महाभारत का एक प्रसंग : तब तेरा धर्म कहाँ था?
महाभारत के युद्ध के 17वें दिन जब वीरवर अर्जुन और महावीर कर्ण के बीच भीषण संग्राम हो रहा था, तब लड़ते-लड़ते कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धँस गया। कर्ण रथ से उतरकर पहिये को निकालने लगा। तब अर्जुन ने मौका अच्छा जानकर बाण तान लिया और छोड़ने ही वाला था कि मौत सामने देखकर कर्ण चिल्लाया- ‘क्या कर रहे हो, अर्जुन? यह धर्म युद्ध नहीं है, मैं निहत्था हूँ!’
यह सुनकर अर्जुन ठिठक गया, लेकिन जबाब दिया भगवान कृष्ण ने-
‘अच्छा तो, महाशय, अब तुझे धर्म की याद आ रही है! तू क्या जानता है धर्म क्या होता है?
तब तेरा धर्म कहाँ था, जब तुमने दुर्योधन के साथ मिलकर वारणावत में पांडवों को जीवित ही जलाकर मारने की कोशिश की थी?
तब तेरा धर्म कहाँ गया था, जब तुमने शकुनि के साथ मिलकर द्यूतक्रीड़ा के बहाने पांडवों का सर्वस्व हरण कर लिया था?
तब तेरा धर्म कहाँ चला गया था, जब तुमने महारानी द्रोपदी को भरी सभा में नंगा करने की सलाह दी थी?
तब तेरा धर्म कहाँ उड़ गया था, जब तुम सात मुस्टंडों ने एक निहत्थे बालक को घेरकर मार डाला था?’
‘अच्छा तो, महाशय, अब तुझे धर्म की याद आ रही है! तू क्या जानता है धर्म क्या होता है?
तब तेरा धर्म कहाँ था, जब तुमने दुर्योधन के साथ मिलकर वारणावत में पांडवों को जीवित ही जलाकर मारने की कोशिश की थी?
तब तेरा धर्म कहाँ गया था, जब तुमने शकुनि के साथ मिलकर द्यूतक्रीड़ा के बहाने पांडवों का सर्वस्व हरण कर लिया था?
तब तेरा धर्म कहाँ चला गया था, जब तुमने महारानी द्रोपदी को भरी सभा में नंगा करने की सलाह दी थी?
तब तेरा धर्म कहाँ उड़ गया था, जब तुम सात मुस्टंडों ने एक निहत्थे बालक को घेरकर मार डाला था?’
भगवान कृष्ण एक-एक करके कर्ण की करतूतें गिना रहे थे और बार-बार पूछते थे- ‘कु ते धर्मस्तदा गतः?’ बता तब तेरा धर्म कहाँ चला गया था?
कर्ण के पास कोई उत्तर नहीं था। भगवान ने फिर उसे फटकारा- ‘तू नीच, तू हमें क्या धर्म सिखाएगा? हमें अच्छी तरह मालूम है कि हमारा धर्म क्या है!’
तब भगवान ने अर्जुन से कहा- ‘अर्जुन, तुम इस दुष्ट की बातों में मत आओ। आजीवन पाप करने वाला और पापियों का साथ देने वाला यह आदमी धर्म की बात करने का अधिकारी नहीं है। इसे धर्म का नाम तक लेने का अधिकार नहीं है। तुम अभी इसका सिर काट दो, ताकि इसे पता चल जाये कि सच्चा धर्म क्या होता है।’
तब अर्जुन ने कर्ण को धर्म का जो सबक सिखाया, वह सबको मालूम है।
जब हम आज कश्मीर की परिस्थिति में इस प्रसंग पर विचार करते हैं, तो समानता स्पष्ट हो जाती है।
आतंकवादियों को प्रोत्साहन देने वाले अलगाववादी संगठन से लेकर कश्मीर की मुख्य-मंत्री रमजान के अवसर पर एकतरफा वीराम करने का पक्ष ले रहे हैं। ये लोग क्यों भूल जाते है कि यही वो आतंकवादी हैं जो कश्मीर में चंद वर्षों पहले आये भूकंप के बाद भी नहीं रुके , कश्मीर में आई बाढ़ में भारतीय सेना के हेलीकाप्टर पर पत्थर फेंकने से पीछे नहीं हटे, अमरनाथ यात्रा पर हमला करते से पीछे नहीं हटे, जम्मू के मंदिरों पर हमला करने से पीछे नहीं हटे, चेन्नई से घूमने आये बेकसूर पर्यटक को मारकर भी नहीं रुके, स्कूल के बस में घर जा रहे बच्चों पर पत्थर फेंकने से नहीं रुके। जिनमें नैतिकता नाम की कोई चीज नहीं है। वे आज नैतिकता और लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं। मोदी जी और भारतीय सेना को इनकी चिंता नहीं करनी चाहिए और देश के हित में जो आवश्यक हो वही करना चाहिए।
इन आतकंवादियों और अलगाववादियों को एक ही बात कहनी चाहिए।
तब तेरा धर्म कहाँ था?
No comments:
Post a Comment