्रिय पाठकवृन्द ! आज हम आपकी सेवा में महारानी सीताजी की उत्पत्ति के विषय में कुछ बताना चाहते हैं । महाभारत के युद्ध में अच्छे - अच्छे विद्वानों के मारे जाने के पश्चात् एक घोर वाममार्ग का समय आया । जिसमें स्वार्थी , अनाचारी लोगों ने सुरापान , मांसाहार तथा व्यभिचार को धर्म ठहराया और प्राचीन ऋषि - मुनियों पर सुरापान , मांसाहार व व्यभिचार के दोषारोपण करने के लिए भागवतादि पुराणों की रचना की । इन पुराणो में जहाँ ऋषियों पर दुराचार सम्बन्धी दोष लगाये गये वहाँ उनकी उत्पत्ति को भी घृणितरूप से जनता के सामने उपस्थित किया । यदि आप पुराणों को पढ़ें तो आपको पता लगेगा कि पुराणों ने किसी की उत्पत्ति को सीधे ढंग से पेश नहीं किया । जहाँ इन वामपन्थी लोगों ने पुराणों का निर्माण किया वहाँ प्राचीन ग्रन्थों में भी मांस , व्यभिचार आदि के श्लोक घड़कर मिला दिये और पूज्य महात्माओं की उत्पत्ति को घृणितरूप से वर्णन करनेवाले श्लोक भी प्राचीन ग्रन्थों में मिला दिये । चूंकि इन धूर्त , पाखण्डी , वाममार्गी पौराणिक लोगों ने महारानी सीताजी की उत्पत्ति के बारे में भी वाल्मीकि रामायण में निम्न प्रकार के श्लोक बनाकर सम्मिलित कर दिये , जैसाकि जनक ने बताया है —


☀️ अथ मे कृषत : क्षेत्र लांगलादुत्थिता तत ॥ १३ ॥


☀️ क्षेत्रं शोधयता लब्धा नाम्ना सीतेति विश्रुता ।


भूतलादुत्थिता सा तु व्यवर्धत ममात्मजा ॥ १४ ॥


— वा० रा० बाल० ६६ / १३ - १४


अर्थ — मेरे द्वारा खेत को जोतने पर मेरे हल की फाली से यह ऊपर को उठ पड़ी ॥ १३ ॥ चूंकि वह मुझे खेत को जोतते हुए मिली , अत: उसका नाम सीता प्रसिद्ध हो गया वह मेरी पुत्री पृथिवी से निकली और वृद्धि को प्राप्त हुई ॥ १४ ॥


अब सीता की इस उत्पत्ति पर ज़रा विचार कीजिए । प्रथम तो इस प्रकार की उत्पत्ति सृष्टि के नियम के विरुद्ध है , क्योंकि मनुस्मृति अध्याय १ श्लोक ३३ में स्पष्ट लिखा है कि —


☀️ क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान् ।
क्षेत्रबीजसमायोगात्सम्भवः सर्वदहिनाम् ॥ ३३ ॥


अर्थ — श्री खेतरूप है और पुरुष बीजरूप है । खेत तथा बीज के मिलने से ही सब शरीरधारियों की उत्पत्ति सम्भव हो सकती है ।


अत : बिना स्त्री - पुरुष के संयोग के जैवी सृष्टि में किसी भी शरीरधारी की उत्पत्ति असम्भव और सृष्टि - नियम के विरुद्ध है , अत : सिद्ध हुआ कि सीता की उत्पत्ति का इस प्रकार वर्णन करना पौराणिक गप्पाष्टक ही है । दूसरे स्वयं रामायण में भी इसके विरुद्ध प्रमाण मिल जाते हैं जैसाकि जब सीता अनसूया के पास गई और अनसूया ने उसको पतिव्रत धर्म का उपदेश किया तो उत्तर में सीता ने कहा कि —


☀️ पाणिप्रदानकाले च यत्पुरा त्वग्रिसंनिधौ ।
अनुशिष्टं जनन्या मे वाक्यं तदपि मे धृतम् ॥ ८ ॥


— वाल्मीकि रामा० , अयोध्या स० ११८


अर्थ — पहले अग्रि के समीप जो मेरा हाथ राम को पकड़ाते हुए मेरी जननी ने मुझे शिक्षा दी थी वह वाक्य भी मैंने धारण किया हुआ है ।


इस श्लोक में सीता ने स्पष्ट शब्दों में अपनी जननी माता का वर्णन किया है । इससे आगे जब हनुमान्जी सीता से मिलकर लौटने लगे तो सीता ने कपड़े में से खोलकर एक मणि हनुमान् को दी और कहा कि यह राम को दे देना । और मणि देने के पश्चात् सीता ने कहा कि -


☀️ मणेिं दृष्ट्वा च रामो वै त्रयाणां संस्मरिष्यति ।
वीरो जनन्या मम च राज्ञो दशरथस्य च ॥ २ ॥
— वाल्मीकि रामा० सुन्दर० स० २८


अर्थ — इस मणि को देखकर राम तीन को याद करेंगे — मेरी जननी को , मुझे और राजा दशरथ को ।


सीता के इस कथन से भी सीता की जननी माता का होना स्पष्ट सिद्ध है । इससे यह तो सिद्ध है कि सीता की माता और वह भी पालन करनेवाली नहीं अपितु जननी अवश्य थी , किन्तु कथा में गौण होने के कारण उसका स्पष्ट वर्णन रामायण में नहीं आया । अब हम आपको पौराणिकों के घर से ही अपने पक्ष की पुष्टि के प्रमाण बताते हैं । जब प्रतिपक्षी स्वयं ही हमारी बात का अनुमोदन कर दें तो फिर उनके मिथ्यात्व में क्या सन्देह है । लीजिए शिवपुराण , रुद्रसंहिता , पार्वतीखण्ड अध्याय ३ , श्लोक २९ में लिखा है कि —


☀️ धन्या प्रिया द्वितीया तु योगिनी जनकस्य च ।
तस्या : कन्या महालक्ष्मीर्नाम्ना सीता भविष्यति ।


अर्थ — दूसरी धन्यभाग्यवाली जनक की स्त्री जिसका नाम योगिनी है उसकी कन्या महालक्ष्मी होगी , उसका नाम सीता होगा ।


‘जादू वह जो सिर चढ़कर बोले ’ यह जनश्रुति पौराणिकों पर ही ठीक घटित होती है । इन सम्पूर्ण प्रमाणों से यह स्पष्ट सिद्ध है कि योगिनी नाम की जनक की स्री थी । उसके गर्भ से ही सीता की उत्पत्ति हुई थी । पौराणिकों ने खेत से सीता का निकलना मिथ्या ही रामायण में मिला दिया । इसी प्रकार से अन्य ऋषि , मनीषियों की उत्पत्ति भी सृष्टि - नियम के विरुद्ध मिथ्या ही पुराणों ने प्रतिपादित की है । सज्जन लोग बुद्धिपूर्वक सचाई को ग्रहण करने का प्रयत्न करें ।


✍🏻 लेखक - शास्त्रार्थ महारथी स्वर्गीय पं० श्री मनसारामजी
अनुवादकर्ता - राजेंद्र जिज्ञासु जी


प्रस्तुति - 📚 आर्य मिलन
॥ ओ३म् ॥

3 comments:

  1. भ्रान्ति निराकरण:--
    क्या सीता जी का जन्म पृथवी से हुआ था ???
    संस्कृत के कोषों में माता के गर्भ से पैदा हुई पुत्रियों को जिन नामों से पुकारा गया है वे हैं- 'अात्मजा'. 'तनया'. 'सूनुः'. और 'सुता' ||
    इसी प्रकार जन्म देने वाली माताओं के लिए जो नाम लिए गए हैं, वे हैं- 'जनयित्री'. 'प्रसू'. 'माता'. और 'जननी' ||
    सीता महाराज 'जनक' तथा महाराणी 'धरणी' की आत्मजा, सुता व तनया (देह से पैदा हुई) थी, न कि पृथ्वी से पैदा हुई धर्म-पुत्री | इसी प्रकार महाराणी 'धरणी' सीता की जन्म देने वाली जननी तथा राजा जनक जन्म देने वाले पिता थे, न कि पालन करने वाले मां-बाप |
    नीचे हम इस सत्य विचार के सम्बन्ध में कुछ प्रमाण रख रहे है | आशा है कि पाठव सत्य का स्वीकार करेगें...
    (१) महाराजा जनक द्वारा सीता को 'आत्मजा' व 'सुता' कहना
    "जनकानां कुले कीर्तिमाहरिष्यति मे सुता |" (बालकाण्ड सर्ग ६७ श्लोक २२)
    "पूर्वं प्रतिज्ञा विदिता वीर्य शुल्का मम आत्मजा |" (बा० का० ६८/७)
    (२) सीता जी द्वारा साक्षी
    जिस समय अत्रि महर्षि की पत्नि अनुसूया ने सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया, तब सीता जी ने कहा-- "वन को चलते हुए मेरे सास ने तथा विवाह के समय मेरे 'जननी' ने यही उपदेश दिया था, जो मैने अपने हृदय में धारण किया हुआ है |"
    "पाणी प्रदान काले च यत्पुरा त्वन्नि सन्निधै | अनुशिष्टं जनन्या मे वाक्यं तदपि मे धृतम् ||" (अयोध्या काण्ड सर्ग ११८/८)
    अर्थात् विवाह समय मेरी जननी (माता) की शिक्षा मेरे हृदय में ही है |
    इससे भी सिध्द होता है कि सीता जी की माता एक चेतन स्त्री थी न कि जड़ पृथ्वी क्योंकि पृथ्वी में उपदेश करने की शक्ति नहीं है |
    (३) छोटी बहन को 'अनुजा' कहना
    निम्न श्लोक में सीता अपनी छोटी बहन को अनुजा (पीछे पैदा होने वाली) कहती है |
    "स्वयम्वरं तनूजयाः करिष्यामीति धर्मतः ||" (२/११८/३८)
    "मम चैवानूजया साध्वी उर्मिला शुभ दर्शवा ||" (२/११८/५३)
    यहाँ से भी स्पष्ट है कि सीता जी की छोटी बहन उर्मिला थी और उर्मिला कोई अयोनिजा अर्थात् गर्भ से न उत्पन्न होने वाली नहीं थी |
    (४) श्रीराम जी ने वनगमन के समय (अयोध्या काण्ड के सर्ग २८ में) 'सीते महाकुलीनासि' कहकर उसके ब्रह्मनिष्ठ जनक के कुल में जन्म लेने की प्रशंसा की है ||
    इनके अतिरिक्त भी कई प्रमाण है परन्तु सत्य को स्वीकार करने वाले इतने से ही समझ जाएगें |
    सत्य-असत्य के भेद को जानो |
    सत्य धर्म है, सत्य को मानो ||

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  2. आप की इस बात से मै सहमत हूं/था।क्या बर्दान से पैदा होना भी झूठ था ?

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