Saturday, August 31, 2019

रंग कुमारी पर बुरी नजर डाली तो बादशाह अकबर की जूतों से हुई पिटाई: इतिहास जो आपसे छिपाया गया



रंग कुमारी पर बुरी नजर डाली तो बादशाह अकबर की जूतों से हुई पिटाई: इतिहास जो आपसे छिपाया गया

-अनुपम कुमार सिंह

सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह युद्धनीति में भी पारंगत थे और उनका मानना था कि कला-संस्कृति के साथ-साथ लोगों को युद्धकला का भी प्रशिक्षण मिलना चाहिए। वे खालसा के लिए ऐसे लोग चाहते थे, जो अपना जीवन क़ुर्बान करने में भी नहीं हिचकें। सिखों के पवित्र पुस्तकों में से एक ‘दशम ग्रन्थ’ के रचयिता भी गुरु गोविन्द सिंह को माना गया है। ‘चरित्रोपाख्यान’ इसी दशम ग्रन्थ का एक भाग है, जिसमें कई ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियाँ हैं। इन कहानियों में एक ऐसी कहानी है, जो 16वीं सदी में हिंदुस्तान पर राज़ करने वाले अकबर से जुड़ी है।

इन कहानियों से सीख मिलती है। सिख धर्म-ग्रंथों के ज्ञाता प्रीतपाल सिंह बिंद्रा ने ‘चरित्रोपाख्यान’ को अंग्रेजी में अनुवादित किया था। भारत और लंदन के स्कूलों में पढ़ाने वाले बिंद्रा ने पंजाब यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा किया था। पुरानी पवित्र पुस्तकों को पढ़ने में उनकी इतनी रूचि थी कि उन्होंने अपने व्यापार को बेच कर इन पुस्तकों का अध्ययन और अनुवाद को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया।

अब बात ‘शहंशाह’ अकबर की। नरमुंडों का पहाड़ खड़ा कर के दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले अकबर को सेक्युलर इंडिया का नायक बताया जाता है। हमें पढ़ाया गया है कि कैसे अकबर के दरबार में कई हिन्दू विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काबिज थे। अब यह सच में अकबर की विचारधारा थी या फिर चतुर नीति, इस पर बहस होती रही है। लेकिन, अकबर से जुड़ी कई बातें छिपाई भी गई हैं। चित्तौड़ पर अकबर के आक्रमण से लेकर महिलाओं के प्रति उसके रवैये तक, कई बातें आज भी छिपा कर रखी गई हैं।

सिख ग्रन्थ ‘श्री चरित्रोपाख्यान’ में ऐसी-ऐसी कहानियाँ हैं, जिसे पढ़ने के बाद व्यक्ति दूसरों की ग़लतियों से सीख सकता है। 404 कहानियों के इस सेट की सिख धर्म में काफ़ी मान्यता है। इसमें अकबर से जुड़ी जो कहानी है उससे अकबर के ठरकपन और चरित्र के बारे में पता चलता है। अब चूँकि आपको इस बारे में न के बराबर पता होगा, हम आपके लिए इस कहानी को पेश कर रहे हैं। यह ‘चरित्रोपाख्यान’ की 185वीं कहानी है।

चरित्रोपाख्यान: अकबर और रंग कुमारी की कहानी
आगरा स्थित अकबराबाद में एक साहूकार रहा करता था। रंग कुमारी उसी की बेटी थी। कहते हैं उसका सौंदर्य ऐसा था कि जो भी एक बार देख ले मोहित हो जाता। उस समय आगरा अकबर की राजधानी थी और वह वहीं से शासन चलाया करता था। वह फतेहपुर सीकरी में अपना दरबार लगाया करता था। अकबर को शिकार का शौक था और वह अक्सर शिकार खेलने जाया करता था।

एक बार शिकार खेलने के दौरान ही अकबर की नज़र रंग कुमारी पर पड़ी और वह तुरंत ही उस पर मोहित हो गया। अकबर उसे हर हाल में पाना चाहता था। अकबर के बारे में पुस्तक लिख चुके डर्क कोलियर कहते हैं कि अकबर के महल में कम से कम 5000 महिलाएँ होती ही होती थीं। बेल्जियम के लेखक के अनुसार, अकबर अनगिनत महिलाओं के साथ सो चुका था और यह सब तभी शुरू हो गया था जब वह काफ़ी कम उम्र का था। इतिहासकारों की मानें तो अकबर की 300 के क़रीब पत्नियाँ थीं।

अकबर ने कई राजपूत राजघरानों की लड़कियों से शादी कर रखी थी। ख़ैर, वापस रंग कुमारी की कहानी पर आएँ तो अकबर ने अपनी एक दासी को उसके पास भेजा। वह दासी अकबर का सन्देश लेकर रंग कुमार के पास गई। सन्देश यही था कि अकबर ने रंग कुमारी को अपने महल में बुलाया है। रंग कुमारी चालाक महिला थीं। उन्होंने अकबर के पास जाना स्वीकार नहीं किया, लेकिन वह जानती थीं कि वह एक शक्तिशाली बादशाह है। इसीलिए, रंग कुमारी ने अकबर को अपने घर पर बुलाया।

दासी ने अकबर को जाकर रंग कुमारी का सन्देश कहा। जब अकबर रंग कुमारी के पास पहुँचा तो वह बिस्तर लगा रही थी। फिर क्या था, अकबर की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसे लगा कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो रहा है। लेकिन, रंग कुमारी भी पतिव्रता हिन्दू महिला थीं। रंग कुमारी ने अकबर को काफ़ी इज्जत दी। बिस्तर लगाने के बाद अकबर से कहा कि वह शौचालय से निपट कर आना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वह जल्दी ही आ जाएँगी।

शौचालय जाने के बहाने निकली रंगा कुमारी ने दरवाजा तेज़ी से बंद कर दिया और इस तरह से अकबर अंदर कमरे में ही क़ैद हो गया। इसके बाद कुमारी अपने पति को लेकर उस कमरे में आ गईं। अपनी पत्नी के साथ छेड़छाड़ से क्रुद्ध रंग कुमारी के पति ने गुस्से में न सिर्फ़ अकबर के ताज को ज़मीन पर पटक कर अपने पैरों तले रौंद डाला बल्कि अपना जूता निकाल कर अकबर को कई जूते लगाए भी।

बादशाह अकबर अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा के डर से यह सब बर्दाश्त करता रहा। कहीं न कहीं उसके मन में यह एहसास भी हो गया कि उसने ग़लत किया है। लज्जा के मारे वह चुपचाप खड़ा रहा। इसके बाद रंग कुमारी और उसके पति ने मिल कर अकबर को एक भू-गर्भित कालकोठरी में क़ैद कर दिया। हिंदुस्तान का बादशाह होकर औरतों पर ग़लत नज़र डालने वाले अकबर की ये कहानी शायद ही कहीं और पढ़ी-पढ़ाई गई हो।

अगले दिन की सुबह होते ही पति-पत्नी अकबर को लेकर शहर के क़ाज़ी के पास पहुँचे। न्यायालय में रंग कुमारी और उसके पति ने अकबर के कुकृत्यों को बताने के बाद कहा, “यह एक संत है, चोर है, साहूकार है या फिर बादशाह है, आप ख़ुद पता कर लीजिए।” इतना कह कर निकल गए। लज्जा के मारे अकबर का सिर ऊपर उठ ही नहीं रहा था। पूरे प्रकरण के दौरान वह सिर झुकाए खड़ा रहा।

‘चरित्रोपाख्यान’ में पूछा गया है कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह से पराई स्त्री पर नज़र डालता है और उसके घर में घुस जाता है, क्या उसे दण्डित नहीं किया जाना चाहिए? बादशाह अकबर को इस घटना के बाद अच्छी सीख मिली और उसके बाद उसने किसी पराई स्त्री के घर में घुसना बंद कर दिया। उपर्युक्त कहानी सिख ग्रन्थ ‘चरित्रोपाख्यान’ में वर्णित है, जिसके रचयिता गुरु गोविन्द सिंह माने गए हैं।

अब सवाल यह उठता है कि प्राचीन पुस्तकों में जब अकबर के बारे में ऐसा वर्णित है तो इस बारे में कोई चर्चा क्यों नहीं करता? अकबर ‘महान’ के कथित सेक्युलर चरित्र का गुणगान करते हुए उसे भारत का नायक के रूप में पेश करने वाले वामपंथी इतिहासकारों ने अकबर के नेगेटिव पक्ष को इस तरह से छिपाया, जैसे उसे सीधा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के समकक्ष खड़ा करने की कोशिश की जा रही हो। ऐसे गिरोह विशेष के इतिहासकारों को ‘दीन-ए-इलाही’ मज़हब अपनाकर फतेहपुर सिकरी में नंगा नाचना चाहिए, शायद अकबर उन्हें भी अपने पास बुला ले।

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