कौन ऐसा भारतीय है जो रामायण महाकाव्य और रचियता आदि कवि वाल्मीकि से परिचित न हो ? रामायण हम भारतियों के प्राण है। उसकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही व्यवहारिक है जितनी की प्राचीन काल में थी। उसमें जीवन की गहन और गम्भीर समस्यों का सुलझा हुआ स्वरुप दृष्टिगोचर होता है। एक ओर श्री राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श शिष्य, आदर्श पति, आदर्श सेवक एवं आदर्श राजा हैं वही दूसरी ओर सीता आदर्श पत्नी, आदर्श वधु, आदर्श भाभी और आदर्श नारी हैं। जहाँ एक ओर आदर्श माता के रूप में कौशलया का चित्रण है, वही दूसरी ओर आदर्श भाई के रूप में लक्ष्मण का वर्णन है। जहाँ एक ओर भारत जैसे तपस्वी आदर्श अनुज का वर्णन है वही दूसरी और हनुमान जैसे आदर्श सेवक का वर्णन है। जहाँ एक ओर सुग्रीव जैसे आदर्श सहयोगी का वर्णन है वही दूसरी ओर जटाऊ जैसे आदर्श त्यागी का भी वर्णन है। रामायण में क्या नहीं हैं? जीवनदर्शन है, जीवन का सार है। तात्पर्य यह है कि रामायण में हमें जीवन जीने के लिए उच्चतम आचार के दृष्टान्त मिलते हैं। रामायण से पूर्वकाल में जनमानस को प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला, आज भी मिल रहा है और आगे भी मिलता रहेगा।
आज प्राप्त रामायण के विभिन्न संस्करणों में कुछ कुछ भिन्नता हैं। इस समय प्राप्त रामायण में ७ कांड हैं- बाल कांड, अयोध्याय कांड, अरण्य कांड, किष्किन्धा कांड, सुंदर कांड, युद्ध कांड और उत्तर कांड।
सबसे अधिक विवादस्पद उत्तर कांड को माना जाता हैं क्यूंकि इस कांड में श्री राम का अंतिम जीवन, सीता कि निंदा और वन गमन, सीता शोक, लव कुश का जन्म, शम्बूक वध आदि वर्णित हैं।
उत्तर कांड के प्रक्षिप्त होने के कारण
१. छठे कांड को समाप्त करते समय कवि वाल्मीकि ने फलश्रुति रावणवध के साथ रामायण का अंत कर दिया हैं, फिर सातवें कांड के अंत में दोबारा से फलश्रुति का होने संदेहजनक है। क्यूंकि एक ही ग्रन्थ में दो फलश्रुति नहीं होती।
२. श्री रामचंद्र जी को आरंम्भ के ६ कांडों में (कुछ एक प्रक्षिप्त श्लोकों को छोड़कर) वीर महापुरुष दर्शित किया गया है। केवल सातवें में उन्हें विष्णु का अवतार दर्शाया गया है। जोकि विषयांतर होने के कारण प्रक्षिप्त सिद्ध होता है।
३. सातवें कांड में ऐसे अनेक उपाख्यान है जिनका रामायण कि मूल कथा से किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं है। जैसे ययाति नहुष कि कथा, वृत्र वध, उर्वशी-पुरुरवा कि कथा आदि। रावण और अन्य राक्षसों का वध पहले ही हो चूका था फिर सातवें कांड में रावण का इंद्र से युद्ध, राक्षसों कि उत्पत्ति का वर्णन हैं। हनुमान राम मिलन पहले ही हो चूका था फिर सातवें कांड में हनुमान के यौवन काल का उल्लेख अप्रासंगिक प्रतीत होता हैं।
४. सीता कि अग्निपरीक्षा एवं वन निर्वासन कि घटना का वर्णन सातवें कांड में मिलता है। अगर समग्र रूप से सम्पूर्ण रामायण को देखे तो हमें यही सन्देश मिलता है कि श्री रामचंद्र जी ने अपनी पत्नी सीता का अपहरण करने वाले दुष्ट रावण को खोजकर उसे यथोचित दंड दिया। उस काल कि सामाजिक मर्यादा भी देखिये कि सीता का अपहरण करने के बाद भी रावण में इतना शिष्टाचार था कि बिना सीता कि अनुमति के रावण कि सीता को स्पर्श करने का साहस न हुआ। फिर यह कैसे सम्भव है कि मर्यादापुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी महाराज जो उस काल में आर्य शिरोमणि कहे जाते थे, सीता पर एक अज्ञानी के समान शक करते, अग्निपरीक्षा करवाते, प्रतिज्ञा करवाते, धोबी के कहने पर वन में जाने का आदेश देते हैं। रामायण में पहले से लेकर छठे कांड तक नारी जाति के सामाजिक अधिकारों का वर्णन प्रभावशाली रूप में मिलता हैं जैसे कौशलया का महलों में रहकर वेद पढ़ना एवं अग्निहोत्र करना, कैकई का दशरथ के साथ सारथि बनकर युद्ध में भाग लेना, सीता द्वारा शिक्षा ग्रहण कर स्वयंवर द्वारा अपने वर को चुनना आदि। नारी के इस सम्मानजनक स्थान के ठीक विपरीत सातवें कांड में पुरुष द्वारा नारी जाति पर संदेह करना, उसकी परीक्षा करना, उसे घर से निष्काशित करना यही दर्शाता है कि मध्य काल में जब नारी को हेय कि वस्तु समझा जाता था। यह उसी काल का प्रक्षेप किया गया है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि रामायण का उत्तर कांड प्रक्षिप्त है।
५. विदेशी विद्वान हरमन जैकोबी अपनी पुस्तक दास रामायण (Das Ramayan) में लिखते हैं कि "जैसे हमारे अनेक पूजनीय पुराने गिरिजाघरों में एक नई पीढ़ी ने कुछ न कुछ नया भाग बढ़ा दिया है और कुछ पुराने भाग कि मरम्मत करवा दी है और फिर भी असली गिरिजाघर कि रचना को नष्ट नहीं होने दिया है। इसी प्रकार भाटों के अनेक पीढ़ियों ने असली रामायण में बहुत कुछ बढ़ा दिया है, जिसका एक एक अवयव अन्वेषण के आँख से छुपा हुआ नहीं है। " जैकोबी साहिब भी स्पष्ट रूप से रामायण में प्रक्षिप्त भाग को मान रहे हैं।
६. एक और रामायण में श्री राम का केवट, निषाद राज, भीलनी शबरी के साथ बिना किसी भेद भाव के साथ सद व्यवहार है। वही दूसरी और सातवें कांड में शम्बूक पर शुद्र होने के कारण अत्याचार का वर्णन है। दोनों बातें आपस में मेल नहीं खाती इसलिए इससे यही सिद्ध होता है कि शम्बूक वध वाली उत्तर कांड कि कथा प्रक्षिप्त अर्थात मिलावटी है।
इस प्रकार से अन्य उदहारण उत्तर कांड को प्रक्षिप्त सिद्ध करने के लिए दिए जा सकते हैं। उत्तर कांड श्री रामचंद्र जी के महान रामायण का उनके गुणों के विपरीत होने के कारण भी अंग नहीं हैं।
डॉ विवेक आर्य
Elora ke Mandir ki deewar par Mahabharat aur Ramayan ke chitra hai
ReplyDeletepar Ramayan kewal Yudh kand tak hi hai
yani Mullo ke aane ke baad sab hua
Even in malaysia in a hindu temple ramayan is described through 200 paintings, it ends at 6 th kand shpwing killing of demon rawan and returning of Lord Ram with Lord Sita.
DeleteThank you for providing this result of your research on Ramayana. Most of the people don't know the reality of 7th chapter of Valmiki Ramayana.
ReplyDeleteThanks for Appreciation
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