Thursday, November 7, 2013

गौ रक्षा दिवस ७ नवंबर, १९६६ के शहीदों को नमन




 
(गौ हत्या के विरुद्ध ७ नवंबर १९६६ को संसद भवन के सामने प्रदर्शन करते नागा साधू )

आज ७ नवंबर के दिन सन १९६६ में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगवाने के लिए हज़ारों हिंदुओं ने संसद भवन के आगे प्रदर्शन किया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में निहत्थे हिंदुओं पर गोलियाँ चलवा दी थी जिसमें अनेक गौ भक्तों का बलिदान हुआ था।

गौ माता कि रक्षा में प्राण न्यौछावर करने वाले उन महान शहीदों को नमन। सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं कि समस्त हिन्दू वादी संगठनों, समस्त हिन्दू धर्म गुरुओं ने एक मत से संगठित होकर गौ माता कि बूचड़ खानों में हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने कि माँग कि थी। सबसे बड़ी विडंबना यह हैं कि अपने आपको हिन्दू बहुल देश कहलाने वाले भारत देश में गौ माता को हिंदुओं कि आँखों के सामने मारा जाता हैं और जो हिन्दू इसका प्रतिरोध करते हैं उन्हें सांप्रदायिक, कट्टरवादी, हिन्दू आतंकवादी, अल्पसंख्यक विरोधी और न जाने क्या क्या कहा जाता हैं। जो लोग यह कहते हैं कि गौ हत्या पर प्रतिबन्ध से हिन्दू मुस्लिम सम्बन्धों पर अंतर पड़ता हैं उनके लिए हम एक ही बात कहेगे कि इतिहास हमें बहुत कुछ सिखाता हैं। गौ हत्या पर रोक से हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित होती हैं नाकि वैमनस्य बढ़ता हैं। अकबर ने अपने राज्य कि नीवों को दृढ़ करने के लिए न केवल ईद के दिन गौ कि क़ुरबानी से मना किया था अपितु अपने राज्य में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया था। यह प्रतिबन्ध शाहजहाँ के काल तक लागु रहा था। धर्मान्ध औरंगज़ेब ने विकृत सोच के चलते इस प्रतिबन्ध को हटा दिया इससे हिन्दू जनमानस द्वारा उसे मिलने वाला सहयोग समाप्त हो गया जिसके स्वरुप उसकी राज्य कि नींव दक्कन में वीर शिवाजी, राजपूताने में दुर्गा दास राठोड, बुंदेलखंड में छत्रसाल, पंजाब में सिख गुरुओं ने हिला दी और उसके मृत्यु के पश्चात दुनिया का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य ताश के पत्तो के समान ढह गया। महाराज रणजीत सिंह के कार्यकाल में भी गौ हत्या पर रोक थी। १८५७ में जब बहादुर शाह जफ़र कि अस्थायी सरकार बनी तो उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता के गठजोड़ को मजबूती देने के लिए गौ हत्या पर पाबन्दी लगा दी थी । दरअसल पराधीन भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देना अंग्रेजों का कार्य था। उन्हें मालूम था कि अगर हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में जब तक लड़ाया जाता रहेगा तब तक उनका राज कायम रहेगा। इसलिए उन्होंने गौ हत्या को बढ़ावा दिया। वीर कूकाओं का आंदोलन उसी अत्याचार के विरोध था जिसे अत्यंत विभित्स रूप में दबाया गया था। अंग्रेजों ने कसाइयों को उनकी करनी का दंड देने वाले कूका वीरो को तोप के मुख से बांध कर उड़ा दिया था। अंग्रेजों के ही राज में स्वामी दयानंद ने सर्वप्रथम गौ हत्या रोकने के लिए आंदोलन आरम्भ किया था। १८८१ में स्वामी जी ने गौकरूणानिधि के नाम से पुस्तक प्रकाशित कि थी जिसमें उन्होंने गौ माता से होने वाले लाभ के विषय में बताया था एवं गौ और कृषि कि रक्षा के एक सभा बनाने का विचार प्रस्तुत किया था। अपनी पहल को प्रभावशाली रूप से अंग्रेजों के समक्ष रखने के लिए उन्होंने भारतवासियों के एक करोड़ हस्ताक्षर करवाकर इंग्लैंड कि महारानी विक्टोरिया को भेजने का अभियान आरम्भ किया था. उन्होंने ३.५ लाख हस्ताक्षर एकत्र भी कर लिये थे परन्तु उनकी असमय मृत्यु के कारण यह अभियान रूक गया। इससे भी बढ़कर उन्होंने अंग्रेजों द्वारा पोषित कि जा रही भ्रान्ति का भी यथोचित उत्तर दिया जो वेदों में गौ माँस खाने का, यज्ञ में पशु बली देने के विधान का प्रसार कर रही थी। स्वामी दयानंद ने राष्ट्रपरक वेद भाष्य कर वेदों के मन्त्रों का सत्य अर्थ साधारण जनता के समक्ष प्रस्तुत किया जिससे गौ हत्या का समर्थन करने वाले सभी आलोचकों का मुँह बंद कर दिया। इसके अतिरिक्त स्वामी दयानंद द्वारा अहिरवाल नरेश राव युधिष्ठिर को प्रेरणा देकर भारत कि पहली गौशाला कि स्थापना १८७८ में हुई थी जिससे गौ माता का संरक्षण हो सके। परिणाम स्वरुप भारत भर में अनेक गौ शाला कि स्थापना हुई जिससे गौ माता का रक्षण हुआ। १९६६ में भी सरकार के समक्ष सायण या महीधर का नहीं अपितु स्वामी दयानंद द्वारा किये गये वेद भाष्य को गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए प्रमाण रूप से प्रस्तुत किया गया था।

अंग्रेजी राज में अनेक दंगों का मूल कारण गौ हत्या था। अंग्रेज सरकार चाहती तो इन दंगों को रोक सकती थी। मुस्लिम समाज विशेष रूप से ईद के दिन क़ुरबानी करने के लिए गौ का जुलूस हिन्दू मोहल्लो से निकालता था जिससे शान्ति भंग होती अंत में दंगे हो जाते थे। हिन्दू समाज के अनेक वीरों ने गौ हत्या कि रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर स्वधर्म निभाया। १९४७ के पश्चात भारत देश में हिन्दू मान्यताओं को प्राथमिकता देने के नाम पर सेकुलरता के नाम पर मुसलमानों को रिझाने का कार्य यथावत चालू रखा गया जिसके स्वरुप गौ माता कि हत्या पर प्रतिबन्ध अल्पसंख्यक मुसलमानों कि धार्मिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात था। ध्यान दीजिये हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए गौरक्षा आवश्यक हैं। इतिहास इस बात का प्रमाण हैं। सभी ने अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने में होड़ लगाई किसी ने बहुसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों कि चिंता नहीं करी। और जब जब गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने कि माँग कि गई उसे निर्दयता से कुचल दिया गया। यह कमी किसकी हैं। यह कमी हिंदुओं कि ही हैं क्यूंकि उनमें एकता का अभाव हैं। आइये आज गौ रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले महान शहीदों से प्रेरणा लेकर एक होने का संकल्प ले। तभी आर्य हिन्दू जाति का उद्धार हो सकेगा।

देख तेरे देश में बापू हो रहा गौ का कत्लेआम
उसे देख क्यूँ नहीं निकलता तेरे मुख से 'हे राम'
अपनी माता का कैसे तू देख पाता हैं प्राण घात
गौहत्या करने वाला हैं हर कोई हैं जाति घात
गौ हत्या पर इस देश के दो टुकड़े जब हैं हो चुके
फिर गौ पर तलवार चलाने वाले हाथ क्यूँ नहीं रुके
आज जोर से पूछ रही हैं ये भारत कि गौ प्रेमी जनता
क्यूँ देश के हर घर में गौपाष्टमी का दिन नहीं बनता
हर बात के लिए अगर देखा जायेगा शरीयत कि ओर
तब तो हम भी बोलेगे कि लौट चलो अपने वेदों कि ओर
आपको जानना होगा कि वेदों में गोहत्या कि क्या हैं सजा
गोघातक को गोली से उड़ा देना हैं उस मालिक कि रजा
देश कि शांति न हो भंग क्यूंकि हम हैं शांति के पुजारी
इसलिए हैं नेताओं सुन लो यह छोटी सी गुजारिश हमारी
गौ का मानता हैं हर हिन्दू माता के समान इस देश में
"विवेक" कहे कि हिंदुओं को मिले उनका हक हर वेश में
 
डॉ विवेक आर्य

1 comment:

  1. but i have seen my hindu friend have cow and they sell milk for extra income.
    the strange thing is they inject syringe to give milk when she dont give milk .and there is huge wound .not only they other milkman also do the same thing .i dont know this practice is happening in your area or not.one side it os sin to kill cow other side they dont hesitate to torture to give .is yhis the justice in hindusim for cows

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