सूर्य नमस्कार, वन्दे मातरम और स्वामी दयानंद
हमारे मुस्लिम भाइयों को सूर्य नमस्कार करने एवं वन्दे मातरम गाने में आपत्ति है क्यूंकि उनका मानना हैं कि एक खुदा को छोड़कर अन्य किसी कि पूजा का इस्लाम में निषेध है। सूर्य नमस्कार में सूर्य, वन्दे मातरम में पृथ्वी की स्तुति करनी बताई गई हैं जो इस्लामिक मान्यतों के प्रतिकूल हैं। उनका मानना है कि अग्नि, वायु, जल, पवन, पृथ्वी को मनुष्य सेवा के लिए अल्लाह द्वारा निर्मित किये गए हैं तो सेवक की पूजा कैसे की जा सकती हैं? एक मुस्लिम विद्वान तो यहाँ तक कह गए की चपरासी अफसर की खिदमत के लिए होता है , कभी अफसर को चपरासी को नमन करते देखा है? उनका कहना था कि अल्लाह के फरमान से बढ़कर उनके लिए कोई फरमान नहीं है।
हमारे मुस्लिम भाइयों कि इस समस्या का समाधान स्वामी दयानंद ने 'देवता' शब्द की परिभाषा में बहुत पहले कर दिया था। केवल चिंतन करने की आवश्यकता है। आपकी इस शंका का समाधान ईश्वर और देव शब्द में अंतर को समझने से हो जाता हैं।
निरुक्त 7/15 में यास्काचार्य के अनुसार देव शब्द दा, द्युत और दिवु इस धातु से बनता हैं। इसके अनुसार ज्ञान,प्रकाश, शांति, आनंद तथा सुख देने वाली सब वस्तुओं को देव कहा जा सकता हैं। यजुर्वेद 14/20 में अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र वसु, रूद्र, आदित्य, इंद्र इत्यादि को देव के नाम से पुकारा गया हैं। परन्तु वेदों में तो पूजा के योग्य केवल एक सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, भगवान को ही बताया गया हैं। देव शब्द का प्रयोग सत्यविद्या का प्रकाश करनेवाले सत्यनिष्ठ विद्वानों के लिए भी होता हैं क्यूंकि वे ज्ञान का दान करते हैं और वस्तुओं के यथार्थ स्वरुप को प्रकाशित करते हैं। देव का प्रयोग जीतने की इच्छा रखनेवाले व्यक्तियों विशेषत: वीर, क्षत्रियों, परमेश्वर की स्तुति करनेवाले तथा पदार्थों का यथार्थ रूप से वर्णन करनेवाले विद्वानों, ज्ञान देकर मनुष्यों को आनंदित करनेवाले सच्चे ब्राह्मणों, प्रकाशक, सूर्य,चन्द्र, अग्नि, सत्य व्यवहार करने वाले वैश्यों के लिए भी होता हैं।
स्वामी दयानंद देव शब्द पर विचार करते हुए ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका वेदविषयविचार अध्याय 4 में लिखते हैं की दान देने से 'देव' नाम पड़ता हैं और दान कहते हैं अपनी चीज दूसरे के अर्थ दे देना। 'दीपन' कहते हैं प्रकाश करने को, 'द्योतन' कहते हैं सत्योपदेश को, इनमें से दान का दाता मुख्य एक ईश्वर ही है की जिसने जगत को सब पदार्थ दे रखे है तथा विद्वान मनुष्य भी विद्यादि पदार्थों के देनेवाले होने से देव कहाते है। दीपन अर्थात सब मूर्तिमान द्रव्यों का प्रकाश करने से सूर्यादि लोकों का नाम भी देव हैं। तथा माता-पिता, आचार्य और अतिथि भी पालन, विद्या और सत्योपदेशादी के करने से देव कहाते हैं। वैसे ही सूर्यादि लोकों का भी जो प्रकाश करनेवाला हैं, सो ही ईश्वर सब मनुष्यों को उपासना करने के योग्य इष्टदेव हैं, अन्य कोई नहीं। कठोपनिषद 5/15 का भी प्रमाण हैं की सूर्य, चन्द्रमा, तारे, बिजली और अग्नि ये सब परमेश्वर में प्रकाश नहीं कर सकते, किन्तु इस सबका प्रकाश करनेवाला एक वही है क्यूंकि परमेश्वर के प्रकाश से ही सूर्य आदि सब जगत प्रकाशित हो रहा हैं। इसमें यह जानना चाहिये की ईश्वर से भिन्न कोई पदार्थ स्वतन्त्र प्रकाश करनेवाला नहीं हैं , इससे एक परमेश्वर ही मुख्य देव हैं।
देव और ईश्वर के मध्य भेद को समझने से आपकी भ्रान्ति का निवारण हो जाता है। वेद केवल और केवल एक ईश्वर की उपासना का संदेश देते है। अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र वसु, रूद्र, आदित्य, इंद्र,सत्यनिष्ठ विद्वान,वीर क्षत्रिय, सच्चे ब्राह्मण, सत्यनिष्ठ वैश्य, कर्तव्यपरायण शूद्र से लेकर माता-पिता, आचार्य और अतिथि तक सभी मनुष्यों के लिए कल्याणकारी हैं इसलिए सम्मान के योग्य हैं। जिस प्रकार से माता-पिता, आचार्य आदि सभी खिदमत करने वाले मगर उनका सम्मान हर मुसलमान करता हैं कोई उन्हें यह नहीं कहता कि हम सेवक का नमन क्यों करे उसी प्रकार से सूर्य, वायु, अग्नि,पृथ्वी, पवन आदि भी मनुष्य कि सेवा करते हैं इसलिए सम्मान के योग्य हैं। सूर्य नमस्कार और वन्दे मातरम सम्मान देने के समान है न कि पूजा करना है।
सम्मान करना एवं पूजा करने में भेद को समझने से इस शंका का समाधान सरलता से हो जाता है जिसका श्रेय स्वामी दयानंद को जाता है।
डॉ विवेक आर्य
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