"पांच हजार साल से सोने वालो जागो"
बिजनौर जनपद में साधारण से दिखने वाले निहाल सिंह सरकारी चौकीदार थे। आपकी अनेक स्थानों पर बदली होती रहती थी। एक बार एक बड़े कस्बें में आपका तबादला हुआ। रात को पहरा देते हुए आप कहते थे "पांच हजार साल से सोने वालो जागो"। आपकी आवाज सुनकर लोग आश्चर्य में पड़ गए क्यूंकि उन्हें जागते रहो की आवाज़ सुनने की आदत थी। एक दिन एक उच्च सरकारी अफसर ने निहाल सिंह को बुलाकर "पांच हजार साल से सोने वालो जागो" का रहस्य पूछा। निहाल सिंह जी ने कहा हुजूर आप मुझे 2 रुपये दीजिये इसका रहस्य बतला दूंगा। अफसर ने अपनी जेब से निकाल कर 2 रुपये निहाल सिंह के हाथ पर रख दिए। निहाल सिंह जेब में रुपये रखकर यह कहकर चल दिए की 15 दिन के पश्चात आप इस रहस्य का अर्थ बताएँगे। आप विश्वास रखे। अफसर चौकीदार के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित थे मगर इस रहस्य को जानने के इच्छुक थे। अत: वे कुछ न बोले। निहाल सिंह ने 2 रुपये वैदिक यंत्रालय भेजकर सत्यार्थ प्रकाश की एक प्रति मँगवाई और उसे 15 दिन पश्चात अफसर को पढ़ने के लिए दे दिया। कुछ महीनों पश्चात उस अफसर ने निहाल सिंह को बुलाकर कहा की आपका प्रचार करने का तरीका बेहद निराला हैं। "पांच हजार साल से सोने वालो जागो" का रहस्य मुझे समझ में आ गया हैं। निश्चित रूप से यह हिन्दू जाति सत्य सनातन वैदिक धर्म को भूलकर पांच हजार वर्षों से सो रही हैं। निहाल सिंह की प्रार्थना पर उस कस्बें में उक्त अफसर ने आर्यसमाज की स्थापना करी। इस प्रकार से बिजनौर जनपद में अनेक आर्यसमाजों की संस्थापना करने का श्रेय निहाल सिंह को जाता हैं।
अगर आप भी पांच हजार साल से सो रहे है तो जागे। स्वामी दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश को पढ़कर अपने जीवन में सत्य का प्रकाश कीजिये।
डॉ विवेक आर्य
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