Friday, August 30, 2019

स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार है



*◼️स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार है◼️*

✍🏻 लेखक - प्रो० उमाकान्त उपाध्याय (आर्य समाज कलकत्ता)
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
(आर्य संसार - १९९४ से संकलित)
कलकत्ता आर्य समाज की ओर से विज्ञप्ति
[पुरी के शङ्कराचार्य श्री निश्चलानन्द जी ने कलकत्ता में एक महिला को वेदपाठ करने से रोक दिया। यह बड़ा अशोभनीय आत्मघाती कार्य था । कलकत्ता में इससे उग्र चर्चा उठ खड़ी हुई । महिलाओं का वेदाधिकार तो आर्यसमाज का सीधा मोर्चा है । हमने आर्य समाज की ओर से प्रेस कान्फ्रेन्स की । अच्छी संख्या में प्रेस वाले आर्यसमाज में आये और हमारी विज्ञप्ति का अच्छा स्वागत हुआ । उ०प्र० गुजरात आदि प्रान्तों से भी हमारे चैलेन्ज के प्रकाशन के समाचार आये हैं । हम अपनी विज्ञप्ति को अविकल छाप रहे हैं।-सम्पादक]
पुरी के शंकराचार्य श्री स्वामी निश्चलानन्द जी सरस्वती ने कलकत्ता इन्स्टीच्यूट हॉल में रविवार १६ जनवरी १९९४ को शारदेश्वरी आश्रम के पुरोगम में श्रीमती अरुन्धती राय चौधरी को वेद मन्त्र पढ़ने से मना कर दिया । स्वाभाविक है कि इससे प्रबुद्ध उदार वर्ग में और विशेषरूप से महिलाओं में क्षोभ उत्पन्न हुआ । श्री स्वामी निश्चलानन्द जी का यह मत है कि वेदों में स्त्रियों को वेद पढ़ने का निषेध किया गया है । यह भी समाचार छपा है कि प्रसिद्ध वैदिक विदुषी श्रीमती सुकुमारी भट्टाचार्या ने यह स्वीकार किया कि वेदों में स्त्रियों के वेदाधिकार का निषेध है । अतः सुकुमारी जी ने यह भी कहा कि वेद का २०वीं शताब्दी में इतना क्या औचित्य है कि उसका प्रत्येक शब्द स्वीकार किया जाय । स्वामी निश्चलानन्द जी शंकराचार्य ने यह भी कहा कि स्त्रियों का उपनयन संस्कार नहीं होता अतः उन्हें वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है।
*◼️प्रमाण-हीन-वक्तव्य* - स्वामी शंकराचार्य जी ने या श्रीमती सुकुमारी भट्टाचार्य जी ने यह नहीं बताया किस वेद में स्त्रियों के वेदाधिकार का निषेध कहाँ है । हम बड़े आदर के साथ नम्रतापूर्वक इन धर्माचार्यों और विद्वानों की सेवा में श्रद्धापूर्वक निवेदन करना चाहते हैं कि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चारों संहिताओं में कहीं एक भी मन्त्र या मन्त्रांश ऐसा नहीं है जो स्त्रियों के वेद पढ़ने का निषेध करता हो । हम बड़ी नम्रता से, किन्तु सत्य की रक्षा के लिये अत्यन्त सबल शब्दों में बड़ी दृढ़ता से यह कहना चाहते हैं, कि चारों वेदों में कहीं भी स्त्रियों के वेदाधिकार का निषेध हमें नहीं मिला है। हमने आर्यसमाज के और अन्य व्यक्तिगत परिवारों के वेद पारायण महायज्ञों के प्रसंग में कई बार चारों वेदों का पारायण पाठ किया है । आज तक शताधिक वेद पारायण यज्ञों में वेद पाठ करता रहा हूँ। बीस सहस्र से भी अधिक संहिता मन्त्रों में कहीं भी स्त्रियों के वेदाधिकार के निषेध की गन्ध भी नहीं है । मैं व्यक्तिगत रूप से अपने अध्ययन और पाठ के आधार पर यह तथ्य सत्यापित कर रहा हूँ।
🔥"सा मा सत्योक्तिः परिपातु विश्वतः" ऋ०७।८।१२।२
वेद भगवान की सत्यउक्ति हमारी सब प्रकार रक्षा करें ।
*◼️मानवमात्र को वेदाधिकार* - मंध्यकाल में जब बहुत प्रकार के अनाष मिथ्या और साम्प्रदायिक मतवाद प्रचलित होने लगे तो कर्म काण्ड के अनार्ष ग्रन्थों में 'न स्त्री शूद्रौ, वेदमधीयाताम ।' और 'स्त्री शूद्र द्विज बन्धूनामन्त्रयी न श्रुति गोचरा' जैसी उक्तियाँ और विधान प्रचलित हुये । यह भारतीय संस्कृति और वैदिक परम्परा का अन्धकारपूर्ण युग था । वेद मनुष्य मात्र के लिये है । वेद परमेश्वर की वाणी हैं । जैसे पृथ्वी, जल, वायु, सूर्य, आकाश परमेश्वर निर्मित है और मनुष्यमात्र के लिये है, उसी प्रकार वेद भी परमेश्वर की वाणी होने के कारण मनुष्यमात्र के लिये है। प्रसिद्ध वेदोद्धारक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने यजुर्वेद के २६वें अध्याय के दूसरे मन्त्र का प्रमाण देकर कहा -
🔥“यथेमां वाचं कल्याणीमवदानि जनेभ्यः।
ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्रायचार्याय च स्वाय चारणाय॥"
अर्थात् – परमेश्वर उपदेश करते हैं कि जैसे मैं सब मनुष्यों के लिये इस कल्याणी वेदवाणी का उपदेश करता हूँ वैसे सब मनुष्य किया करें । इसमें प्रजनेभ्यः शब्द तो है ही वैश्य, शूद्र और अति शूद्र आदि की गणना भी आ गई है । यह बड़ा सुस्पष्ट प्रमाण है । वेद के विद्वानों ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के इस अद्भुत प्रमाण का हृदय खोल कर देश और विदेश में स्वागत किया । उस अन्धकार युग में यह वेद का सूर्यवत् प्रकाश था । कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध वेद विद्वान श्री सत्यव्रत सामश्रमी ने अपने अति सम्मानित ग्रन्थ "ऐतरेयालोचन'' में लिखा है कि स्वामी दयानन्द ने मनुष्य मात्र के वेदाधिकार में साक्षात वेदमन्त्र का प्रमाण प्रस्तुत कर दिया है ।
*विश्व विख्यात विचारक, और समालोचक रोमा रोलाँ ने स्वामी दयानन्द को यह कहकर श्रद्धांजलि दी है कि सचमुच वह दिन भारत के लिये एक नव युग के निर्माण का दिन था जब स्वामी दयानन्द ने एक ब्राह्मण संन्यासी होकर भी सैकड़ों वर्षों से ताला में बन्द वेदों को मनुष्य मात्र के पढ़ने के अधिकार का प्रतिपादन किया।*
स्वामी दयानन्द जी ने तो आर्य समाज के नियमों में एक नियम ही बना दिया कि वेद का पढ़ना पढ़ाना परम धर्म है । आज स्वामी निश्चलानन्द जी जो भी कहें कहने में स्वतंत्र हैं किन्तु आज के दिन दर्जनों कन्या गुरुकुलों में हजारों छात्रायें वेद पढ़ रही हैं और सैकड़ों वेद विद्या की गम्भीर विदुषियाँ, आचार्याएँ वेद पढ़ा रही हैं।
*◼️प्राचीन काल में वेद विदुषी महिलाएँ* - ऋषि मन्त्रद्रष्टा होते हैं, ऋषिकायें भी मन्त्रद्रष्टा होती हैं । लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी इत्यादि कई इतिहास प्रसिद्ध ऋषिकायें हैं । सोलह ऋषिकाएँ ऋग्वेद में हैं।
संस्कारों में स्त्रियाँ मन्त्र पाठ करती थीं 🔥“इमं मन्त्रं पत्नी पठेत्” ऐसा कर्मकाण्ड के ग्रन्थों में निर्देश है अतः स्त्री का मन्त्र पाठ स्वतः सिद्ध है।
*◼️कन्याओं का उपनयन* - कन्याओं का भी उपनयन होता था और आज भी बहुत सारे वैदिक परिवारों में कन्याओं का उपनयन होता है
और स्त्रियाँ यज्ञोपवीत पहनती हैं । सन्ध्या अग्नि होत्र करती हैं वेदपाठ भी करती हैं । निर्णय सिन्धु तृतीय परिच्छेद में लिखा है -
🔥"पुराकल्पेतु नारीणा नौञ्जीबन्धनमिष्यते। अध्ययनंच वेदानां भिक्षाचर्यं तथैव च॥"
इसमें यज्ञोपवीत और वेदों का अध्ययन दोनों का विधान है।
शंकराचार्य निश्चलानन्द सरस्वती जी कैसे विरोध करते हैं यह वहीं जाने।
हारीत संहिता में दो प्रकार की स्त्रियों का उल्लेख हैं -
◼️(१) ब्रह्मवादिनी
◼️(२) सद्योवधू ।
ब्रह्मवादिनी - 🔥तत्र ब्रह्मवादिनीनाम् उपनयनं अग्निबधनं वेदाध्ययनं स्वगृहे भिक्षा इति।
पराशर संहिता के अनुसार ब्रह्मवादिनी स्त्रियों का उपनयन होता है, वे अग्नि होत्र करती हैं, वेदाध्ययन करती हैं और अपने परिवार में भिक्षावृत्ति करती हैं।
सद्योबधू- 🔥‘सद्योबधूनां तू उपस्थिते विवाहे कथंचित् उपनयनं कृत्वा विवाहः कार्यः।' - सद्योवधू वे स्त्रियाँ हैं जिनका विवाह के समय उपनयन करके विवाह कर दिया जाता है। जैसा आजकल पुरुषों के विवाह में कई जगह होता है।
*◼️वेद में उपनीता स्त्री* - ऋग्वेद के मण्डल १० सूक्त १०९ मन्त्र ४ में लिखा है - 🔥“भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता” यहाँ उपनीता जाया बहुत सुस्पष्ट है।
आचार्या और उपाध्याया वे स्त्रियाँ है, जो स्वयं पढ़ाती हैं नहीं तो आचार्य की स्त्री आचार्यानी और उपाध्याय की स्त्री उपाध्यायानी कहलाती हैं।
शंकर दिग्विजय में मण्डन मिश्र की पत्नी भारती देवी के विषय में लिखा है -
🔥'शास्त्रणि सर्वाणिषडवेदान् काव्यादिकान्वेत्ति यदत्र सर्वम्।'
इसमें भारती देवी के षडङ्गवेदाध्ययन की बात सुस्पष्ट है।
*◼️कौशल्या का अग्निहोत्र* - अग्निहोत्र में वेदमन्त्र बोले जाते हैं और कौशल्या अग्निहोत्र करती थी बाल्मीकि रामायण में अयोध्या काण्ड अः २०-१५ श्लोक में द्रष्टव्य है -
🔥साक्षौमवसना हृष्टा नित्यं व्रतपरायणा।
अग्नि जहोतिस्म तदा मन्त्रवत्कृतमज्जला।।
कौशल्या रेशमी वस्त्र पहने हुए व्रत पारायण होकर प्रसन्न मुद्रा में मन्त्र पूर्वक अग्निहोत्र कर रही थी। इसी प्रकार अयोध्या काण्ड आ० २५ श्लोक ४६ में कौशल्या के यथाविधि स्वतिवाचन का भी वर्णन है।
*◼️सीता की सन्ध्या* - लंका में हनुमान सीता को खोजते हुए अशोक वाटिका में गये किन्तु उन्हें सीता न मिली । हनुमान ने वहाँ एक पवित्र जल वाली नदी को देखा । हनुमान को निश्चय था कि यदि सीता यहाँ होगी तो सन्ध्या का समय आ गया है और सीता यहाँ सन्ध्या करने के लिये अवश्य आयेंगी। सुन्दरकाण्ड अ० १४, श्लोक ४९ में लिखा है -
🔥सन्ध्याकालमनाः श्यामा ध्रुवमेष्यति जानकी।
नदींचेमांशुभजला सध्यार्थ वरवर्णिनी॥
अर्थात् वर वर्णिनी सीता इस शुभ जल वाली नदी पर सन्ध्या करने के निमित्ति अवश्य आयेंगी।
इस छोटे से प्रयास में हमने साक्षात् वेद वचन उद्धृत करके यह प्रमाण दे दिया है कि वेद मनुष्य मात्र के लिये हैं और 🔥'धर्मजिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः' धर्म के लिये वेद परम प्रमाण हैं । किसी वेद संहिता में या वैदिक ऋषि कृत ग्रन्थ में स्त्रियों के वेद पढ़ने का निषेध नहीं है । वेदों की लोपामुद्रा, गार्गी, भारती आदि स्त्रियाँ विदुषी थीं और वेद पढ़ी थीं। आज भी वेद पढ़ती हैं ।
*◼️आर्य समाज का आह्वाहन* -आर्य समाज सदा शास्त्र विचार के लिये श्रद्धा और आदर पूर्वक प्रस्तुत है । हम विदुषी वेद की आचार्या स्त्रियों को ही शास्त्र विचार के लिये किसी भी समय बुला लेंगे और विदुषी स्त्रियाँ ही वेद शास्त्रों के प्रमाणों से यह सिद्ध कर देने को प्रस्तुत हैं कि पुरुषों के समान ही स्त्रियों को भी वेदाधिकार है । हम बड़े आदर और प्रेम से जगतगुरु स्वामी निश्चलानन्द जी सरस्वती पुरी के शंकराचार्य से प्रार्थना करते हैं कि वे कोई प्रमाण वेद संहिताओं से स्त्रियों के वेद पाठ के अनाधिकार के लिये प्रस्तुत करें । हम और वेद भक्त नारियां उनको प्रमाण देने के लिये आह्वान करते हैं - 🔥सत्यमेव जयते ना नृतम्।
✍🏻 लेखक - प्रो० उमाकान्त उपाध्याय (आर्य समाज कलकत्ता)
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*
॥ओ३म्॥

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