Monday, August 24, 2015

अकबर को वीर हिन्दू रमणी ने जब सबक सिखाया था



अकबर को वीर हिन्दू रमणी ने जब सबक सिखाया था

अकबर घोर विलासी, अय्याश बादशाह था। वह एक ओर हिन्दुओं को मायाजाल में फंसाने के लिए "दीने इलाही" के नाम पर माथे पर तिलक लगाकर अपने को सहिष्णु दिखाता था, दूसरी ओर सुन्दर हिन्दू युवतियों को अपनी यौनेच्छा का शिकार बनाने की जुगत में रहता था।

दिल्ली में वह "मीना बाजार" लगवाता था। उसमें आने वाली हिन्दू युवतियों पर निगाह रखता था। जिसे पसन्द करता था उसे बुलावा भेजता था।

डिंगल काव्य सुकवि बीकानेर के क्षत्रिय पृथ्वीराज उन दिनों दिल्ली में रहते थे। उनकी नवविवाहिता पत्नी किरण देवी परम धार्मिक, हिन्दुत्वाभिमानी, पत्नीव्रता नारी थी। वह सौन्दर्य की साकार प्रतिमा थी। उसने अकबर के मीना बाजार के बारे में तरह-तरह की बातें सुनीं। एक दिन वह वीरांगना कटार छिपाकर मीना बाजार जा पहुंची। धूर्त अकबर पास ही में एक परदे के पीछे बैठा हुआ आने-जाने वाली युवतियों को देख रहा था। अकबर की निगाह जैसे ही किरण देवी के सौन्दर्य पर पड़ी वह पागल हो उठा। अपनी सेविका आयशा को संकेत कर बोला "किसी भी तरह इस मृगनयनी को लेकर मेरे पास आओ मुंह मांगा इनाम मिलेगा।"

किरण देवी बाजार की एक हीरों की दुकान पर खड़ी कुछ देख रही थी। आयशा वहां पहुंची। धीरे से बोली-"इस दुकान पर साधारण हीरे ही मिलते हैं। चलो, मैं तुम्हें कोहिनूर हीरा दिखाऊंगी।" किरण देवी तो अवसर की तलाश में थी। आयशा के पीछे-पीछे चल दी। उसे एक कमरे में ले गई।

अचानक अकबर कमरे में आ पहुंचा। पलक झपकते ही किरण देवी सब कुछ समझ गई। बोली "ओह मैं आज दिल्ली के बादशाह के सामने खड़ी हूं।" अकबर ने मीठी मीठी बातें कर जैसे ही हिन्दू ललना का हाथ पकड़ना चाहा कि उसने सिंहनी का रूप धारण कर, उसकी टांग में ऐसी लात मारी कि वह जमीन पर आ पड़ा। किरण देवी ने अकबर की छाती पर अपना पैर रखा और कटार हाथ में लेकर दहाड़ पड़ी-"कामी आज मैं तुझे हिन्दू ललनाओं की आबरू लूटने का मजा चखाये देती हूं। तेरा पेट फाड़कर रक्तपान करूंगी।"

धूर्त अकबर पसीने से तरबतर हो उठा। हाथ जोड़कर बोला, "मुझे माफ करो, रानी। मैं भविष्य में कभी ऐसा अक्षम्य अपराध नहीं करूंगा।"

किरण देवी बोली-"बादशाह अकबर, यह ध्यान रखना कि हिन्दू नारी का सतीत्व खेलने की नहीं उसके सामने सिर झुकाने की बात है।"...

अकबर किरण देवी के चरणों में पड़ा थर-थर कांप रहा था। और मीना बाजार के नाटक पर सदा सदा के लिए पटाक्षेप पड़ गया था।

एक कवि ने उस स्थिति का चित्र इन शब्दों में खींचा है

सिंहनी-सी झपट, दपट चढ़ी छाती पर,
मानो शठ दानव पर दुर्गा तेजधारी है।
गर्जकर बोली दुष्ट! मीना के बाजार में मिस,
छीना अबलाओं का सतीत्व दुराचारी है।
अकबर! आज राजपूतानी से पाला पड़ा,
पाजी चालबाजी सब भूलती तिहारी है।
करले खुदा को याद भेजती यमालय को,
देख! यह प्यासी तेरे खून की कटारी है।


(देश विभाजन के पश्चात ऐसे प्रेरणादायक प्रसंगों को पाठ्यकर्म में इसलिए शामिल नहीं किया गया क्यूंकि इनसे सेक्युलर देश की छवि धूमिल हो जाती। जब हम ऐसे प्रसंगों को पाठ्यकर्म में शामिल करने का आग्रह करते हैं तो कुछ छदम लोग इसे शिक्षा का भगवाकरण बताते हैं। यह मेरे देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर इतिहास सत्य के आधार पर नहीं अपितु खुशामद के आधार पर लिखा जाता हैं। देश पर गर्व करने वाले हर देशभक्त को इस लेख को अवश्य शेयर करना चाहिये)


डॉ विवेक आर्य 

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