Wednesday, August 26, 2015

आचरणहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते




आचरणहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते।


प्राचीन काल की बात है। एक राजा था। बड़ा न्यायप्रिय एवं आचारवान। प्रजा उसके कार्यों से सदा सुखी रहती थी। राजा का एकमात्र पुत्र था जो कुसंग के कारण अनेक दोषों से युक्त हो गया। राजा को सदा अपने पुत्र की चिंता रहने लगी। राजा के समझाने पर भी कुछ परिणाम न निकला। एक दिन राजा के गुरु जी उनके राज्य में पधारे। राजा ने उनकी भरपूर सेवा शुश्रुता करी। गुरु जी ने राजा को चिंताग्रस्त देखकर कारण पूछा। राजा ने अपने पुत्र के दोषों से गुरु जी को अवगत करवाया। गुरु जी ने राजा से कहा कि अपने पुत्र को सांयकाल में मेरे पास भेज दीजिये। सांय को राजा का पुत्र गुरु जी से मिलने गया। सामान्य शिष्टाचार के पश्चात गुरु जी उसे अपने साथ एक उद्यान में भ्रमण हेतु ले गए। वहां पर भिन्न भिन्न प्रकार के सुन्दर सुन्दर पौधे लगे थे। गुरु जी ने राजकुमार को सबसे पहले एक छोटा पौधा उखाड़ने को कहा। राजकुमार ने थोड़े से श्रम से उसे उखाड़ दिया। अब गुरु जी ने राजकुमार को उससे बड़े पौधे को उखाड़ने को कहा। राजकुमार ने पहले से अधिक श्रम से उसे उखाड़ दिया। अब गुरु जी  ने एक विशाल वृक्ष को उखाड़ने को कहा। राजकुमार ने कहा इस वृक्ष को उखाड़ना उसके वश में नहीं हैं। गुरु जी ने राजकुमार से उसका कारण पूछा। राजकुमार ने कहा इस वृक्ष की जड़ बहुत गहरी है। इसलिए इसे उखाड़ना मेरे लिए संभव नहीं है। तब गुरु जी ने कहा,"पुत्र हमारे जीवन में बुरी आदतें भी इस वृक्ष के समान हैं। आरम्भ में यह छोटे से पौधे के समान होती हैं। इन्हें उखाड़ना अर्थात दूर करना सरल होता हैं। कुछ काल के पश्चात जिस प्रकार से पौधा वृक्ष बन जाता हैं, उसी प्रकार से हमारी बुरी वृतियां, बुरी आदतें भी दृढ़ हो जाती हैं। फिर उन्हें जीवन में से दूर करना असंभव हो जाता है। राजकुमार पर गुरूजी की बातों का व्यापक प्रभाव हुआ। राजकुमार ने तत्काल बुरी आदतों पर विराम लगा दिया और अपने आचरण को पवित्र कर दिया। राजकुमार आगे चलकर वह भी अपने पिता के समान न्यायप्रिय एवं आचारवान राजा सिद्ध हुआ।

 यजुर्वेद 30/3 में पवित्र आचरण के लिये मनुष्य बड़ी सुन्दर प्रार्थना ईश्वर से करता हैं। मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना करता है कि हे उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव युक्त ईश्वर, आप हमारे सब दुष्ट आचरण एवं दुखों को दूर कीजिये और जो कल्याणकारी धर्मयुक्त आचरण एवं सुख हैं, उसे अच्छी प्रकार से उत्पन्न कीजिये।
इस संसार में ईश्वर सबसे उत्तम गुण, कर्म और स्वभाव वाला हैं। इसलिए अपने आचरण को सुधारने के लिए मनुष्य को ईश्वर से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस मंत्र के माध्यम से ईश्वर की स्तुति,प्रार्थना और उपासना करते हुए आध्यात्मिक उन्नति कर जीवन को सफल बनाना चाहिए।

डॉ विवेक आर्य

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