डॉ विवेक आर्य
वेदों में अनेक मन्त्रों के माध्यम से मनुष्य को वैरागी होने एवं मोक्ष को जीवन का लक्ष्य बनाने का सन्देश दिया गया है। ऐसा ही एक सूक्त ऋग्वेद में 7 वें मंडल का 89 वां सूक्त वैराग्य सूक्त के नाम से जाना जाता है। इस सूक्त के ऋषि वशिष्ठ है, वरुण देवता है और छंद आर्षी गायत्री है। इस सूक्त में पांच मन्त्र है।
इस सूक्त के पहले मन्त्र में प्रार्थना की गई है कि हे ईश्वर आप ऐसी कृपा कीजिये कि हमें यह मिटटी का घर दोबारा न मिले। यह शरीर क्या है। मिटटी का घर ही तो है। इसमें रथी आत्मा है। आत्मा का लक्ष्य मोक्ष ग्रहण कर बार बार जन्म और मरण के चक्र से छूट जाना हैं। यह मोक्ष का सुख केवल और केवल ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए इस मन्त्र में जीवन के उद्देश्य इस मिटटी के शरीर से मुक्ति अर्थात मोक्ष प्राप्त करना बताया गया है।
इस सूक्त के दूसरे मन्त्र में सबसे पहले मन को साधने का सन्देश दिया गया है। जिस प्रकार हवा से भरी तूम्बी जल में इधर-उधर भटकती रहती है उसी प्रकार से यह मन भी चित की चंचल वृतियों के चलते इधर उधर भटकता रहता है। इस चित को साधने के लिए वैराग्य की आवश्यकता होती है। ताकि यह आत्मा अपने उद्देश्य को स्मृत कर ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य का वरण करे।
इस सूक्त के तीसरे मन्त्र में वैराग्य की भावना को प्राप्त करने के लिए, विरक्ति की भावना को उन्नत करने के लिए मनुष्य को अपने आपको दीन अनुभव कर केवल शुद्ध कर्म करने वाले उस ईश्वर की कृपा के लिए प्रार्थना करने का सन्देश दिया गया है। उसी ईश्वर की कृपा से ही यह वैराग्य संभव है।
इस सूक्त के चौथे मन्त्र में जीवन में दुःख का कारण ईश्वर की सृष्टि नहीं अपितु हमारी दोषपूर्ण प्रवृतियां बताई गई हैं। इसीलिए ईश्वर ने सांसारिक पदार्थों को भोग की नहीं अपितु त्याग की भावना से प्रयोग करने का निर्देश दिया है। वासनायें भोग से नहीं अपितु योग से शांत होती है।
इस सूक्त का अंतिम मन्त्र वैराग्य की भावनाओं का निचोड़ है। इस मन्त्र में मनुष्य ईश्वर से अपने अज्ञान को स्वीकार करते हुए अपने द्वारा किये गए अनिष्ट कर्मों का कारण मुख्य रूप में अपनी अल्पज्ञता को बताता है। वह ईश्वर से पापों से रक्षा करने के लिए प्रार्थना करता है। और पापों से बचने के लिए वैराग्य की भावना को प्रबल करने की प्रार्थना करता है।
इस प्रकार से इस वैराग्य सूक्त में मनुष्य के जीवन का उद्देश्य, चंचल वृतियों की रोकथाम, वैराग्य की भावना को प्रबल बनान , विरक्ति की भावना को उन्नत करना, त्याग की भावना से सांसारिक साधनों का प्रयोग करना एवं अपनी अज्ञानता से किये गए अनिष्ट कर्मों से बचाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है।
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