वेदों में विज्ञान
वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है सब सत्य
विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल
परमेश्वर है। आर्यसमाज के इन नियमों के माध्यम से स्वामी दयानंद न केवल वेदों को
सब सत्य विद्या का कोष होने का सन्देश देते है अपितु उसे परमेश्वर द्वारा प्रदत भी
मानते है। स्वामी जी अनुसार वेदों में मानव कल्याण के लिए विज्ञान बीजरूप में
वर्णित है। वेदों में विज्ञान के अनेक प्रारूपों में से एक खगोल विद्या को इस लेख
के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे। विश्व इतिहास में सूर्य, पृथ्वी,
चन्द्रमा
आदि को लेकर अनेक मतमतांतर में अनेक भ्रांतियां प्रसिद्द हैं जो न केवल विज्ञान
विरूद्ध है अपितु कल्पित भी है जैसे पृथ्वी चपटी है, सूर्य का पृथ्वी
के चारों ओर घूमना, सूरज का कीचड़ में डूब जाना, चाँद
के दो टुकड़े होना, पृथ्वी का शेषनाग के सर पर अथवा बैल के सींग पर
अटका होना आदि। इन मान्यताओं की समीक्षा के स्थान पर वेद वर्णित खगोल विद्या को
लिखना इस लेख का मुख्य उद्देश्य रहेगा।
वेदों में विश्व को तीन भागों में विभाजित किया
गया हैं- पृथ्वी, अंतरिक्ष (आकाश) एवं धयो। आकाश का सम्बन्ध बादल, विद्युत और वायु
से हैं, धुलोक का सम्बन्ध सूर्य, चन्द्रमा,गृह और तारों से
हैं।
पृथ्वी गोल है
ऋग्वेद 1/33/8 में पृथ्वी को
आलंकारिक भाषा में गोल बताया गया है। इस मंत्र में सूर्य पृथ्वी को चारों ओर से
अपनी किरणों द्वारा घेरकर सुख का संपादन (जीवन प्रदान) करने वाला बताया गया है। पृथ्वी
अगर गोल होगी तभी उसे चारों और से सूर्य प्रकाश डाल सकता है।
अब कुछ लोग यह शंका
कर सकते है कि पृथ्वी अगर चतुर्भुज होगी तो भी तो उसे चारों दिशा से सूर्य
प्रकाशित कर सकता है।
इस शंका का समाधान यजुर्वेद 23/61-62
मंत्र में वेदों पृथ्वी को अलंकारिक भाषा में गोल सिद्ध करते है।
यजुर्वेद 23/61 में लिखा है कि
इस पृथ्वी का अंत क्या है? इस भुवन का मध्य क्या है? यजुर्वेद
23/62 में इसका उत्तर इस प्रकार से लिखा है कि यह यज्ञवेदी ही पृथ्वी की
अंतिम सीमा है। यह यज्ञ ही भुवन का मध्य है। अर्थात जहाँ खड़े हो वही पृथ्वी का अंत
है तथा यही स्थान भुवन का मध्य है। किसी भी गोल पदार्थ का प्रत्येक बिंदु (स्थान)
ही उसका अंत होता है और वही उसका मध्य होता है। पृथ्वी और भुवन दोनों गोल हैं।
ऋग्वेद 10/22/14 मंत्र में भी
पृथ्वी को बिना हाथ-पैर वाला कहा गया है। बिना हाथ पैर का अलंकारिक अर्थ गोल ही
बनता है। इसी प्रकार से ऋग्वेद 1/185/2 में भी अंतरिक्ष और पृथ्वी को बिना
पैर वाला कहा गया है।
पृथ्वी के भ्रमण का प्रमाण
पृथ्वी को गोल सिद्ध करने के पश्चात प्रश्न यह
है कि पृथ्वी स्थिर है अथवा गतिवान है। वेद पृथ्वी को सदा गतिवान मानते है।
ऋग्वेद 1/185/1 मंत्र में
प्रश्न-उत्तर शैली में प्रश्न पूछा गया है कि पृथ्वी और धुलोक में कौन आगे हैं और
कौन पीछे हैं अथवा कौन ऊपर हैं और कौन नीचे हैं? उत्तर में कहा
गया कि जैसे दिन के पश्चात रात्रि और रात्रि के पश्चात दिन आता ही रहता है,
जैसे
रथ का चक्र ऊपर नीचे होता रहता है वैसे ही धु और पृथ्वी एक दूसरे के ऊपर नीचे हो
रहे हैं अर्थात पृथ्वी सदा गतिमान है।
अथर्ववेद 12/1/52 में लिखा है
वार्षिक गति से (वर्ष भर) पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्र काटकर लौट आती है।
पृथ्वी आदि गृह सूर्य के आकर्षण से बंधे हुए
हैं
ऋग्वेद 10/149/1 मंत्र का देवता
सविता है। यहाँ पर ईश्वर द्वारा पृथ्वी आदि ग्रहों को निराधार आकाश में आकर्षण से
बांधना लिखा है।
ऋग्वेद 1/35/2 मंत्र में
ईश्वर द्वारा अपनी आकर्षण शक्ति से सूर्य, पृथ्वी आदि लोकों को धारण करना लिखा है।
ऋग्वेद 1/35/9 मंत्र में
सूर्य को धुलोक और पृथ्वी को अपने आकर्षण से
स्थित रखने वाला बताया गया है।
ऋग्वेद 1/164/13 में सूर्य को एक
चक्र के मध्य में आधार रूप में बताया गया है एवं पृथ्वी आदि को उस चक्र के चारों
ओर स्थित बताया गया है। वह चक्र स्वयं घूम रहा है एवं बहुत भार वाला अर्थात जिसके
ऊपर सम्पूर्ण भुवन स्थित है , सनातन अर्थात कभी न टूटने वाला बताया
गया है।
चन्द्रमा में प्रकाश का स्रोत्र
ऋग्वेद 1/84/15 में सूर्य
द्वारा पृथ्वी और चन्द्रमा को अपने प्रकाश से प्रकाशित करने वाला बताया गया है।
दिन और रात कैसे होती हैं
ऋग्वेद 1/35/7 में प्रश्नोत्तर शैली में प्रश्न आया है कि यह
सूर्य रात्रि में किधर चला जाता है तो उत्तर मिलता है पृथ्वी के पृष्ठ भाग में चला
जाता है। दिन और रात्रि के होने का यही कारण है।
ऋग्वेद 10/190/2 में लिखा है ईश्वर सूर्य द्वारा दिन और रात को
बनाता हैं।
अथर्ववेद 10/8/23 में लिखा है नित्य ईश्वर के समान दिन और रात्रि
नित्य उत्पन्न होते हैं।
वेद
में काल विभाग
अथर्ववेद 9/9/12 में लिखा है
वर्ष को बारह महीनों वाला कहा गया है।
अथर्ववेद 10/8/4 में लिखा है
ईश्वर द्वारा प्रयोजन के लिए एक वर्ष को बारह मास, ऋतुओं और दिनों
में विभाजित किया गया है।
अथर्ववेद 12/1/36 में वर्ष को 6
ऋतुओं में विभाजित किया गया है।
इस प्रकार से वेदों के अनेक मन्त्रों में खगोल
विज्ञान के दर्शन होते है। वेदों में विज्ञान विषय पर शोध करने की आवश्यकता है।
(नोट- अनेक वैदिक मन्त्रों का भाष्य अनेक
विद्वानों ने अपनी अपनी शैली में किया हैं जिस पर विरोधभास अथवा असहमति कि स्थिति
में बृहत्तर चिंतन करने की आवश्यकता है।)
डॉ विवेक आर्य
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका- स्वामी दयानंद
यजुर्वेद भाष्य- स्वामी दयानंद
ऋग्वेद भाष्य- स्वामी दयानंद
अथर्ववेद भाष्य- विश्वनाथ वेदालंकार
अथर्ववेद भाष्य- पंडित क्षेमकरण दास त्रिवेदी
वैदिक विज्ञान- पंडित शिवशंकर शर्मा काव्यतीर्थ
भूमिका भास्कर- स्वामी विद्यानंद
वेदों के पाठक सावधान- शिव नारायण सिंह गौतम
वेद पथ पत्रिका संपादक ठाकुर अमर सिंह, दिसंबर
1964 का अंक।
वेदों का और अच्छे से अध्ययन करों। तुम्हारे तर्क बिलकुल जाकिर नाईक जैसे है।
ReplyDeleteBhai fact check kar lo
Deleteतो भाई साहब आप ही कृपा करें मन्त्रों के सही अर्थ बताएं।
Deleteअच्छी जानकारी मिली धन्यवाद
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