Saturday, May 2, 2015

वैदिक विचारधारा को ऋषि दयानंद की अभिनव देन



वैदिक विचारधारा को ऋषि दयानंद की अभिनव देन

                                      स्वामी दयानंद का जिस काल में पदार्पण हुआ उस काल में वेदों का पठन-पाठन लगभग विलुप्त ही हो चूका था। अज्ञानी लोगों ने वेदों को अज्ञान, आलस्य, प्रमाद, उदासीनता और अपेक्षा के घोर अन्धकार में धकेल दिया था जिसे स्वामी दयानंद ने अपने पुरुषार्थ से समस्त संसार में पुन: स्थापित किया। अपने गुरु दण्डी स्वामी विरजानंद जी को गुरु दक्षिणा में दिए गए वचन कि अपने समस्त जीवन को वेदों के उद्धार एवं प्रचार में समर्पित करना को स्वामी जी ने जीवन भर निभाया। इस कार्य के लिए स्वामी जी ने वैदिक वांग्मय का सूक्षम एवं गंभीर अध्ययन किया। स्वामी दयानंद आधुनिक भारत में यह उद्घोष करने वाले प्रथम विभूति है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र से लेकर नारी सभी को समान रूप से वेद पढ़ने का अधिकार है। इसी उद्देश्य से वेदों को संस्कृत से हिंदी में भाष्य करने का स्वामी जी ने भगीरथ प्रयास आरम्भ किया एवं सम्पूर्ण यजुर्वेद एवं ऋग्वेद के सातवें मंडल तक ही उनका भाष्य पूर्ण हुआ। बाकि असमय मृत्यु के कारण न हो पाया। सामान्य जनता को संस्कृत की आरम्भिक जानकारी देने के उद्देश्य से स्वामी जी ने वेदांग प्रकाश एवं संस्कृत वाक्य प्रबोध लिखी। वेद भाष्य से पूर्व वेदों की विषय वस्तु को समझने हेतु ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका का लेखन भी किया। वेद ही ईश्वरीय ज्ञान है, वेदों का ईश्वर द्वारा कब और कैसे प्रकाश हुआ ऐसे विषयों से लेकर वेदों में विभिन्न प्रकार के विज्ञान और विद्या का होना स्वामी जी द्वारा बताया गया। स्वामी जी ने बताया कि वेदों के ज्ञान और उपदेश के पालन करने से ही मानव, परिवार, समाज, देश और सम्पूर्ण विश्व कि उन्नति संभव हैं। वेदों में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक तीनों उन्नति प्राप्त करने का उपाय बताया गया हैं। सभी प्रकार के कल्याणकारी और मंगलकारी ज्ञान-विज्ञान और उपदेशों से भरा हुआ यह वेद ईश्वर द्वारा मनुष्य के कल्याण  के लिए दिया गया है।

                                         स्वामी दयानंद से पूर्व वेद कर्मकांड करने वाली पुस्तक, यज्ञों में पशु बलि आदि का समर्थन करने वाली, जादू-टोना, अन्धविश्वास, इतिहास की कहानियां आदि माना जाता था। स्वामी दयानंद ने वेदों के मूल उद्देश्य से मानव मात्र को अवगत करवाया। वेदों के परमार्थिक एवं व्यवाहरिक सन्देश को प्रकाशित किया। स्वामी जी ने अपने सिंघनाद से यह सिद्ध किया कि वेद ईश्वर का ज्ञान कराने वाले उच्च कोटि के आध्यात्मिक ग्रन्थ हैं न कि जंगली और गंवार गड़रियों के गीत हैं जैसा पाश्चात्य लेखकों द्वारा प्रचारित किया जाता था। स्वामी जी ने अपने भाष्य द्वारा यह सिद्ध किया कि जो भी वेदों के विषय में भ्रांतियां हैं उनका मूल कारण वेद मन्त्रों के अव्यवहारिक एवं अमान्य अर्थों का करना है।अपने भाष्य द्वारा स्वामी दयानंद ने इन्हीं भ्रांतियों का निवारण किया एवं वेद के सत्यार्थ द्वारा सामान्य जान को अवगत करवा कर वेदों के प्रति श्रद्धा को उत्पन्न किया। निरीह प्राणियों को यज्ञों के नाम पर बलि देने का विरोध कर स्वामी दयानंद ने मानवता पर कितना उपकार किया पाठक स्वयं चिंतन कर सकते हैं।

                                            स्वामी दयानंद द्वारा स्वर्ग एवं नरक के व्यवहारिक अर्थ किये गए। स्वामी जी से पूर्व स्वर्ग और नरक को विशेष लोक के रूप में माना जाता था जहाँ पर ईश्वर या देवता वास करते हैं एवं सम्पूर्ण सुख साधनों का भोग करते हैं। स्वामी जी ने इस प्रकार के किसी भी लोक को कल्पित बताया एवं यह सन्देश दिया कि मनुष्य का इसी धरती पर सुखमय जीवन स्वर्ग है एवं दुखमय जीवन नरक है। शुभ कर्मों के आचरण से ही मनुष्य सुखी रहता है और बुरे कर्मों के प्रभाव से मनुष्य दुखी रहता है। अगर मानवता आज स्वर्ग-नरक के भेद को समझ जाये तो निश्चित रूप से समाज का कल्याण हो जायेगा।
                                             स्वामी दयानंद द्वारा वेदों में वर्णित  अग्नि, इंद्र, वायु,वरुण, सूर्य आदि देवतावाची शब्दों का परमात्मपरक अर्थ किये जिससे परमात्मा के गुण, कर्म और स्वाभाव से मानव परिचित हो सके, जीवपरक अर्थ किये जिससे मनुष्य को अपने कर्त्तव्य का ज्ञान हो सके जैसे राजा, न्यायाधीश, सेनापति,गुरु,उपदेशक आदि का कर्तव्य बोध हो, जड़रूप अर्थ भी किये जिससे इनके भौतिक गुणों का ज्ञान हो सके और उनके व्यवाहरिक प्रयोग से दैनिक जीवन साधन सम्पन्न हो सके। इस प्रकार से वेद मन्त्रों का आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक अर्थ के माध्यम से मनुष्यों को वेदों के विभिन्न अर्थों से परिचित करवाकर उनका कल्याण करना स्वामी जी का उद्देश्य था।
                       इस प्रकार से वेदों के ज्ञान का प्रकाश करना स्वामी दयानंद कि मानव जाति को अभिनव देन हैं।

                 डॉ विवेक आर्य  

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