Tuesday, August 11, 2015

सत्य के लिए श्रद्धा एवं असत्य के लिए अश्रद्धा पैदा करने वाला कौन हैं?



सत्य के लिए श्रद्धा एवं असत्य के लिए अश्रद्धा पैदा करने वाला कौन हैं?

कौरवों और पांडवों को शस्त्र शिक्षा देते समय एक दिन आचार्य द्रोण के मन में उनकी परीक्षा लेने का विचार आया। उन्होंने सोचा, क्यों न सबकी वैचारिक प्रगति और व्यवहारिक बुद्धि की परीक्षा ली जाए। दूसरे दिन आचार्य द्रोण ने राजकुमार दुर्योधन को अपने पास बुलाकर कहा-'वत्स, तुम समाज में अच्छे आदमी की परख करो और वैसा एक व्यक्ति खोजकर मेरे सामने उपस्थित करो।' दुर्योधन ने कहा-'जैसी आज्ञा।' और वह अच्छे आदमी की खोज में निकल पड़ा।

कुछ दिनों के बाद दुर्योधन आचार्य द्रोण के पास आकर बोला-'गुरुजी, मैंने कई नगरों और गांवों का भ्रमण किया परंतु कहीं भी कोई अच्छा आदमी नहीं मिला। इस कारण मैं किसी को आपके पास नहीं ला सका।' इसके बाद आचार्य द्रोण ने राजकुमार युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा-'बेटा, इस पूरी पृथ्वी पर कहीं से भी कोई बुरा आदमी खोज कर ला दो।' युधिष्ठिर ने कहा-'ठीक है, गुरुदेव। मैं कोशिश करता हूं।' इतना कहकर वह बुरे आदमी की खोज में निकल पड़े।

काफी दिनों बाद युधिष्ठिर आचार्य द्रोण के पास आए। आचार्य द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा- 'किसी बुरे आदमी को साथ लाए?' युधिष्ठिर ने कहा-'गुरुदेव, मैंने सब जगह बुरे आदमी की खोज की, पर मुझे कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला। इस कारण मैं खाली हाथ लौट आया।' सभी शिष्यों ने पूछा-'गुरुवर, ऐसा क्यों हुआ कि दुर्योधन को कोई अच्छा आदमी नहीं मिला और युधिष्ठिर किसी बुरे व्यक्ति को नहीं खोज सके?'

आचार्य द्रोण बोले-'जो व्यक्ति जैसा होता है, उसे सारे लोग वैसे ही दिखाई पड़ते हैं। इसलिए दुर्योधन को कोई अच्छा व्यक्ति नहीं दिखा और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी नहीं मिल सका।'

संसार में सब स्थान पर अच्छाई और बुराई हैं। जहाँ सत्य है वहां अच्छाई है, जहाँ असत्य है वहां बुराई हैं। वेद भगवान इसी संदेश को बड़े मर्मिक रूप से समझाते है। यजुर्वेद 19/77 में लिखा है-  प्रजापति रूपी ईश्वर ने सत्य-असत्य को जिस प्रकार से जगत में पृथक कर रखा हैं, उसी प्रकार से हमारे भीतर भी पृथक कर रखा हैं।  ईश्वर ने हमारे अंतकरण में अच्छाई और बुराई अर्थात सत्य और असत्य में भेद करने के लिए श्रद्धा और अश्रद्धा रूपी शक्ति प्रदान करी हैं। ईश्वर सत्य में श्रद्धा को उपजाते है एवं असत्य में अश्रद्धा को उदभूत करते हैं। अब जो प्रजापति की शरण में हैं वह सत्य और असत्य में भेद करने में सक्षम होगा। जो मलिन हृदय वाला होगा उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली कोई नहीं होगा।

दुर्योधन हृदय की मलिनता एवं अश्रद्धा के चलते संसार में अच्छाई को न खोज पाया जबकि युधिष्ठिर अंतकरण में अच्छाई और श्रद्धा के चलते संसार में बुराई को न खोज पाया। भाइयों! तनिक अपने अंदर भी टटोलो प्रजापति ने सत्य के लिए श्रद्धा एवं असत्य के लिये अश्रद्धा को पैदा किया हैं।

डॉ विवेक आर्य 

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