Wednesday, November 21, 2018

चौधरी छोटू राम



चौधरी छोटू राम
जन्म दिवस 24 नवम्बर .... नमन,
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सर छोटूराम जी का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम जी का असली नाम राय रिछपाल था। अपने भाइयों में से सबसे छोटे थे इसलिए सारे परिवार के लोग इन्हें छोटू कहकर पुकारते थे।
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विद्यार्थी छोटूराम --
चौधरी छोटूराम ने सेंट स्टीफन जैसे कॉलेज से ग्रेजुएशन करते हुए भी संस्कृत को अपना विषय रखा था। छोटूराम जी ने स्टीफेन में प्रवेश लेते समय Religion के कोलम में अपने आपको वैदिक धर्मी लिखा। स्टीफेन के प्रिंसिपल रुद्र से छोटूराम जी से उसे बदल कर हिन्दू भरने का विकल्प दिया। छोटूराम जी ने कहा मेरी वैदिक धर्म में आस्था है। मैं वैदिक धर्म ही लिखना पसंद करूँगा।
छोटूराम जी ने अपने जीवन के आरंभिक समय में ही सर्वोत्तम आदर्शों और युवा चरित्रवान छात्र के रूप में वैदिक धर्म और आर्यसमाज में अपनी आस्था बना ली थी।
एडवोकेट छोटूराम
चौधरी छोटूराम, लाला श्याम लाल और उनके तीन वकील साथियों, नवल सिंह, लाला लालचंद जैन और खान मुश्ताक हुसैन ने रोहतक में एक ऐतिहासिक जलसे में मार्शल के दिनों में साम्राज्यशाही द्वारा किए गए अत्याचारों की घोर निंदा की। सारे इलाके में एक भूचाल सा आ गया। अंग्रेजी हुकमरानों की नींद उड़ गई। चौधरी छोटूराम व इनके साथियों को नौकरशाही ने अपने रोष का निशाना बना दिया और कारण बताओ नोटिस जारी किए गए कि क्यों न इनके वकालत के लाइसेंस रद्द कर दिये जायें। मुकदमा बहुत दिनों तक सैशन की अदालत में चलता रहा और आखिर चौधरी छोटूराम की जीत हुई।
नेता छोटूराम
अगस्त 1920 में चौ. छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी क्योंकि चौधरी साहब गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे। उनका विचार था कि इस आंदोलन से किसानों का हित नहीं होगा। उनका मत था कि आजादी की लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़ी जाए।
चौधरी छोटूराम ने कांग्रेस से अलग होने के बाद जब सर फजली हुसैन और सिकन्दर हयात खान, सुरजीत सिंह मजीठिया, जोगिन्दर सिंह के साथ मिलकर जब युनियनिष्ट पार्टी बनाई थी तो उसका उद्देश्य सिर्फ किसान और मजदूर वर्ग का शोषण रोकना था। उस वक्त सयुंक्त पंजाब क्षेत्र में हिन्दू और सिखों के अलावा मुस्लिम जाट भी प्रमुख किसान जाति थी। सिकन्दर हयात खान जहाँ खुद को पंजाबी पहले और मुस्लिम बाद में कहता था वहीँ फजली हुसैन ने तो अंत तक जिन्ना की 2 नेशन थ्योरी का घोर विरोध किया था। युनियनिष्ट पार्टी के कारण ही पंजाब में 20वीं सदी के चौथे दशक के अंत तक मुस्लिम लीग जैसी कट्टर और अलगाववादी विचारधारा वाली इस्लामी पार्टी बिलकुल पैठ नहीं बना पाई थी। अंग्रेजों के शाशनकाल के दौरान 1937 में हुए चुनाव में युनियनिष्ट पार्टी को 99 जबकि कांग्रेस को केवल 18 सीटें मिली थी। जब विभाजन का सवाल आया तो चौधरी छोटूराम ने देश विभाजन का विरोध किया और पार्टी के कुछ मुस्लिमों ने विभाजन का समर्थन किया जिससे पार्टी टूट गई और वो मुस्लिम लीग में शामिल हो गए जबकि चौधरी छोटूराम ने अपनी अलग पार्टी बना ली। चौधरी छोटूराम ने जहाँ जीवनपर्यन्त इन अलगाववादी व् कट्टर इस्लामिकों का विरोध किया, अपने क्षेत्र में कभी मुस्लिम लीग को घुसने नहीं दिया।
विचारक छोटूराम --
सन् 1934 में राजस्थान के सीकर शहर में किराया कानून के विरोध में एक अभूतपूर्व रैली का आयोजन किया गया, जिसमें 10000 जाट किसान शामिल हुए। यहां पर जनेऊ और देसी घी दान किया गया, महर्षि दयानन्द के सत्यार्थ प्रकाश के श्‍लोकों का उच्चारण किया गया। इस रैली से चौधरी छोटूराम भारतवर्ष की राजनीति के स्तम्भ बन गए।
स्वामी श्रद्धानन्द और मटिंडू गुरुकुल के संचालक चौधरी पिरु सिंह जैसे बड़े आर्यसमाजी नेताओं से उनकी निकटता जगजाहिर है। चौधरी छोटूराम अपनी जनसभाओं की शुरुआत में हवन कराते थे, स्वामी दयानन्द की लिखी किताब सत्यार्थ प्रकाश में लिखी बातें लोगों को अपने भाषणों में बताते थे।
शिक्षक छोटूराम --
इन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जिसमें "जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल रोहतक" प्रमुख है। एक जनवरी 1913 को जाट आर्य-समाज ने रोहतक में एक विशाल सभा की जिसमें जाट स्कूल की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया जिसके फलस्वरूप 7 सितम्बर 1913 में जाट स्कूल की स्थापना हुई। इस स्कूल में हवन यज्ञ एवं संध्या नियमित रूप से होती थी।

धर्म निष्ठ छोटूराम --

प्रथम विश्वयुद्ध के दिनों की बात है। रोहतक की जाट सभा का साप्ताहिक उर्दू अखबार जाट गजट के नाम से निकलता था। चौधरी छोटूराम और चौधरी लालचंद ने इस गजट के संपादक के रूप में आर्यसमाज के प्रसिद्द संपादक एवं लेखक कहानीकार सुदर्शन जी को नियुक्त किया था। सुदर्शन जी उस काल में रोहतक में ही रहने लगे।  एक दिन कहानीकार सुदर्शन जी रोहतक में सड़क से जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक ईसाई पादरी सड़क पर खुलेआम खड़े होकर ईसाई मत का प्रचार कर रहा है और हिन्दू पुराणों की धज्जियाँ उड़ा रहा है। सुदर्शन जी को यह देखकर जोश आ गया। वो उस पादरी से कुछ दूरी पर खड़े होकर वैदिक धर्म की श्रेष्ठता एवं बाइबिल की तर्कपूर्ण समीक्षा करने लगे। अपने छात्र जीवन में सुदर्शन जी मिशनरी स्कूल में पढ़े थे। इसलिए उन्हें बाइबिल की गहराई से जानकारी थी। सुदर्शन जी के व्याख्यान को सुनने के लिए भारी भीड़ एकत्र हो गई। पादरी के पांव उखाड़ गये। उसने उसकी दुकान बंद होने का कभी सोचा भी नहीं था। उसे किसी प्रकार से पता चल गया कि सुदर्शन जी जाट गजट के आर्यसमाजी संपादक है। रोहतक का उन दिनों डिप्टी कमिश्नर एक अंग्रेज अधिकारी था। पादरी ने अंग्रेज कमिश्नर को सुदर्शन जी की शिकायत कर दी। कमिश्नर ने पक्षपात रूपी कार्यवाही करते हुए जाट गजट से भारी प्रतिभूति राशि मांग ली। अभियोग चलाया गया। मामला चौधरी छोटूराम तक गया। उन्होंने अंग्रेज अधिकारी को स्पष्ट रूप से कह दिया। एक ओर आप हमसे विश्व युद्ध में लड़ने  जाट जवान मांगते है दूसरी ओर आप हमारी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में विघ्न डालते है। ये दोनों बातें कैसे चल सकती हैं। चौधरी साहिब को अंग्रेज कमिश्नर ने आश्वाशन दिया कि आपको पत्रिका के प्रकाशन में कोई अड़चन नहीं आएगी। कोई प्रतिभूति नहीं मांगी जाएगी। केवल आप लोग अपना संपादक बदल दीजिये। सुदर्शन को हटा दीजिये। चौधरी साहिब ने बड़े स्वाभिमान, धर्म निष्ठा और दृढ़ता का परिचय दिया। उन्होंने अंग्रेज कमिश्नर को सुदर्शन जी को हटाने से स्पष्ट इंकार कर दिया।
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दीनबन्धु छोटूराम --
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बात लगभग 90 साल पुरानी है. आज इस बात को समझने के लिए 90 साल पुराने हालात को ध्यान रखें. यह घटना आर्य समाज के महान नेता भक्त फूल सिंह जी की जीवनी में आती है. क्योंकि इन घटनाओं का सम्बन्ध चौधरी छोटूराम जी से है इसलिए यहाँ दी जा रही है.
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1- सन् 1928 ई० में भक्त फूल सिंह जी को यह पता चला कि गुडगांव जिले के होडल व पलवल गांव के जाट जो हिन्दू थे वे मुस्लिमबन गये और मूले जाट कहलाये। आर्य समाज का प्रचार सुनकर वे पुनः वैदिक धर्म में दीक्षित होना चाहते थे। परन्तु विवाह आदि सबन्ध भी आर्य जाट उनसे कर लें। आप अपने पण्डितों और साथियों समेत वहाँ पहुचे। परन्तु वहाँ का जैलदार नहीं माना। आपने उस बाधा केा रोकने केलिए 11 (ग्यारह) दिन का अनशन किया चौधरी छोटूराम जी के समझाने पर आपने अनशन समाप्त किया। परन्तु श्ुाद्धि का कार्य जारी रखा।
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एक गाँव में दलितों ( मूल जीवनी में जाति का नाम दिया है) के लिए नए कुँए की जरूरत थी क्योंकि पुराना कुआं सूख गया था और दलितों को दूर से पानी लाना पड़ता था. जब दलितों ने कुआं खोदना शुरू किया तो गाँव के मुस्लिमो ने रोक दिया. दलित भक्त फूल सिंह जी के पास आए. भक्त जी ने गाँव में अनशन शुरू किया. मुसलमानों ने भक्त जी को उठा कर जंगल में फेंक दिया. उसके बाद भक्त जी ने दुबारा अनशन शुरू किया. इस बार भी चौधरी छोटूराम जी ने अपने राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल करके मुस्लिमों पर दबाव बनाया. इसी प्रभाव के कारण कुआं बना और भक्त जी ने अनशन समाप्त किया.
छोटूराम जी ने एक आदर्श जीवन जिया। आज हम उनसे प्रेरणा लेकर अपने समाज का कल्याण कर सकते हैं।

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